उदयपुर में तालिबानी हत्या के बाद गुस्से से भरी आखें, चीखती आवाजें और नारे अब बंद हो चुके हैं। एक दिन पहले हैवानियत का शिकार बने कन्हैयालाल साहू के शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया है। घर में परिवार की महिलाएं हैं, जो कन्हैया के जाने के गम में डूबी हैं। कन्हैयालाल के सूने कमरे की ओर निगाह जाते ही परिवार के सदस्य बिलखने लगते हैं। वहां लगी उनकी तस्वीरें और सामान पत्नी और बच्चों के लिए आखिरी यादें हैं। एक तस्वीर में तो कन्हैया हैं, मगर बेटों की बाहों में अब नहीं हैं। उनकी बहन का कहना है कि परिवार डरा हुआ है और उन्हें सुरक्षा चाहिए।
इसी बीच उनकी बड़ी बहन नीमा देवी बिलखती हुई कहती हैं- उन्हें इंसाफ चाहिए। यह कहते हुए उनके भीतर का आक्रोश भी बाहर आ जाता है। कहती हैं जैसे मेरे भाई को काटा है। वैसे इनको भी काटो। कन्हैयालाल का पूरा परिवार दोनों आरोपियों को फांसी देने की मांग कर रहा है।
भाई के व्यवहार को लेकर नीमा बताती हैं कि उसके जैसा व्यवहार किसी का नहीं हो सकता था। 3 साल पहले ही घर लिया था। एक और प्लॉट लेना चाहता था। बच्चे को डॉक्टर बनाना चाहता थे। उसके बहुत सपने थे, जो शायद अब पूरे नहीं हो सकेंगे। हम 3 बहनों को बहुत प्यार से रखते थे। मेरे बच्चे कोई भी काम हो तो पहले मामा को पूछते थे।
यह कहते हुए नीमा देवी की आंखों दर्द उतर आया। रोते हुए कहती हैं कि कन्हैया किसी से लड़ाई झगड़ा नहीं करता था। कोई छोटे बच्चे को डांटता नहीं था। इसके बच्चे भी पिता से ज्यादा प्यार करते थे। सभी से अच्छा व्यवहार था। चाहे कोई मुसलमान हो या हिंदू सबके कपड़े सिलता था।
कन्हैया के साथ बीते दिनों को याद करते हुए उनकी बहन बताती हैं कि जब कन्हैया को धमकी मिली तो दुकान बंद रखी। फिर देखा कि कितने दिन बैठेंगे। इसलिए दुकान खोल दी। दुकान खोलने के बाद कुछ दिन पहले एक महिला और एक आदमी दुकान पर आकर धमकी देकर गए थे कि तुझे गाड़ देंगे। उम्मीद भरी आवाज में नीमा कहती हैं कि हमारे बच्चों को सुरक्षा चाहिए ना जाने कब कोई क्या कर दे।
नीमा देवी का हाल जानकर हम आगे बढ़े तो महिलाओं के बीच कन्हैयालाल की पत्नी जशोदा बैठी थी। अब तक जशोदा बेन के आंसू सूख चुके थे। मगर गले से दर्द नहीं निकला था। बोली एक बेटे को डॉक्टर और दूसरे बेटे को इंजीनियर बनाने का सपना था। अब यह सपना कौन पूरा करेगा? कौन कर सकता है, मैं क्या रोड पर काम करके पूरा करूंगी क्या।
जशोदा कहती हैं कि वो उनके पति उन्हें कुछ नहीं बताते थे मगर वो चिंता में थे। कुछ समय पहले बीमार हुए थे। मगर कुछ नहीं बताया। तीन साल पहले ही मकान लिया था। इसकी किश्तें चल रही है। सिलाई का काम भी मंदा ही था। अब ये सब कौन देखेगा।
धमकी की घटनाओं को याद करते हुए जशोदा ने कहा कि बता रहे थे कि सामने वाला कोई भईया-भईया है, उन्हीं की बात किया करते थे। मुस्लिमों से भी वो दोस्ती बढ़िया रखते थे। मुस्लिमों को भाई बनाकर रखते थे। उन्हें भाई ही समझते थे। ऐसा व्यवहार बनाते थे कि हमारे त्यौहार पर मिठाई होती थी तो उनको दीपावली पर मिठाई देते थे। वो भी अपने त्यौहार पर हमें देते थे। जशोदा बताती हैं कि उनके यहां तो मुस्लिम कारिगरों ने भी काम किया है।
इसी बीच डरते-डरते जशोदा यह भी कहती हैं कि कन्हैयालाल कहते थे कि अगर इनसे दोस्ती बनाकर रखेंगे तो ये कुछ नहीं करेंगे। सिलाई में सबका काम करना पड़ता है। ये कभी भेदभाव नहीं रखते थे।