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ललिता राठौड़
राजसमंद

राजसमंद और पाली जिले की सरहद तक देसूरी की नाल में बेकाबू ट्रक पलटने से चालक व खलासी की दर्दनाक मौत हो गई। यह वहीं जगह है, जहां 7 सितंबर 2007 को सबसे बड़ा सडक़ हादसा हो चुका है, जिसमें 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद भी न तो सरकार ने गंभीरता से लिया और न ही क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने रूचि दिखाई। इसी का नतीजा रहा कि 15 साल बाद भी देसूरी नाल में विकट पंजाब मोड़ में सुधार नहीं हो पाया।

चारभुजा थाना प्रभारी टीना सोलंकी ने बताया कि राजसमंद व पाली जिले की बॉर्डर पर देसूरी नाल में बेकाबू ट्रक के पलटने से चालक व खलासी की दर्दनाक मौके पर ही मौत हो गई। बताया कि ट्रक महाराष्ट्र से जोधपुर जा रहा था, जिसमें प्लास्टिक के पाइप भरे हुए थे और वाया पाली होकर जोधपुर जा रहा था। देसूरी की नाल में ढलान उतरते वक्त ट्रक बेकाबू होकर पंजाब मोड़ पर पहाड़ी से टकरा कर पलट गया। दुर्घटना में ट्रक तले दबने से चालक मुल्लापुरा, उज्जैन (मध्यप्रदेश) निवासी राजेंद्र (25) पुत्र छगनलाल मालवीय और राजू (22) पुत्र कैलाश नायक ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। सूचना पर चारभुजा थाने से पुलिस मौके पर पहुंची और ट्रक के नीचे दबे दोनों के शव निकलवाकर एम्बुलेंस से चारभुजा अस्पताल के मोर्चरी में रखवा दिए। साथ ही परिजनों के आने पर पुलिस ने पोस्टमार्टम करवा शव परिजनों को सौंप दिए। पुलिस ने दुर्घटना का प्रकरण दर्ज करते हुए समग्र पहलुओं पर जांच शुरू कर दी।

सिर्फ प्रस्ताव बने, काम नहीं हुए
देसूरी नाल का ढलान और मोड़ कम करने के लिए परिवहन विभाग द्वारा एनएचएआई व सार्वजनिक निर्माण विभाग के अभियंताओं द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्ताव तैयार किया गया। प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर राज्य सरकार और केन्द्र सरकार तक प्रस्ताव भेजे गए। उसके बाद न तो राज्य सरकार से कार्रवाई और न ही केन्द्रीय वन पर्यावरण मंत्रालय से कार्रवाई आगे बढ़ी। अभी केन्द्रीय वन मंत्रालय से एनओसी मिलने का इंतजार है और इंतजार के 15 साल बीत गए।

क्या सरकार से ऊपर है वन मंत्रालय
देसूरी नाल में सडक़ निर्माण के लिए प्रस्ताव केन्द्रीय वन मंत्रालय के पास लंबित है। कई जनप्रतिनिधियों द्वारा मुद्दे भी उठाए जाते रहे हैं, मगर व्यक्तिगत स्तर पर ठोस प्रयास नहीं हुए। इससे सवाल उठ रहा है कि आखिर क्या राज्य व केन्द्र सरकार से ऊपर है वन मंत्रालय। सरकार वन मंत्रालय से काम क्यों नहीं करवा पा रही है।