Fake Baba https://jaivardhannews.com/babajis-performance/

चुटकियों में शत्रुओं को वश में करने का दंभ भरने वाले बाबा का देश होते हुए भी भारत से विश्व कप ट्रॉफी को शत्रु टीम हड़प कर ले गई, यह बेहद ही शर्मनाक और जन सामान्य को आहत करने वाली घटना है। खिलाड़ियों से ज्यादा उम्मीदें हमें बाबाओं के चमत्कार से थी क्योंकि हमारे देश में गोल्ड मेडलिस्ट बाबा अथवा मौलानाओं की ऐसी असंख्य संस्थाएं हैं, जहां जिंदगी से परेशान अस्त-व्यस्त, त्रस्त मानव की सभी तरह की पीड़ा, बाधा और व्यथा का उपचार एवं निराकरण डंके की चोट पर किया जाता | है। फिर भी विश्व कप का फिसल जाना बाबाओं के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार को प्रदर्शित करता है।

महज नींबू-मिर्ची, मानवीय खोपड़ी और हड्डियों की पूंजी वाले सिंगल मैन ऑपरेटेड इस सर्वबाधा हरण संस्थान में परिवार, पत्नी, पड़ोसन, प्यार, पेट्रोल, प्याज से लेकर प्राण निकालने सहित प्रजातंत्र में व्याप्त है, से हलन्त तक सभी प्रकार की परेशानियों का शर्तियां समाधान किया जाता है।

इन संस्थानों का प्रचार-प्रसार रनिंग ट्रेन अथवा उन दीवारों के माध्यम से किया जाता है, जिन दीवारों पर बड़े-बड़े शब्दों में लिखा होता है ‘यहां पेशाब करना मना है। इस अलौकिक संस्थान का ए फोर साइज वाला विज्ञापन स्टिकर ट्रेन के जनरल डब्बा के अंदर मिल जाएगा। अखिल भारतीय स्तर पर व्याप्त इस संस्थान का मुख्यालय या शाखा कार्यालय का पता हमेशा लापता होता है।

सकल बाधा हरने वाले स्टिकर विज्ञापन में इनके वास्तविक नाम की बजाय किराए या उधार पर लिया गया जनकल्याणकारी नाम छपा होता है। उक्त सकल विघ्नहर्ता चमत्कारी बाबा / पीर के नाम के आगे गोल्ड मेडलिस्ट होने का उल्लेख उसी प्रकार किया जाता है, जिस प्रकार ब्यूटी पॉर्लर के बोर्ड पर ‘केवल महिलाओं के लिए’ उल्लेखित होता है। गौरतलब है कि बाबाजी को गोल्ड मेडल शिक्षा, मैराथन, तीरंदाजी या जुमलेबाजी के क्षेत्र में मिला है, इसका कहीं कोई जिक्र नहीं रहता। वैसे इनके मेडलिस्ट होने पर जास्ती मगज नहीं खपाने का, क्योंकि जब इनके तंत्र-मंत्र से खोया प्यार, मनचाहा प्यार विवादित जायदाद, क्षय हो चुकी जवानी, ऐश्वर्य सबकुछ हासिल हो सकता है, तो नामुराद स्वर्ण पदक कौनसी बड़ी चीज है।

इनके विज्ञापन पोस्टर पर स्वयं या इनके रामवाण क्लिनिक, दफ्तर, संस्थान की तस्वीर ना होकर शिरडी के साई की तस्वीर चिपकी होती है, ठीक वैसे ही जिस तरह भारत सरकार के सरकारी पत्र पर राष्ट्रीय चिह्न अंकित रहता है।

संभवतः आधार कार्ड से लिंक नहीं होने की वजह से रनिंग ट्रेन के इस कल्पतरू विज्ञापन में इनके घर / कार्यालय का स्थायी डाक पता अथवा स्थान का उल्लेख नहीं होने के कारण बाबा का ठिकाना सदैव परिवर्तनशील रहता है। स्टिकर में अंकित दो-तीन मोबाइल नम्बर ही इनके ऑनलाइन चिकित्सा पद्धति या जनकल्याणकारी समस्या समाधान का एकमात्र जरिया होता है। बाबा परम उदार और कल्याणकारी प्रवृत्ति के होते हैं, क्योंकि दूसरे का प्यार और परिवार बचाने के लिए ही इन्होंने मां की कसम खाकर अपनी दुकान हमारा मतलब संस्थान खोला है। दूसरे की मां बहन का कल्याण करने वाले ऐसे बाबाओं के मां की जय-जयकार मुक्त कंठ से होनी चाहिए। ये बाबा विशुद्ध सेकुलर होते हैं, क्योंकि इनके विज्ञापन गजट पर क्रॉस, 786, ॐ, स्वास्तिक आदि सहित सभी धर्मों का प्रतीक चिह्न सामूहिक रूप से मुद्रित रहता है।

यह स्वयंसिद्ध चमत्कारी बाबा कबीर के स्वघोषित वंशज होते हैं। क्योंकि ‘कल करे सो आज कर, आज करे से अब…’ वाली नीति के कट्टर समर्थक होते हैं। जर जोरू जमीन के जिन दीवानी और फौजदारी मामलो का निष्पादन तारीख पर तारीख हॉलमार्क वाली संस्थान के जन वर्षों में भी नहीं कर सकते, उन मामलों का निपटान ये घंटा करते…. मेरा मतलब चंद घंटों में करने का माद्दा रखते हैं।

ऑलराउंडर बाबा साक्षात शिव के कलयुगी अवतार होते हैं। इनके विज्ञापन में मानवीय संहार के तहत फोन पर ही आधा घंटा के अंदर सौतन को तड़पाने का, शत्रुओं को मिटाने का पुनीत कार्य का उल्लेख रहता हैं। इस संस्थान के स्वामी जमीन जायदाद, प्रेम, पैसा के विवादों को सुलझाने एवं दुश्मनों को चंद मिनटों में मिटाने का शर्तिया दावा ऐसे करते हैं, मानो स्वच्छता का ब्रांड अम्बेसेडर बनकर बेगॉन स्प्रे से कॉकरोच का सफाया करने निकले हो। गोल्ड मेडलिस्ट बाबा सबसे बड़े दंडाधिकारी है और इनका कद भारतीय कानून से भी ऊंचा है। इनके विज्ञापन में ये काला जादू के जानलेवा प्रयोग से मरने-मारने का खुल्लम खुल्ला उद्घोष करते हैं।

धरती की कोई ताकत इनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती, इसलिए बाबा सबकुछ खुलेआम दावा ठोक कर करते हैं। मजाल क्या है कि भारतीय संविधान का कोई कानून या एक्ट इन बाबाओं की एक जंतर तक उखाड़ सके। रनिंग ट्रेन में प्रचारित बाबाओं की रन करती असंख्य रनिंग रहस्यमयी संस्थानों के बावजूद विश्वकप ट्रॉफी पर शत्रुओं का कब्जा किया जाना निराशा जनक है। विज्ञापन और रील्स बनाने की व्यस्तता के कारण खिलाड़ियों द्वारा फाइनल में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया जाना तो समझ में आता है, किन्तु शत्रु शमन शक्तिशाली चाचा लोग आस्ट्रेलिया को वश में करने की बजाय उस समय किसकी सौतन का बंटाधार करने गए हुए थे, यह उच्च स्तरीय जांच का विषय है।