रूढ़ीवादी कुरीतियों के खात्मे के लिए सरकार ने कई सख्त कानून भी बनाए, मगर कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन में भी कई लोग मृत्युभोज रखने में नहीं हिचके। वहीं कुछ लोग ऐसे भी है, जो न सिर्फ मृत्युभोज का बहिष्कार कर रहे हैं, बल्कि उसी राशि से जरूरतमंदों की मदद व सेवा के लिए भी हाथ आगे बढ़ा रहे हैं और कुरीति मुक्त समाज निर्माण का संदेश दे रहे हैं।
यह अनूठी पहल राजसमंद शहर से छह किमी. दूर मुंडोल गांव में देखने को मिली, जहां पंडित गोरीशंकर व्यास का निधन हो गया। उसके बाद उनके पुत्र युवा ब्रह्मशक्ति मेवाड़ राष्ट्रीय सचिव गिरीराज व्यास एवं राजकुमार व्यास व पौत्र हेमेंद्र द्वारा मृत्युभोज नहीं किया। पं. गोरीशंकर की स्मृति में परिजनों द्वारा जरूरतमंद परिवारों को राशन सामग्री व मास्क वितरित किए। साथ ही आमजन को कोरोना गाइडलाइन की पालना करते हुए हमेशा स्वस्थ रहने का भी संदेश दिया। मृत्युभोज नहीं रखकर जरूरतमंदों की सेवा व मदद करने की अनूठी पहल से समाज के अन्य लोगों को भी पे्ररणा मिलेगी। इस दौरान मृतक के भाई गणेश व्यास, सुनील पालीवाल, भाजपा बुथ अध्यक्ष नरेश जोशी, ललित व्यास, भील समाज के छगन भील, वेणीराम भील सहित कई लोग मौजूद थे।
मृत्युभोज पर दंड का प्रावधान
किसी व्यक्ति के निधन पर परिवार द्वारा सामूहिक भोज रखा जाता है, जो कानूनन प्रतिबंधित है। मृत्युभोज निषेध अधिनियम 1960 के तहत मृत्युभोज करने पर एक वर्ष तक के कारावास तक का प्रावधान है। फिर भी समाज की रूढ़ीवादी परंपरा के तहत अंकुश नहीं लग पाया है। हालांकि यह राहत की बात है कि कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन में मृत्युभोज पर काफी अंकुश लगा है, जिसे समाज में एक अच्छी पहल के रूप में भी देखा जा रहा है।