Holi or Indian Culture : भारत बहु आयामी लोक संस्कृति और त्योहारों और उत्सवों का देश है, जो परम्पारगत तरीके से संदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कारों के साथ अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने में कामयाब रहा है । Holi Festival सतयुग, त्रैता युग, द्वापर युग और कलयुग इन चार युगों में धर्म अर्थ काम मोक्ष के सिद्धान्त को मानव जीवन को जीने का आधार स्तम्भ बनाकर सनातन धर्म की व्याख्या की है। साथ ही इस देश में ऋतुओं का भी बड़ा महत्व है। ऋतुओं के आधार पर हमारे देश के तीज और त्यौहार मनाए जाते रहे हैं। कृषि प्रधान देश होने की वजह सें कृषि पौराणिक सभ्यता से लेकर आधुनिक सभ्यता तक भारत की मिट्टी की रगो में बसी हुई है।
आज भी 65 प्रतिशत आबादी गांव और ढाणियों में निवास करती है, जिनका मूल व्यवसाय खेती और पशुपालन ही है। खेती भी मौसम और ॠतु अनुरूप ही बोई और काटी जाती है और जब फसल पककर कटने का समय आता है, तब कोई ना कोई त्यौहार बड़े हर्ष और उल्सास के साथ ग्रामवासी ऋतु अनुसार मनाते हैं। ग्रीष्म, शरद, हेमंत, शिशिर, बसंत हर ऋतु में एक अलग ही आनंद और उत्साह लोगों में देखने को मिलता है और इन्हीं ऋतुओं में बंसत ऋतु का स्वागत करते हुए होली का त्यौहार आता है। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार अलग अलग कथाओं में होली के पर्व का महत्व बताया गया है। राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में भी चंग की थाप पें लोक गीत गाते हुए महीनेभर होली खेलने का चलन है। यहां इलाजी की पूजा करने का भी रिवाज़ है। आज के आधुनिक युग में होली का पर्व व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। Holi के समय में कई विज्ञापन कंपनियों द्वारा बनाए गए हैं, जिसमें होली का महत्व बताया गया है। कई कंपनियां अपने प्रोडक्ट को होली के त्याैहार पर होली को भाईचारे, प्रेम और एकता के रूप में दर्शाते कौमी एकता की मिसाल पेश करते हुए टीवी पर अपने विज्ञापन के माध्यम से सामग्री बाजार में उतारती है।
Holi Story : होली के पीछे की धार्मिक कहानियां
- हिरण्यकश्यप के कहने पर होलिका प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी गोद में बैठाकर आग में प्रवेश कर गई, किंतु भगवान विष्णु की कृपा से तब भी भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई, तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन होने लगा और ये त्यौहार मनाया जाने लगा। कामदेव की पत्नी रति को अपने पति के पुनर्जीवित का वरदान और शिवजी का पार्वती से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करने की खुशी में देवताओं ने इस दिन को उत्सव की तरह मनाया। यह दिन फाल्गुन पूर्णिमा का ही दिन था। इस प्रसंग के आधार पर काम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से जलाकर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
- पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव जब पहली बार मां पार्वती को काशी लेकर आए थे। भोलेनाथ के भक्तों ने अबीर, गुलाल और रंग बिरंगे फूलों से माता पार्वती का स्वागत किया था। इसलिए हर साल काशी में रंगभरी एकादशी के दिन होली मनाने की परंपरा चली आ रही है। ब्रज की होली राधा- कृष्ण की रास लीला से जोड़कर आज भी ब्रजवासियों में सखा भक्ति से मनाने की परम्परा अनूठी है। बरसाना की लठ्ठ मार होली को देखने देश विदेश के लोग मथुरा, वृंदावन जाते हैं। वहां यह पर्व बसंत पंचमी से शुरू होता है और महीनेभर तक मनाया जाता है। ब्रज के रसिया बहुत लोकप्रिय होते हैं। आज भी वहां पुरानी संस्कृति के अनुरूप रसिया प्रेम से देवर भाभी की नोंक झोंक में गाली गाने का चलन है। इसी छेड़छाड़, हंसी मजाक के साथ होली उत्सव को मनाया जाता है। वहां बांके बिहारी जी के मंदिर में ठाकुरजी के विग्रह पर टीका लगाकर होली के इस पर्व का शुभारंभ किया जाता है और रंग पंचमी के दिन समापन किया जाता है।
Holi Film or Song : होली के फिल्मी गीत भी शानदार
होली के त्यौहार को फिल्मी उद्योग में भी बहुत अच्छी तरह से भुनाया है। आज भी चलचित्रों में होली का कोई न कोई गीत आ ही जाता है। कई मशहूर गीत है, जो होली के पर्व पर टेलीविजन और रेडियो पर प्रसारित होते हैं- मारो भर भर कर पिचकारी…, होली आई रे कन्हाई रंग भर दे…, आई होली आई…, होली के दिन दुश्मन भी गले मिल जाते हैं…, भागी रे भागी बृजबाला कान्हा ने पकड़ा रंग डाला… और सबसे मशहूर गीत जो लोकगीत पर आधारित था, जिसे हरिवंश राय बच्चन ने लिखा था। फिल्म सिलसिला में अमिताभ बच्चन की आवाज़ में रिकॉर्ड कर रेखा और अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया। रंग बरसे भीगे चुनर वाली… आज भी बहुत ही लोकप्रिय गीत है।
Holi Shayari : होली के दोहा, शायरियां भी गजब
होली के पर्व को लेकर गीतकारों, कवियों, शायरों ने होली के पर्व को अपनी लेखनी के माध्यम से बहुत खूबसूरती से भाव और शब्दों के माध्यम से पिरोया है। अमीर खुसरो ने सुफियाना अंदाज में होली के दोहे लिखे जो आज भी गाए जाते है। यह ये दोहा काफी चर्चित है-
रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ।
जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।।
खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।।
खूब चलते हैं व्यंग्य बाण… बुरा न मानो होली है
होली का त्योहार मुगल काल में भी बहुत लोकप्रिय त्यौहार था, आज भी कौमी एकता और भाईचारे की मिसाल देते हुए जाति धर्म के सभी बंधन तोड़ते हुए अबीर गुलाल और रंग और पानी से बड़े प्रेम के साथ राग द्वेष को भुलाते हुए इस त्यौहार को मनाया जाता है। होली के दिन किए गए मजाक को भी बुरा नहीं माना जाता है। देश की ख्यातनाम पत्र पत्रिकाएं भी होली पर बड़े-बड़े राजनेता, फिल्म अभिनेता और अलग-अलग क्षेत्र में प्रसिद्ध लोकप्रिय लोगों पर भी कार्टून बनाकर उन पर व्यंग कटाक्ष करते हुए बुरा ना मानो होली है…, शीर्षक से स्लोगन लिखते हैं, जिसे बड़े चटकारो से पढ़ा जाता है।
Holi Festival : सनातन संस्कृति का गजब समावेश
होली प्रेम, उल्लास, अपनेपन की भावनाओं को बढ़ाने वाला वो त्यौहार है, जिसे वर्तमान समय में भारत ही नहीं, पूरे विश्व में भी मनाया जाने लगा है। पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से होली के पर्व के दर्शन को समझना भारतीय संस्कृति को गहराई से समझने का और बहुआयामी रूपों को सांझा रूप में समझाने का एक अलौकिक प्रयास है। हर युग में होली के पर्व को बहुत ही खूबसूरती से प्रेम के कैनवास पर विविध रंगों से उकेर कर खूबसूरत तस्वीर बनाई गई है और यही तस्वीर भारतवर्ष को पूरे विश्व में एक अलग ही नजरिए से प्रस्तुत करती है। वैसे भी भारतवर्ष तीज, त्यौहारों का देश कहा जाता है। वसुंधैव कुटुंबकम के सिद्धांत को हमारी सनातन संस्कृति ने अपनाकर प्रकृति के रंगों को अपने अंदर समेट लिया है। पलाश के फूलों की खूबसूरती के साथ उसके द्वारा बनाए गए रंग से होली खेलने का चलन ही प्रकृति से प्रेम और प्रकृति के प्रत्येक जीव के साथ प्रेम का व्यवहार करने का नाम ही होली है और यही आनंद के साथ परमानंद के साक्षात दर्शन करने का आध्यात्मिक रास्ता भी है। प्रभु प्रेम के भूखे होते हैं और प्रेम का रंग ही एक ऐसा रंग है, जो चढ़कर कभी नहीं उतरता है। आओ हम भी बुराइयों का अंत करते हुए प्रेम के रंग में रंग जाए और राग द्वेष, अपना- पराया, नफ़रत हिंसा, लालच से जो मन मेला हो गया है, उसे होली के अवसर पर धोकर अपने परायों को बड़े प्रेम से होली का रंग लगाए सारे गिले- शिकवे शिकायतें भूलाकर अपने करीबी रिश्तेदारों, सगे संबंधियों, भाई बुंधुओं को गले लगाए। क्योंकि वर्तमान समय में सबसे ज्यादा कटुता नजदीकी रिश्तों में देखने को मिलती है। परायों को अपना बनाने के साथ साथ अपनों को अपना बनाने का प्रयास करना ही होली के पर्व की रंग बिरंगी उड़ती हुई अबीर गुलाल में प्रेम का रंग भर सकता है और यही इस आधुनिक युग की आपाधापी में होली जैसे त्योहार की सार्थकता सिद्ध कर सकता है।
अर्थ के इस युग में त्यौहारों के अर्थ को भुलाने वाली नई पीढ़ी अगर त्यौहारों को मानव सभ्यता का मूल मानेगी, तभी मानवता का सिद्धान्त समझ सकेगी। नए युग में पुराने युगों के तीज़ त्यौहारों को मनाना और बचाना ही हमारी संस्कृति की रक्षा करना है। हम देश, समाज और परिवार में त्यौहारों को उसी उल्लास के साथ मनाए, जैसे हमारी पुरानी पीढ़िया मनाती आ रही है, तो युगो युगों तक त्यौहारों की इस संस्कृति को हम जिंदा रख सकते हैं।
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March-2024सूर्यप्रकाश दीक्षित
कवि व साहित्यकार
काव्य गोष्ठी मंच, कांकरोली
मो. 94146 21730