Satire on politics : प्रथम दृष्ट्या भारतीय लोकतंत्र में जनेच्छा और अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति के असाधारण परिणामों के माध्यम वाले 2024 के लोकसभा के चुनावों में एनडीए सहित अन्य गठबंधन की स्थितियों को हम भारतवर्ष के सांस्कृतिक वर्चस्व के विज़न और लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ने की जिजीविषा की राह में न समझ आने वाली उपलब्धि के रूप में देख रहे हैं। यह सब अति महात्वाकांक्षी, अति विश्वासी और अतिरेक भरी घोषणाओं पर भविष्य के लिए दी गई चेतावनी के रूप में राजनीतिज्ञों को सबक सिखाने का भी संकेत है। जनता का और खबरदार भी करता है कि इन सबसे बचकर चलने में ही किसी भी पार्टी का अस्तित्व बचा रह सकता है। यह राष्ट्र निर्माण की दिशा में नेतृत्व करने वालों के कान उमेठने वाली जनता की जीत है। यह नए जनादेश के सभी नेताओं की क्षमताओं को अभी और तराशने के लिए सशक्त बनने की विनम्रता और जनता के सपनों को जमीन पर उतारने के प्रयासों को किए जाने की सीख भी देती है।
Election 2024 : वैसे तो राजनीति अब आम और बुद्धिजीवियों की रूचि का विषय ही नहीं रहा। तथापि एक जागरूक वोटर की हैसियत से सोचने पर यह चुनाव हमें यह सोचने के लिए विवश करता है कि हमारी अपेक्षा की कसौटी पर यह चुनाव कितना खरा उतरा है? इस दृष्टि से इन पंक्तियों के लेखक के लिए यह चुनाव मानसिक धरातल पर अतिरेक पूर्ण वायदों और विश्वास भाजन बनने की अभेद्य दीवार बनाकर अंततः ठगे से जाने की अनुभूति देता है। वोटर के अपने इच्छित दल और प्रत्याशी को वोट दिए जाने के बाद सामान्यतः घोषित हुए हतप्रभ कर देने वाले परिणामों से हमारा मिथिक टूटा है। यह किसी भी जनतांत्रिक व्यवस्था में कयासों पर आधारित आभासी संभावनाओं के तौर से वोटर के विश्वास के शिथिल होने का विषय बना है।
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Poltical news : मतों का हुआ ध्रुवीकरण
Poltical news : निस्संदेह विगत अवधियों में मतों के ध्रुवीकरण के लिए “सोशल इंजिनियरिंग” जैसे प्रयास हुए हैं। लोकतंत्रीय व्यवस्थाओं में यह सब कूटनीति का एक भाग है, लेकिन इस तरह के प्रयासों ने 2024 के लोकसभा चुनावों में वोटों का जो गणित प्रभावित किया है, उसके दूरगामी प्रभाव चिन्ता का विषय हो सकते हैं। धर्म, समाज, जाति, संविधान, निर्धनता के साथ जब राष्ट्रवाद और भावनात्मक ऐक्य को भी अपने अपने ढंग से परिभाषित कर उसे वोटर के सामने परोसा जाने लगा तो मतदान के परिणामों का परिदृश्य बदलने में कोई कसर ही नहीं रही।
Loksabha Chunav 2024 : एक बात ओर
Loksabha Chunav 2024 : एक बात ओर। विविध चुनावी भाषणों में जब इस सोशल इंजीनियरिंग ने अपना साम्राज्य फैलाना शुरू कर दिया, तो देश के ढांचागत और स्थायी प्रकृति के विकास के मुद्दों को तो दरकिनार ही कर दिया गया मानों। राम मंदिर जैसे भारतीय सांस्कृतिक वैभव को विश्व पटल पर रखने वाला विषय तो चुनाव की हैट्रिक का अहम् हिस्सा होना चाहिए था। यह चुनाव “कौन हारा कौन जीता” के उहापोह की बहस बन जाए। इससे बड़ी विडंबना भला और क्या हो सकती है? संख्या का गणित किसी एक दल के पक्ष में है, सत्ता पर काबिज होने की कशमकश और एक दूसरे को न पचाने की मानसिकता एक और है और अति महात्वाकांक्षी सोच से उत्पन्न परिस्थितियों का पेंच इन सभी के बीच जो स्थितियां विकसित हुईं। वे एक नीर क्षीर विवेकी, संतुलन की तुला पर प्रत्याशी की क्षमताओं को परखने की योग्यता रखने वाले एक विनम्र वोटर के लिए अनुत्साह परक परिस्थिति है।
सब कुछ गुजर जाने के बाद अब यह दौर है, जब हतप्रभ, निराश, किंकर्तव्य विमूढ़ और ठगा सा मतदाता अपने आपसे पूछता हुआ प्रतीत हो रहा है,”क्या यहीं तक मेरी भूमिका थी”?
हां, मुझे इतना विश्वास जरूर है कि मैं किन्हीं ओर की व्यूह रचना में फंसा अभिमन्यु हूं, जो सब कुछ जानकर भी अंततः छला गया। मैं मौन हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि- “ये पब्लिक है सब जानती है।”
डाॅ. राकेश तैलंग
वरिष्ठ साहित्यकार
श्री द्वारकाधीश मंदिर मार्ग, कांकरोली
मो. 9460252308