Jagannath Temple : भुवनेश्वर ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार (खजाना) खोलने के लिए कलेक्टर रविवार सुबह 10 बजे चाभी सौंप देंगे। मंदिर प्रबंधन समिति के प्रमुख अरविंद पाडी ने बताया, ‘इसके बाद मंदिर समिति की बैठक में तय होगा कि रत्न भंडार के आंतरिक कक्ष में कितने लोग जाएंगे। हालांकि यह तय है कि इसे रविवार को खोला जाएगा।’ इसे आखिरी बार 46 साल पहले 1978 में खोला गया था। राज्य के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने कहा, ‘सरकार रत्न भंडार खोलने के लिए दिशा- निर्देश जारी कर रही है। मंदिर प्रबंधन समिति ने एसओपी बनाकर सौंपी है। राज्य सरकार इसके सभी पहलुओं की जांच कर रही है।’
हाल ही में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव में रत्न भंडार खोला जाना बड़ा मुद्दा था। भाजपा ने वादा किया था कि ओडिशा में सरकार बनती है तो मंदिर के खजाने को खोला जाएगा। रत्न भंडार इससे पहले 1905, 1926 और 1978 में खोला गया था और वहां मौजूद बेशकीमती चीजों की लिस्ट बनाई गई थी। श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन की ओर से दाखिल हलफनामे के अनुसार, रत्न भंडार में तीन कक्ष आंतरिक कक्ष में रखे आभूषणों का कभी इस्तेमाल नहीं होता। बाहरी कक्ष के आभूषणों त्योहार पर निकाला जाता है।
Jagannath Temple Treasure : बाहरी कक्ष को साल में एक बार 15 दिन के लिए खोला जाता है
Jagannath Temple Treasure : दैनिक अनुष्ठान के लिए वर्तमान कक्ष के आभूषणों का उपयोग होता है। आंतरिक कक्ष में 50 किलो 600 ग्राम सोना और 134 किलो 50 ग्राम चांदी है। बाहरी कक्ष में 95 किलो 320 ग्राम सोना और 19 किलो 480 ग्राम चांदी है। वर्तमान कक्ष में 3 किलो 480 ग्राम सोना और 30 किलोग्राम 350 ग्राम चांदी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसके बाद 14 जुलाई 1985 को भी आंतरिक भंडार खोला गया था, लेकिन मरम्मत कर बंद कर कितनी संपत्ति आई, इसका कोई अंदाजा नहीं दिया गया। 1978 के बाद से मंदिर के पास है। 12वीं शताब्दी में बना जगन्नाथ मंदिर चार धामों में से एक है। बाहरी कक्ष को साल में एक बार अधिकतम 15 दिन के लिए खोला जाता है। 25 गुणा 40 वर्ग फुट आकार का आंतरिक रत्न भंडार अब रहस्य बन चुका है।
Jagnnath mandir News : सांप कर रहे रक्षा…! विशेषज्ञ रहेंगे तैनात
Jagnnath mandir News : बताया जाता है कि आंतरिक रत्न भंडार से अक्सर फुफकारने की आवाजें आती रहती हैं। यह भी मान्यता है कि सांपों का एक समूह भंडार में रखे रत्नों की रक्षा करता है। इसीलिए रत्न भंडार को खोले जाने से पहले मंदिर समिति ने भुवनेश्वर से सांप पकड़ने में निपुण दो व्यक्तियों को पुरी बुलाया है, ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति में जरूरत पड़ने पर वे तैयार रहें। आपातकालीन स्थिति के लिए डॉक्टरों की एक टीम भी मौजूद रहेगी।
Jagnnath temple History : 1978 में 70 दिन तक चली थी खजाने की गणना
Jagnnath temple History : जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार में रखे सामान की 1978 में सूची बनाई गई थी। यह काम 70 दिनों में पूरा हुआ था। 13 मई 1978 से 23 जुलाई 1978 तक लगातार सूची बनाने का काम चलता रहा। भंडार से सोना, चांदी, हीरा, मूंगा और अन्य आभूषण मिले। भीतरी भंडार में 367 सोने के गहने मिले। इनका वजन करीब 128 किलोग्राम बताया जाता है। यहीं से 231 चांदी के सामान मिले। इनका वजन 221 किलोग्राम बताया गया। बाहरी भंडार में 87 सोने के गहने और 62 चांदी के सामान मिले। वर्ष 2021 में तत्कालीन कानून मंत्री प्रताप जेना ने विधानसभा को बताया कि जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार 1978 में खोला गया था। तब 12,831 भरी सोने और अन्य कीमती धातु और 22,153 भरी चांदी यहां से मिला था। एक भरी करीब 12 ग्राम का होता है। 14 सोने और चांदी की वस्तुओं का वजन नहीं किया जा सका था। इसके साथ ही किसी भी सामान या गहने का मूल्य निर्धारण नहीं हुआ था। 1978 के बाद से मंदिर के पास कितनी संपत्ति आई, इसका कोई अंदाजा नहीं है।
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Ratna Bhandar of Jagannath temple : रेकॉर्ड रूम में रखे हैं दस्तावेज
Ratna Bhandar of Jagannath temple : रत्न भंडार की संपति को लेकर 1926 में जो सूची बनी थी, वह पुरी कलेक्टोरेट के रेकॉर्ड रूम में रखी हुई है। ओडिशा • के गजट में भी इसका प्रकाशन हुआ था, उसमें 837 सामग्री का जिक्र था। सोने की 150 सामग्री बाहरी भंडार में रखें हैं। जिनमें भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा का स्वर्ण मुकुट भी शामिल हैं। जगन्नाथ जी का मुकुट 610 तोला, बलभद्र जी का 434 और सुभद्रा जी का 275 तोले का है। एक तोला बराबर 11.6638 ग्राम होता है। भीतर भंडार में 180 आभूषण हैं।
Puri Jagannath Temple’s : डेढ हजार साल पहले का खजाना
Puri Jagannath Temple’s : इतिहासकार शरत चंद्र मोहंती ने बताया कि डेढ़ हजार साल पहले ओडिशा कोलकाता से लेकर तमिलनाडु तक फैला था। तब के राजाओं का खजाना रत्न भंडार में रखा है। भगवान का रघुनाथ वेश में विशेष श्रृंगार होता था। वह आखिरी बार 1902 में हुआ था। उसके भी आभूषण रत्न भंडार में रखे हुए हैं। तब भगदड़ में 40 साधु-संत मारे गए थे। इसके बाद से यह श्रृंगार नहीं हुआ उत्कल विश्वविद्यालय से प्रकाशित मदाला पंजी के अनुसार, राजा अनंगभीमा देव ने भगवान जगन्नाथ के गहने बनाने के लिए 2,50,000 सोने के मध दिए थे। एक मध बराबर 5.8319 ग्राम सोना होता है। मंदिर के दिगविजय द्वार में उल्लेखित है कि 1466 में गजपति कपिलेंद्र देव ने भारी मात्रा में सोने-चांदी के जेवरात दान किए थे।