Tazia procession on Muharram : इमाम हुसैन की शहादत पर मोहरर्म के तहत मुस्लिम समुदाय द्वारा ढोल, ताशे के साथ मातमी धुन में ताजिए के जुलूस निकाले गए। राजसमंद शहर के साथ जिलेभर में शांतिपूर्ण तरीके से ताजिए को ठंडा करने की रस्म निभाई गई। वहीं देवगढ़ शहर में ताजिए के जुलूस मार्ग में बैनर को लेकर विवाद छिड़ गया और करीब एक घंटे तक ताजिए आगे नहीं बढ़ा। बाद में पुलिस व प्रशासन द्वारा बैनर को हटाते हुए लोगों को खदेड़ा और जुलूस को आगे बढ़ाया। इस दौरान देवगढ़ कस्बा पुलिस छावनी बन गया।
Controversy over Muharram : देवगढ़ शहर में बुधवार को हमाम हुसैन की याद में ताजिए का जुलूस रवाना हुआ, जो सूरज दरवाजा से मारू दरवाजा के बीच सूरजदरवाजा पुलिस चौकी के सामने पहुंचा, जहां पर राजावतजी सीताराम जी मंदिर के बाहर बैनर नीचे लटका होने पर ताजिए के जुलूस को रोक दिया। करीब एक घंटे तक ताजिए का जुलूस आगे नहीं बढ़ा, तो उपखंड अधिकारी संदीप खेदर एवं अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अनंत कुमार मौके पर पहुंचे। प्रशासन द्वारा बैनर को थोड़ा किनारे किया, जिस पर हिन्दू संगठनों के लोगों ने आपत्ति जताते हुए विरोध किया। इस पर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों ने भीड़ खदेड़ा और बैनर ऊंचा करके ताजिए का जुलूस निकाल दिया। बताया जा रहा है कि श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का बैनर था, जो कई महीनों से लगा हुआ था, जबकि मुस्लिम समाज का कहना था कि यह बैनर अशांति का माहौल बनाने के लिए बुधवार सुबह ही लगाया है। क्योंकि रात को शांतिपूर्ण ताजिए को जुलूस निकल गया था। विवाद के बाद भारी पुलिस जाब्ता तैनात कर दिया गया और एकत्रित लोगों को तितर बितर कर दिया। फिलहाल ताजिए को ठंडा करने की रस्म पूरी कर ली गई है, मगर बाजार में एतियात के तौर पर पुलिस जाब्ता तैनात है। इधर, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को कहना है कि देवगढ़ में बैनर को लेकर मामूली विवाद हो गया था, मगर समझाइश पर लोग मान गए और शांतिपूर्ण तरीके से ताजिए का जुलूस निकाला गया।
राजसमंद में ढोल ढमाकों के साथ निकला ताजिए का जुलूस
राजसमंद शहर में मोहर्रम पर मुस्लिम समाज के लोगों ने शहर में परंपरानुसार ताजियों का जुलूस निकाला। इस अवसर पर शहर के राजनगर क्षेत्र में हुसैनी चौक से ताजियों का जुलूस शुरू हुआ जो सिलावट वाड़ी, दाणी चबूतरा, सदर बाजार, कबूतर खाना होता हुआ फव्वारा चौक पहुंचा । जहां से जुलूस फोर लेन सर्विस लाईन होते हुए नौ चोकी पहुंचा । जुलूस में बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज के लोगों ने पारंपरिक वस्त्रों में भाग लिया। ताजियों के जुलूस में अलग-अलग स्थानों पर मुकामों पर युवकों द्वारा अखाड़ा प्रदर्शन किया । ठोल तासों की मातमी धुन पर, या हुसैन के नारों के साथ जुलूस आगे बड़ता गया। । शहर में कई स्थानों पर मुस्लिम समाज द्वारा छबील लगाई गई जहां पर शरबत व खीर पिलाई गई।
भीड़ को खदेड़ा, मंदिर के दरवाजे पर पुलिस तैनात
सीतारामजी मंदिर के बाहर कुछ लोग एकत्रित होकर बैनर को हटाने का विरोध करने लगे। इस पर पुलिस जाब्ता पहुंच गया और जमीन पर लाठिया फटकारते हुए लोगों को इधर उधर खदेड़ दिया। मंदिर के दोनों दरवाजों पर पुलिस तैनात कर दी और बैनर को साइड में करके मोहर्रम का जुलूस निकाला गया।
सामाजिक संगठनों ने सोशल मीडिया पर जताई नाराजगी
देवगढ़ में बैनर हटाने को लेकर उपजे विवाद के बाद प्रशासनिक सख्ती को लेकर सामाजिक संगठनों ने नाराजगी जताई। इस पर कथित तौर पर भाजपा के कुछ पदाधिकारियों ने तो सोशल मीडिया पर इस्तीफे तक की चेतावनी दे डाली। फिलहाल देवगढ़ शहर में शांति है और पुलिस जाब्ता अब भी पूरे बाजार में तैनात है।
Muharram market stop : बंद रही बाजार की दुकानें
देवगढ़ में सूरज दरवाजा से मारू दरवाजा तक बाजार की सारी दुकानें बंद रही। ताजिए का जुलूस निकलने के बाद छिटपुट दुकाने खुली। इसके अलावा पूरे बाजार में सड़क के दोनों तरफ की दुकानों के शटर डाउन रहे और पुलिस जाब्ता तैनात रहा।
Muharram story : मोहर्रम की पूरी कहानी
साल 680 (61 हिजरी) का है, इराक में यजीद नामक इस खलीफा (बादशाह) ने इमाम हुसैन को यातनाएं देना शुरू कर दिया, उनके साथ परिवार, बच्चे, बूढ़े-बुजुर्ग सहित कुल 72 लोग थे. वह कूफे शहर की ओर बढ़ रहे थे, तभी यजीद की सेना ने उन्हें बंदी बना लिया और कर्बला (इराक का प्रमुख शहर) ले गई। कर्बला में भी यजीद ने दबाव बनाया कि उसकी बात मान लें, लेकिन इमाम हुसैन ने जुल्म के आगे झुकने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद यजीद ने कर्बला के मैदान के पास बहती नहर से सातवें मुहर्रम को पानी लेने पर रोक लगा दी। हुसैन के काफिले में 6 माह तक के बच्चे भी थे, अधिकतर महिलाएं थीं, पानी नहीं मिलने से ये लोग प्यास से तड़पने लगे। इमाम हुसैन ने यजीद की सेना से पानी मांगा, लेकिन यजीद की सेना ने शर्त मानने की बात कही। यजीद को लगा कि हुसैन और उनके साथ परिवार, बच्चे व महिलाएं टूट जाएंगे और उसकी शरण में आ जाएंगे, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ. 9वें मुहर्रम की रात हुसैन ने परिवार व अन्य लोगों को जाने की इजाजत दी और रात में रोशनी बुझा दी, लेकिन उन्होंने कुछ देर बाद जब रोशनी की तो, सभी वहीं मौजूद थे। सभी ने इमाम हुसैन का साथ देने का इरादा कर लिया। इसी रात की सुबह यानी 10वें मुहर्रम को यजीद की सेना ने हमला शुरू कर दिया। 680 (इस्लामी 61 हिजरी) को सुबह इमाम और उनके सभी साथी नमाज पढ़ रहे थे, तभी यजीद की सेना ने घेर लिया, इसके बाद हुसैन व उनके साथियों पर शाम तक हमला कर सभी को शहीद कर दिया।
History of Muharram : देखिए यह है पूरा इतिहास
यजीद ने इमाम हुसैन के छह माह और 18 माह के बेटे को भी मारने का हुक्म दिया। इसके बाद बच्चों पर तीरों की बारिश कर दी गई। इमाम हुसैन पर भी तलवार से वार किए गए। इस तरह से हजारों यजीदी सिपाहियों ने मिलकर इमाम हुसैन सहित 72 लोगों को शहीद कर दिया। अपने हजारों फौजियों की ताकत के बावजूद यजीद, इमाम हुसैन और उनके साथियों को अपने सामने नहीं झुका सका। दीन के इन मतवालों ने झूठ के आगे सिर झुकाने की बजाय अपने सिर को कटाना बेहतर समझा और वह लड़ाई आलम-ए-इस्लाम की एक तारीख बन गई। जंग का नतीजा तो जो हुआ वह होना ही था, क्योंकि एक तरफ जहां हजरत इमाम हुसैन के साथ सिर्फ 72 आदमी थे, जबकि यजीद के साथ हजारों की फौज थी। नतीजा यह हुआ कि जंग में एक-एक करके हजरत इमाम हुसैन के सभी साथी शहीद हो गए। आखिर में हुसैन ने भी शहादत हासिल की। इस्लामी इतिहास की इस बेमिसाल जंग ने पूरी दुनिया के मुसलमानों को एक सबक दिया कि हक की बात के लिए यदि खुद को भी कुर्बान करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए। वहीं मुहर्रम की 9 तारीख को हजरत इमाम हुसैन और उनके जांनिसारों की याद में ताजिए निकाले गए, मर्सिया पढ़ी गई और जगह-जगज जलसों का आयोजन किया गया, अकीदतमंदों ने लंगर और सबील वितरित की। आज यानी मुहर्रम पर ताजिए सुपुर्दे खाक किए गए।