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Royal Family : लोकतंत्र में भले ही अब राजा रजवाड़े न रहे हो, मगर पूर्व राजपरिवारों राजशाही की परम्पराएं आज भी जिंदा है। कुछ ऐसा ही नजारा राजसमंद जिले में आमेट पूर्व राज परिवार के राजमहल में देखने को मिला, जहां रावत प्रभुप्रकाश सिह के निधन पर मेवाड़ व मारवाड़ के तमाम राव, उमराव, ठिकानेदार और जागीदारों का बड़ा जमावड़ा रहा। रावत प्रभुप्रकाश सिंह का उदयपुर के पारस हॉस्पीटल में निधन हो गया था और उनकी पार्थिव देह को शनिवार अल सुबह 6 बजे आमेट शहर में स्थित राजमहल में लाया गया। Royal Family Amet

Rawat Prabhuprakash Singh passes away : आमेट राजमहल में मेवाड़, मारवाड़ के राव, उमराव, ठिकानेदार, जागीदारों के साथ शहरवासी व स्नेहीजनों के आने पर शनिवार सुबह 11 बजे पार्थिव देह को ब्रह्मदत्त दाधीच, अशोक दाधीच, चन्द्रशेखर दाधीच आदि पंडितों व राजपुरोहित परिवारों के वैदिक मंत्र व वैदिक रीति रिवाज अंतिम संस्कार के लिए रवाना हुए। उनके बेटे जयवर्द्धनसिंह व परिवार के सदस्यों ने अर्थी को कंधा दिया। अंतिम यात्रा में सबसे आगे बिन सवार 7 घोड़े चल रहे थे। फिर बैंड पर मातमी धुन के पीछे मार्ग में पुष्प बिछाए जा रहे थे और परिजन गमगीन माहौल में रावत प्रभु प्रकाशसिंह की अर्थी लेकर चल रहे थे। आगे ढोल, ताशे की धुन भी गूंज रही थी। वे 89 वर्ष की उम्र के थे और उनके निधन पर आमेट के बाजार आधे दिन तक बंद रहे। ठीक 11 बजे अंतिम यात्रा राजमहल से रवाना होकर नगर के सदरबाजार, होलीथान, सब्जी मंडी, भीलवाड़ा रोड होते हुए पौबाग स्थित महासतिया पहुंची, जहां पर कुँवर जयवर्द्धन सिंह के साथ दिलीपसिंह, धीरेंद्रसिंह, ज्ञानेन्द्रसिंह द्वारा मुखाग्नि दी गई। इस दौरान कोशीथल, देवगढ़, पारसोली, चाणोद, कोठारिया के साथ मेवाड़ मारवाड से कई राव, उमराव, ठिकानेदार, जागीदार, क्षत्रिय समाजजन मौजूद थे। प्रभु प्रकाश सिंह के भाई जिलोला के ठाकुर स्व. पुरुषोत्तमसिंह का पहले ही निधन हो गया था और दिलीपसिंह, धीरेंद्रसिंह व ज्ञानेंद्रसिंह उनके भतीजे है। Rajsamand news today

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Royal Family History : पूर्व राजपरिवार का इतिहास

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Royal Family History : आमेट पूर्व राजपरिवार में जन्मे प्रभुप्रकाशसिंह के पिता महारावत गोविंदसिंह और मां रानी हीर कंवर थी। कहते हैं प्रभुप्रकाशसिंह के जन्म पर राजमहल से सबसे बड़ी तोप छोड़ी गई थी। फिर अजमेर के मेयो कॉलेज से उच्च शिक्षा अंग्रेजी में प्राप्त की। फिर आपका विवाह चाणोद ठिकाने में की आनंद कंवर से हुआ। इससे पहले 1947 में मेवाड़ राज्य का भारत संघ में विलय हो गया, मगर 1955 तक आमेट ठिकाने की स्वायत्तता रही। 1960 में विद्रोही पक्ष ने आमेट का परकोटा ध्वस्त कर दिया। फिर 1962 में उनके पिता रावत गोविंदसिंह कुंभलगढ़ के विधायक चुने गए थे। प्रभु प्रकाश सिंह ने पैतृक विरासतों को संवारा और 1986 में हिन्दू धर्म सम्मेलन रखा। 1997 में उनके पिता रावत गोविंदसिंह का निधन हो गया। उसके बाद वे उदयपुर में अमराई घाट आवास में रहने लगे। हालांकि आमेट आना जाना बना रहा। महासतियां में रावत गोविंदसिंह की नवीन छतरी बनवाई व महारावत प्रतापसिंह की क्षतिग्रस्त छतरी की मरम्मत करवाई। शिकारवाड़ी में ओदी व तालाब में बंगला बनवाया। वर्ष 2016 में आमेट में वीरपत्ता सर्कल का निर्माण करवाया। संतान योग न होने पर छोटे भाई स्व. पुरुषोत्तमसिंह के पौत्र जयवर्द्धन सिंह को उत्तराधिकारी के रूप में गोद लिया और उनका विवाह अपने सानिध्य में करवाया व पोती बाइस से मिलन हुआ। गत वर्ष वीर जग्गाजी की जेताणा आसपुर में छतरी का निर्माण व उद्यापन करवाया। जीवन के अंत में अपने पौत्र व आमेट इतिहास लेखन की दो आकांक्षाएं अधूरी रह गई।