लक्ष्मणसिंह राठौड़ @ राजसमंद 

Kesar Bai : राजसमंद का शहर, जो अपने सांस्कृतिक धरोहर और अपनत्व भरे माहौल के लिए जाना जाता है, हाल ही में एक ऐसी महिला को अलविदा कह गया, जिसे यहां के लोग ‘केसर बाई’ के नाम से जानते थे। उसका असल नाम क्या था, वह कहां से आई थी, यह किसी को नहीं पता। बस, उसके बारे में जो थोड़ा-बहुत जाना गया, वह उसकी जिंदगी के आखिरी दिनों की कहानी है। शहर की गलियों में एक अनजान चेहरा था, जो हर किसी की नजरों में जाने-अनजाने बस चुका था। कहां से आई, कौन थी, यह सवाल जीवनभर अनुत्तरित ही रहा। अकेली जिंदगी जीते हुए, वह अक्सर श्री द्वारकाधीश मंदिर के पास दिख जाया करती थी। वहाँ आते-जाते लोगों में से कुछ ने उसे अपनत्व का भाव दिया और वह उनकी नजरों में “केसर बाई” बन गई।असल नाम क्या था, यह कोई नहीं जानता था। लेकिन राजसमंद के लोग उसे इसी नाम से पहचानने लगे। जीवन के आखिरी कुछ महीने उसने वृद्धाश्रम में बिताए, जहां उसकी देखभाल होती रही। हालांकि, समय का पहिया थमने से नहीं रुकता। केसर बाई का निधन हो गया। इस अनजान महिला के प्रति अपनत्व का भाव रखने वाले तैराकी गोवर्धन वैष्णव और कुछ युवाओं ने आगे आकर उसकी अंतिम यात्रा का जिम्मा उठाया। श्मशान घाट तक का सफर उन्होंने श्रद्धा और सम्मान के साथ तय किया। वहाँ विधि-विधान से केसर बाई का अंतिम संस्कार किया गया। एक अनाम जिंदगी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन अपने पीछे वह इंसानियत और अपनत्व की एक अमिट छाप छोड़ गई।

Interesting Story : मंदिर के पास दिखती थी परछाई सी शख्सियत

Interesting Story: श्री द्वारकाधीश मंदिर के आसपास अक्सर एक महिला दिख जाया करती थी। उसकी आंखों में अतीत के अनगिनत किस्से और होठों पर गहरी चुप्पी होती थी। वह अकेली थी, लेकिन फिर भी मानो मंदिर की रौनक का हिस्सा बन गई थी। शायद किसी को यह एहसास नहीं था कि यह चुप्पी एक गहरी कहानी समेटे हुए थी।

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पति का पहले ही हो चुका था निधन

कहते हैं कि उसका जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। पति का निधन कब और कैसे हुआ, यह बात भी कोई नहीं जानता। परंतु उसकी आंखों में बसी उदासी और चेहरे की झुर्रियां शायद यह बयां करती थीं कि उसने जीवन में न जाने कितने दुख झेले होंगे।

बिना नाम की पहचान: केसर बाई

शहर के कुछ लोगों ने उसे अपनत्व का नाम दिया: ‘केसर बाई’। यह नाम उसकी पहचान बन गया। लोग उसे इसी नाम से पुकारने लगे। यह नाम उसकी अज्ञात कहानी को थोड़ी सी पहचान देने की कोशिश जैसा था।

कुछ लोगों का लगाव और वृद्धाश्रम का सहारा

समाज के कुछ दयालु लोग उसके प्रति अपनत्व का भाव रखते थे। शायद यही कारण था कि उसकी जिंदगी के आखिरी दिनों में उसे वृद्धाश्रम का सहारा मिला। हालांकि वृद्धाश्रम की दीवारें उसकी तन्हाई को पूरी तरह मिटा नहीं सकीं, लेकिन वह वहां थोड़ी राहत जरूर महसूस करती थी।

अंतिम विदाई: जब अपनत्व ने पराया दर्द अपना लिया

केसर बाई का निधन हो गया। यह खबर जैसे ही राजसमंद में फैली, उन लोगों के दिलों में हलचल मच गई, जिन्होंने कभी उसे मंदिर के पास देखा था। असल में, यह वह अपनत्व था जो एक अजनबी को भी अपना बना देता है।

Humanity Initiative : तैराकी गोवर्धन वैष्णव का नेक कदम

शहर के तैराकी गोवर्धन वैष्णव और उनके कुछ युवा साथियों ने केसर बाई के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली। यह कदम न केवल उनकी मानवता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि किसी का दर्द कैसे सबका दर्द बन सकता है। उन्होंने केसर बाई के शव को श्मशान तक ले जाने और विधि-विधान से अंतिम संस्कार करने की जिम्मेदारी निभाई।

श्मशान में बसी जिंदगी की आखिरी यात्रा

श्मशान की आग ने केसर बाई की अनकही कहानियों को अपने साथ ले लिया। लेकिन यह यात्रा सिर्फ उसकी नहीं थी। यह उन अनगिनत लोगों की कहानी है, जिनकी जिंदगियां बेनाम रह जाती हैं। केसर बाई का अंतिम संस्कार इस बात का सबूत है कि मानवता अभी भी जिंदा है।

Rajsamand News : एक अनकही दास्तान

Rajsamand News : केसर बाई की कहानी कोई साधारण कहानी नहीं थी। यह कहानी थी एक ऐसी महिला की, जिसने तन्हाई, दुख, और संघर्ष के बीच अपनी जिंदगी गुजारी। यह कहानी थी उन लोगों की, जिन्होंने उसे अपनाया और अंत तक उसका साथ दिया।

राजसमंद के दिलों में जिंदा रहेगी याद

आज केसर बाई इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें राजसमंद के लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगी। उनकी यह कहानी सिखाती है कि इंसानियत की सबसे बड़ी ताकत अपनत्व है। यह अपनत्व ही है, जो किसी बेनाम को नाम और किसी तन्हा को सहारा दे सकता है।

अनजान महिला के लिए अपनत्व की मिसाल 

केसर बाई की कहानी उन अनगिनत कहानियों का प्रतिनिधित्व करती है, जो अक्सर दुनिया की नजरों से ओझल रह जाती हैं। उनकी जिंदगी और मृत्यु हमें सिखाती है कि हमारे छोटे-छोटे कदम, जैसे अपनत्व का भाव, किसी की जिंदगी में कितना बड़ा बदलाव ला सकते हैं। राजसमंद ने केसर बाई को आखिरी विदाई दी, लेकिन उनके लिए जो अपनत्व दिखाया गया, वह हमेशा इस शहर की इंसानियत की मिसाल बना रहेगा।

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