Sushila Meena is Real Story : 12 वर्षीय सुशीला मीणा, राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के धरियावद तहसील के एक छोटे से गांव की बेटी, सचिन तेंदुलकर के एक छोटे से वीडियो के जरिए देशभर में चर्चित हो गई। लेकिन यह कहानी सिर्फ सोशल मीडिया के लाखों व्यूज की नहीं है। सुशीला और उसके परिवार की असल कहानी दिल को झकझोरने वाली है, जिसमें गरीबी, संघर्ष और हौसलों की मिसालें छिपी हुई हैं। सुशीला के पिता रतन मीणा अहमदाबाद में मजदूरी करते हैं। मां शांतिबाई पहले मजदूरी करती थीं, लेकिन अब बच्चों की पढ़ाई और घर संभालने में लगी हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत 2017 में मिले 80,000 रुपए उनकी पत्नी की बीमारी और बाइक की किस्तों में खर्च हो गए। नतीजा यह हुआ कि परिवार आज भी छप्पर और घास-फूस के मकान में रहता है। यह विडंबना है कि जिस देश में खेल प्रतिभाओं को निखारने के बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, वहीं सुशीला का परिवार गैस सिलेंडर भरवाने तक का खर्च नहीं उठा पाता और चूल्हे पर खाना बनाने को मजबूर है।
Susheela Meena viral Video : सुशीला की संघर्षभरी कहानी
Susheela Meena viral Video : सुशीला के गांव का प्राथमिक स्कूल खेल सुविधाओं से कोसों दूर है। वहां न ग्राउंड है, न क्रिकेट के लिए जरूरी सामान। सुशीला की प्रतिभा को पहचानकर उनके शिक्षक ईश्वरलाल ने खुद उन्हें बैट-बॉल उपलब्ध करवाया। स्कूल का जर्जर कंपाउंड ही उनका अभ्यास स्थल बन गया। कोयले से बनाई गई दीवार पर विकेट और टेनिस बॉल से प्रैक्टिस करते हुए सुशीला ने अपनी गेंदबाजी में ऐसा निखार लाया कि आज गांव का कोई भी लड़का उनकी बॉल का सामना नहीं कर पाता। सुशीला की मां शांति बाई का सपना है कि उनकी बेटी क्रिकेटर बने। लेकिन इस सपने को साकार करने के लिए जिस बुनियादी सहारे की जरूरत है, वह उन्हें कभी सरकार से नहीं मिली। उनके घर में न टीवी है, न बिजली नियमित रहती है। बच्चे इमरजेंसी लाइट में पढ़ाई करने को मजबूर हैं।
राजनीतिक उपेक्षा का काला सच
सुशीला का वीडियो वायरल होने के बाद उनके घर पर कई नेता, अधिकारी और बड़े लोग मिलने आए। लेकिन उनकी तारीफों के पुल बांधने के अलावा किसी ने मदद की पहल नहीं की। राजस्व मंत्री हेमंत मीणा से लेकर पंचायत प्रतिनिधियों तक, सभी ने सिर्फ औपचारिकता निभाई। गांव में खेल मैदान या अन्य सुविधाओं की व्यवस्था के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। यह स्थिति सरकार की उन बड़ी-बड़ी योजनाओं पर सवाल उठाती है, जिनका दावा है कि वे ग्रामीण प्रतिभाओं को मंच प्रदान करेंगी।
शिक्षा और खेल को लेकर सरकार के वादे हवा में ही नजर आते हैं। जिस स्कूल में सुशीला पढ़ती है, वहां 9 में से 4 शिक्षक हाल ही में ट्रांसफर हो गए। बच्चों को पढ़ाने के लिए अब केवल 5 शिक्षक हैं। खेल सामग्री के नाम पर केवल एक शिक्षक के प्रयासों का सहारा है। यह शर्मनाक है कि सरकारें सिर्फ योजनाओं का प्रचार करती हैं, लेकिन उनकी जमीनी सच्चाई पर कोई ध्यान नहीं देती।
सपनों को पंख देने की पहल
सुशीला के संघर्ष को देखकर कुछ निजी संस्थान और व्यक्ति मदद के लिए आगे आए हैं। आदित्य बिरला ग्रुप ने सुशीला की पढ़ाई और ट्रेनिंग की जिम्मेदारी उठाने का वादा किया है। मिस इंडिया 2022 की ओर से परिवार को 51,000 रुपए का चेक दिया गया। क्रिकेटर अशोक मेनारिया के कोच ने सुशीला को उदयपुर बुलाने की पेशकश की है। मुंबई में रोहित शर्मा और शार्दुल ठाकुर के कोच भी उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए तैयार हैं।
लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या इन वादों से सुशीला का भविष्य सुरक्षित हो पाएगा? जब तक सरकारें अपने दायित्वों को नहीं समझेंगी और हर गांव में बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंचाएंगी, तब तक ऐसे हजारों बच्चों के सपने अधूरे ही रह जाएंगे।
मां का सपना, बेटी का हौसला
सुशीला की मां शांति बाई और दादी सुखमी के हौसले को सलाम करना चाहिए। पांचवीं तक पढ़ी शांति बाई ने ठान लिया है कि वह हर हाल में अपनी बेटी को पढ़ाएंगी और क्रिकेट में आगे बढ़ाएंगी। दादी सुखमी, जो अपने जमाने में घर की चारदीवारी में बंधी रहीं, आज अपनी पोतियों को क्रिकेट खेलते देखकर गर्व महसूस करती हैं। यह उनकी पीढ़ियों का बदलाव है, जो दिखाता है कि अगर सही दिशा और समर्थन मिले, तो कोई भी बच्चा आसमान छू सकता है।
खेल प्रतिभाओं को चाहिए समर्थन, न कि सहानुभूति
सुशीला की कहानी उन सभी नेताओं और अधिकारियों के लिए आईना है, जो केवल तस्वीर खिंचवाने और बयान देने में लगे रहते हैं। उनके गांव में बिजली, पानी, शिक्षा और खेल के बुनियादी संसाधनों की कमी आज भी मौजूद है। ऐसे में अगर सुशीला जैसी प्रतिभा आगे बढ़ भी जाए, तो यह केवल उनकी मेहनत और परिवार के त्याग का नतीजा होगा, न कि सरकारी सहायता का।
सुशीला आगे बढ़ी, तो गर्व करेगा पूरा देश
सुशीला मीणा न केवल एक क्रिकेटर बनने का सपना देखती हैं, बल्कि वह उन लाखों बच्चों की प्रेरणा हैं, जो गरीबी और उपेक्षा के बावजूद कुछ बड़ा हासिल करना चाहते हैं। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि हर बच्चा एक प्रतिभा है, जिसे केवल सही अवसरों की जरूरत है।
सरकारों को यह समझना होगा कि केवल योजनाओं की घोषणा करना काफी नहीं है। उन्हें जमीनी स्तर पर लागू करना और जरूरतमंदों तक पहुंचाना भी उनकी जिम्मेदारी है। वहीं, समाज को यह याद रखना होगा कि सुशीला जैसी प्रतिभाओं को सहानुभूति नहीं, बल्कि समर्थन की जरूरत है। आज सुशीला का सपना हमारा सपना बनना चाहिए, ताकि कल वह एक ऐसी क्रिकेटर बने, जिस पर पूरा देश गर्व कर सके।