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story of freedom movement : देश के स्वतंत्रता आंदोलन की गौरवगाथा के इतिहास में एक अनोखी कहानी सामने आई, जिसमें एक ऐसा स्थल है, जहां आजादी से पहले ही तिरंगा फहरा दिया गया था। वह ऐतिहासिक स्थल है राजस्थान का ब्यावर कस्बा, जहां पर न केवल अंग्रेजी शासन के दौरान तिरंगा फहराया गया, बल्कि आजादी के आंदोलनों में यह शहर एक प्रमुख केंद्र भी रहा। 1930 में जब देश के अन्य हिस्सों में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष चल रहा था, ब्यावर ने देशवासियों को प्रेरित करते हुए नगर परिषद भवन पर तिरंगा फहरा कर साहस और गर्व का परिचय दिया। इस ऐतिहासिक कदम ने स्वतंत्रता संग्राम के उत्साह को नई ऊर्जा दी। ब्यावर की यह गौरवशाली गाथा न केवल इतिहास का हिस्सा है, बल्कि आज भी नई पीढ़ी को प्रेरणा देने का काम करती है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इसकी भूमिका और योगदान इसे भारत के इतिहास में विशेष स्थान प्रदान करता है।

Republic Day : ब्यावर नगर परिषद, जिसे प्रदेश की पहली नगरपालिका होने का गौरव प्राप्त है, ने 1930 में ही अपने भवन पर तिरंगा फहरा दिया था। यह भवन, जो स्कॉटलैंड के एडिनबरा शहर के टाउन हॉल के नक्शे पर आधारित था, अंग्रेजी शासन के दौरान एक प्रमुख प्रशासनिक केंद्र था। इसका निर्माण 14 फरवरी 1910 को तत्कालीन काल्विन कमिश्नर ने किया था और इसे “काल्विन हॉल” नाम दिया गया। बाद में आजादी के बाद इसका नाम बदलकर “नेहरू भवन” रखा गया। 26 जनवरी 1930 को, भारतीयों और अंग्रेजों के बीच सामूहिक शासन के प्रस्ताव के दौरान, यहां तिरंगा फहराया गया। यह कदम न केवल अंग्रेजों के शासन के प्रति असंतोष का प्रतीक था, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में दर्ज हुआ।

स्वतंत्रता सेनानियों की तपोभूमि है ब्यावर

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, ब्यावर स्वतंत्रता सेनानियों के प्रशिक्षण और रणनीतियों का केंद्र था। औद्योगिक रूप से विकसित इस शहर में स्वतंत्रता सेनानियों का लगातार आना-जाना लगा रहता था। यहां के श्यामगढ़ किले को सेनानियों के प्रशिक्षण स्थल के रूप में उपयोग किया गया। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में तात्या टोपे, रास बिहारी बोस, चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, और केसरीसिंह बारहठ का नाम प्रमुख है। इसके अलावा, ठाकुर गोपालसिंह खरवा, विजयसिंह पथिक, अर्जुनलाल सेठी और सेठ दामोदरदास राठी जैसे कई महान क्रांतिकारियों ने यहां अपनी गतिविधियां संचालित कीं।

औद्योगिक और ऐतिहासिक महत्व का शहर

नगर परिषद और रेलवे का योगदान :

1866 में ब्यावर में नगर परिषद की स्थापना की गई। 1880 में यहां रेलवे का आगमन हुआ, जिससे शहर ने औद्योगिक क्षेत्र में कदम रखा। इस समय कपड़ा मिलों का संचालन भी शुरू हुआ, जिसने ब्यावर को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया।

परकोटा और ऐतिहासिक द्वार

ब्यावर को “परकोटा वाला शहर” भी कहा जाता था। यहां के अजमेरी गेट, मेवाड़ी गेट, चांग गेट और सूरजपोल गेट शहर की ऐतिहासिक संरचनाओं में गिने जाते हैं। इन द्वारों के भीतर का मुख्य बाजार व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था।

सूचना का अधिकार: नई क्रांति की शुरुआत

आजादी के बाद भी, ब्यावर ने कई आंदोलनों में अपनी भागीदारी दर्ज कराई। सूचना का अधिकार आंदोलन का शुभारंभ इसी शहर के चांग गेट से हुआ। यह पहल भारत में पारदर्शिता और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई। हालांकि यह कहते हैं राजसमंद जिले में भीम से अरुणा राय ने शुरुआत की। बाद में ब्यावर इलाके में सर्वाधिक आंदोलन हुए।

Republic Day History : इतिहास के पन्नों में आजादी की गौरवगाथा

Republic Day History : देश भले ही 1947 में आजाद हुआ, लेकिन नगरपरिषद ब्यावर में वर्ष 1930 में तिरंगा फहरा दिया था। इस भवन का नक्शा स्कॉटलैंड के एडिनबरा शहर के टाउन हॉल के अनुरूप ही बनाया है। एक मई 1867 को ब्रिटेन सरकार की बागडोर ईस्ट इंडिया कम्पनी से लेकर मेरवाड़ा स्टेट में कमिश्नरी अपने अधीन लेकर कमिश्नर नियुक्त किया। यह कमिश्नर कार्यालय मुख्य बाजार में चलता था। इसके बाद स्कॉटलैंड के एडिनबरा शहर के टाउन हाल के अनुरूप ही ब्यावर में टाउन हॉल बनाया गया। इसका लोकार्पण 14 फरवरी 1910 में तत्कालीन काल्विन कमिश्नर ने किया। इस भवन का नाम भी काल्विन हॉल रखा गया। देश आजाद होने के बाद इसका नाम नेहरू भवन कर दिया गया। 1920 के बाद नाथूलाल को चेयरमैन नियुक्त किया गया। 26 जनवरी 1930 को भारतीय व अंग्रेजों के बीच मिल-जुलकर शासन करने का प्रस्ताव पारित किया था। इस दौरान ही नगर परिषद पर तिरंगा फहरा दिया गया। यहां पर अंग्रेज अफसर बैठते थे। ब्यावर में होने वाली हलचल अंग्रेज हुकूमत तक सीधी पहुंचती थी जो कि बहुत महत्वपूर्ण हुआ करती थी।

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