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बाड़मेर के हस्तशिल्पकार टीकमचंद के हुनर और कला का हर कोई दीवाना है। इन्होंने अपने घर में मानो पूरा राजस्थान बसा रखा है। राजस्थान के ऐतिहासिक स्थलों का एक भी ऐसा मॉडल नहीं है जो इनके घर में न हो। खास बात यह है कि यह सभी इन्होंने अपने हाथ से बनाए हैं। टीकमचंद ने अपने हुनर और कला से जयपुर के हवामहल, जोधपुर के मेहरानगढ़, जैसलमेर के सोनार किले जैसे दिखने वाला मॉडल तैयार किया है। जब इन कलाकृतियों की किसी ने कदर नहीं की तो अपने कच्चे घर में अपने पत्नी के नाम से गोमती म्यूजियम कला केन्द्र बना दिया। इन सुंदर आकर्षक आकृतियों के अलावा करीब 150 अन्य कलाकृतियां बना चुके हैं।

बाड़मेर रूपाणियों की ढाणी निवासी टीकमचंद बताते हैं कि मुझे बचपन से आकृतियां बनाने का शौक था। परिवार की आर्थिक हालात की वजह से मैं करीब 30 साल की उम्र में मजदूरी के लिए जैसलमेर गया था। उस दौरान सोनार किले में मरम्मत का काम चल रहा था। वहां पर मजदूरी के साथ ही मुझे काम भी सीखने का मौका मिला। जैसलमेर में सोनार किले काम करने के दौरान किले की आकृतियों को देखता रहता था। मैंने वहां सोनार किले की आकृतियों को थर्माकोल पर बनाता रहता था। मेरी आकृतियों को देखकर पर्यटक और अंग्रेज प्रशंसा करते थे। इससे मेरा हौसला बढ़ता गया। इस दौरान मैंने जयपुर का हवामहल, जोधपुर का मेहरानगढ़ देखा। पर्यटकों द्वारा मेरी हौसला अफजाई देकर मुझे लगा मुझे मेरे जिले में पहचान मिलेगी। इसके बाद जैसे ही काम खत्म हुआ बाड़मेर आ गया और यहां इन मॉडल को बनाना शुरू कर दिया।

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टीकमचंद बताते हैं कि हवामहल, सोनार किला, मेहरानगढ़ सहित मूर्तियाें को थर्माकोल, लकड़ी, पत्थर,चूना मैटीरियल से आकृतियां बनाता हूं। डायनासोर 15-20 लंबा कपड़े से बनाया है। इन आकृतियों को बनाने में समय भी ज्यादा लगता है और खर्चा भी ज्यादा आता है। जैसलमेर का सोनार किला बनाने में 5, जयपुर का हवा महल बनाने में 2, जोधपुर का मेहरानगढ का किला बनाने में 1 साल का समय लगा। इनको बनाने मे किसी भी 20-25 हजार रुपए का खर्चा आता है तो किसी में 30-35 हजार का खर्चा लगता है। सबसे ज्यादा पैसा साेनार किला बनाने में 50-60 हजार रुपए खर्च हुए हैं।

बचपन से शौक

टीकमचंद बताते हैं कि बचपन में कलाकृतियां बनाने का शौक था। मैंने कक्षा आठवीं तक पढ़ाई की है। आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई छूट गई। इसके बाद अब बड़ी कलाकृतियां बनाने लग गया हूं। शुरू से यही काम कर रहा हूं अब कोई दूसरा काम भी नहीं कर सकता हूं। अब दोनों वक्त की रोटी का सहारा भी यही कलाकृति है।

जैसलमेर में पर्यटन और प्रशासन की मदद मिली थी

टीकमचंद का कहना है कि मैं जैसलमेर करीब 20-25 साल तक रहा वहां पर काम भी सीखा। काम सीखने के बाद मैने जैसलमेर में मूर्ति, सोनार किला की अलग-अलग कलाकृतियां बनाई थी और देशी-विदेशी पर्यटक खूब आते थे। मेरे काम की सराहना करने के साथ पैसों की मदद भी करते थे। जैसलमेर प्रशासन ने मरु महोत्सव और म्यूजियम केन्द्र पर कलाकृतियों को रखते थे। वहां पर गुजरा अच्छा चल रहा था। जैसलमेर में रहने के दौरान एक बड़े पत्थर पर छोटे-छोटे पत्थरों की चिनाई कर शानदार सोनार दुर्ग का मॉडल बनाया था।

घर पर बना दिया म्यूजियम

टीकमचंद के मुताबिक जब हवामहल, सोनार किला, मेहरानगढ़ बनाया था। उम्मीद थी कि सरकार कुछ मदद करेगी और म्यूजियम सेंटर पर इनको ले जाकर रखूंगा, लेकिन पिछले दो दशक से सरकार और प्रशासन ने कुछ भी मदद नहीं की। अब घर में ही म्यूजियम केन्द्र बना दिया है। पम्पलेट छपवाकर बाजारों में ले जाकर बांटता हूं जहां जगह मिलती वहां चिपका देता हूं। इससे लॉकडाउन से पहले 15-20 लोग प्रतिदिन आ जाते थे। एक व्यक्ति के लिए 50 रुपए की फीस रखी हुई है इससे 800-1000 रुपए मिल जाते थे लेकिन लॉकडाउन और इसके बाद आर्थिक हालात खराब होती जा रही है। अब दिन 5-7 लोग ही पहुंच पाते हैं।

बनाना चाहता और कलाकृतियांलेकिन आर्थिक तंगी ने रोक दिया

टीकमचंद बताते है कि मैं और भी कलाकृतियां बनाना चाहता हूं लेकिन एक तरफ तो आर्थिक तंगी के चलते बना नहीं पा रहा हूं तो दूसरी तरफ मेरे घर में रखने की जगह नहीं है और बना भी दूं बारिश या तेज आंधी में खराब हो जाएगे। पहले बने हवामहल, सोनार किले को भी कभी प्लास्टिक ढकता हूं कोई देखने आता है तो फिर वापस हटाता हूं।

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