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विजय शर्मा
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काउंटर पर चार घंटे से इंतजार में लम्बी कतारें। किसी को सिटी स्केन कराना है तो छह घण्टे के इन्तजार में बड़ी भीड़, किसी को अपनी जांच रिपोर्ट डॉक्टर को दिखानी है तो तीन चार घंटे का लम्बा इन्तजार। फिर वार्ड की स्थिति तो और भी भयानक, जहां एक गम्भीर रोगी ऑक्सीजन न मिलने पर दूसरे गंभीर मरीज के बेड खाली होने के इंतजार में तड़प रहा है। मरीज के परिजन चाहकर भी अपने माता पिता या भाई की मदद नहीं कर पा रहे हैं। मगर ऐसी विषम परिस्थितियों में भी धन्यवाद हैं उन डॉक्टर्स और नर्सिंग कर्मियों को जो बड़ी मुस्तैदी से लोगों की सेवा में लगे हुए हैं। इस हालात में राजसमन्द के कुछ निस्वार्थ स्वयंसेवकों ने भी मरीजों की सहायता करने का बीड़ा उठा रखा है। जिनमें भैरूलाल जाट, कृष्णा आचार्य के साथ युवाओं की बड़ी टीम है, जो चिकित्सा में सहायक जीवन रक्षक उपकरण देकर कई लोगों को समुचित चिकित्सा दिलाने में मदद कर रहे हैं। किसी को ऑक्सीजन सिलेण्डर, किसी को ऑक्सीजन किट, तो किसी को इन्जेक्शन पहुंचा रहे हैं। गम्भीर मरीजों के लिए वेंटीलेटर बेड की व्यवस्था भी विभिन्न प्राइवेट अस्पतालों में करवा रहे हैं। इन दिनों सरकारी अस्पतालों की क्षमता से चार गुना अधिक मरीज भर्ती हो रहे हैं। ऐसे में सरकार व किसी राजनेता के भरोसे रहने के बजाय इस टीम के साथ एडवोकेट नीलेश पालीवाल के नेतृत्व में जीवन रक्षक उपकरण खरीदने की मुहिम में कुछ लोग जुडक़र अपनी छोटी छोटी आर्थिक मदद से मरीजों की जान बचाने में लगे हुए हैं, जो बधाई के पात्र हैं।
वहीं दूसरी तरफ कुछ लापरवाह इनकी मदद का दुरुपयोग भी कर रहे हैं। एक मरीज के लिए ऑक्सीजन किट की व्यवस्था की, तो मरीज की मृत्यु के बाद पुन: लौटाने की बजाय परिजनों ने कुछ कीमत लेकर किट किसी और को बेच दिया। इसी तरह समाजसेवा की भावना से मरीजों के लिए ऑक्सीजन मास्क खरीदकर अस्पताल में दिए तो अस्पताल के ही किसी सहायककर्मी ने बड़ी रेट पर अन्य को बेच दिए। कुछ मरीजों की मृत्यु हो गई, तो कुछ लोगों ने मदद में मिले सिलेंडर तक बेच डाले। इससे अस्पताल के कतिपय कार्मिकों के साथ ही जनसेवा का लाभ लेने वाले परिजनों ने इंसानियत को ही धत्ता दिखा दिया।
वाह रे इंसान! इतनी लाशों को देखकर भी शरीर के भीतर का मानव जागृत न हुआ। कुछ मेडिकल फिल्ड में भी चांडाल है, जो ऐसे विकट हालात में भी इन लाशों के ढेर पर बैठकर कालाबाजारी से अपनी जेबे भरने में लगे हैं। उनके बारे में ज्यादा कहना बेकार है।
एक बात जो बहुत जरूरी है कि अभी कोरोना की जांच हो या उपचार के लिए लगी कतार। इस कतार में कहीं भी सोशल डिस्टेसिंग नहीं दिखती। भीड़ भाड़ और टकराहट के हालात में जिसे कोरोना नहीं होगा, वह भी कोरोना संक्रमित होना स्वाभाविक है। कम से कम ऐसी जगहों पर अस्पताल प्रशासन को चाहिए कि वे व्यवस्था के लिए होम गार्ड, पुलिस के जवान लगाए, ताकि कोरोना गाइडलाइन की जिस तरह से बाजार व सडक़ों पर पालना करवाई जा रही है, ठीक उसी तरह अस्पतालों में भी उसकी पालना बहुत जरूरी है। अगर अस्पताल समझकर कोरोना गाइडलाइन की पालना नहीं करवाई, तो दिनोंदिन इसी तरह संक्रमित बढ़ते जाएंगे और स्वस्थ लोग भी इसी तरह संक्रमित होते जाएंगे। मैं जिला कलक्टर अरविंद कुमार पोसवाल से भी अनुरोध करता हूं कि अस्पतालों में जांच, उपचार व सैम्पलिंग के लिए लगने वाली कतार को व्यवस्थित करने के लिए होम गार्ड या पुलिस के जवान जरूर तैनात करें, जिससे कई हद तक कोरोना का संक्रमण कम फैलेगा। बाकी कई लोग ऐसे भी है, जो अस्पतालों के ऐसे हालात देखकर वापस घर लौट रहे हैं और इस कतार व लापरवाही की वजह से डॉक्टर और वहां कार्यरत नर्सेज भी हैरान, परेशान है।
कोरोना ने यूं तो बहुत कुछ नुकसान किया है, मगर कुछ लोगों को जिन्दगी और मौत से परिचित करा दिया है। बड़े बड़े रसूखदार लोग इस महामारी में ऑक्सीजन के लिए गिड़गिड़ाते देखे जा रहे हैं। बड़े बड़े पूंजीपति लाखों खर्च कर भी खुद को नहीं बचा पा रहे हैं। अन्त में मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि रोज अस्पतालों से निकलती लाशों को देखकर हम चाहे तो अपनी स्वयं की मृत्यु को सामने खड़ी देख सकते हैं और मरने के बाद हमारा रूतबा, हमारा वैभव कुछ भी साथ नहीं आने वाला है। एक होम्योपैथी के डॉ. प्रकाश शर्मा जो सिर्फ दवा के लिए नाम मात्र की कीमत लेकर मरीजों को जीवन प्रदान कर रहे हैं। इस हालात को हम भी चाहे तो मानव सेवा का एक अवसर बना सकते हैं और इस त्रासदी से मानव जाति को राहत देने के लिए अपने सामथ्र्य के अनुसार तन, मन या धन से सहायता कर सकते हैं।