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घर-घर औषधि योजना के अंतर्गत आयुर्वेद की चार प्रजातियों के औषधीय पौधे तुलसी, कालमेघ, अश्वगंधा और गिलोय वन विभाग की पौधशालाओं में उगाकर जुलाई-अगस्त से नवंबर-दिसम्बर माह के मध्य वितरित किये जायेंगे। इन्हें प्राप्त कर आप अपने बगीचे और गमलों में लगा सकते हैं। आज की चर्चा इन औषधीय पौधों के रोपण, सार-संभाल और घर पर उगाये गये पौधों से बीज और कलम तैयार कर भविष्य में नये पौधे उगाने पर केन्द्रित है।

पौधों को उगाने के लिये कुछ सुझाव सभी प्रजातियों के लिये लागू होते हैं| प्रजाति के लिये विशेष सुझाव भी दिये गये हैं। वन विभाग की पौधशालाओं से तुलसी, अश्वगंधा, कालमेघ और गिलोय के पौधे प्राप्त कर सकते हैं। पौधों को घर ले जाते समय मिट्टी का पिंड नहीं टूटना चाहिये अन्यथा जड़ें बिखर जाने से पौधा सूख सकता है। घर आंगन में छोटा सा गड्ढा खोदकर बाहर निकाली गई मिट्टी में एक किलो कंपोस्ट या गोबर की खाद मिलाकर वापस गड्ढा भरकर पौधे को रोपित करना चाहिये। यदि अपार्टमेन्ट की बालकनी या टेरेस-गार्डेन में रखे गमलों में लगाना हो तो कम से कम 12 इंच ऊंचाई का गमला लेकर खाद और मिट्टी के मिश्रण से भर कर पौधा रोपित किया जाना चाहिये। पौधा लगाते समय थैली को तीखे औजार से सावधानीपूर्वक काटना है ताकि मिट्टी का पिंड नहीं टूटे। रोपण के पश्चात पौधे को पानी अवश्य देना चाहिये। बाद में समय समय पर पानी देने के बाद जब ऊपर की मिट्टी सूख जाये तब खुरपी या लकड़ी से हल्की गुड़ाई करना चाहिये।

तुलसी को सप्ताह में अधिक से अधिक दो बार सिंचाई करना चाहिये। तुलसी के पौधे धूप और छाया दोनों ही स्थानों में पनप जाते हैं। बीज लगभग साल भर आते रहते हैं। पकने पर बीज एकत्र करते रहना चाहिये। अगली वर्षा-ऋतु के पहले अतिरिक्त पौधे उगाने के इन बीजों की बुवाई कर पौधे तैयार किये जा सकते हैं। तुलसी के जिस शाखा में फूलों की मंजरी आ जाती है, उसे बीज एकत्र करने के बाद, मंजरी से चार इंच नीचे तना काट देने पर नई शाखायें फूटती हैं। तुलसी की हरी पत्तियां औषधीय उपयोग के लिये उत्तम होती हैं। पत्तियों को छाया में सुखाकर भी सुरक्षित एक वर्ष तक रख सकते हैं और काम में ले सकते हैं। तुलसी के एक मुट्ठी बीज में वजन 22 ग्राम होता है और संख्या 48,400 होती है। एक ग्राम वजन में 2,200 बीज आते हैं।

अश्वगंधा को सप्ताह में अधिक से अधिक दो बार सिंचाई करना चाहिये। पानी देने के बाद जब ऊपर की मिट्टी सूख जाये तब खुरपी या लकड़ी से हल्की गुड़ाई करना चाहिये। अश्वगंधा एक झाड़ीनुमा पौधा है जो तेज धूप में भी अच्छा पनप जाता है। पौधारोपण के चार माह पश्चात अश्वगंधा की जड़े परिपक्व होना शुरू हो जाती हैं। इन्हें उखाड़ कर, सुखा कर सुरक्षित रख लेना चाहिये। बाद में आवश्यकतानुसार प्रयोग में ले सकते हैं। अश्वगंधा की पत्तियां भी उपयोग में आती हैं अतः जड़ से उखाड़ने की बजाय कुछ पौधे घर में लगाये रखना चाहिये। अश्वगंधा के बीज मार्च से जून तक आते हैं। लाल पके हुये फलों को एकत्र कर सुरक्षित रखना चाहिये। वर्षा-ऋतु के समय नये पौधे उगाने के लिये बुवाई कर सकते हैं। अश्वगंधा के एक मुट्ठी बीजों का वजन 20 ग्राम होता है और बीजों की संख्या 8,520 होती है। अश्वगंधा में 426 बीज प्रति ग्राम होते हैं।

कालमेघ को सप्ताह में अधिक से अधिक तीन बार सिंचाई करना चाहिये। पानी देने के बाद जब ऊपर की मिट्टी सूखी हो जाये तब खुरपी या लकड़ी से हल्की गुड़ाई करना चाहिये। कालमेघ एक शाकीय पौधा है और इसकी जड़, तना, पत्ती, फूल और फल सभी उपयोग में आते हैं। कालमेघ के बीज जनवरी से फरवरी तक आते हैं। पकने पर इनको एकत्र करते रहिये और अगली वर्षा ऋतु के पहले नये पौधे उगाने के लिये बुवाई कीजिये। पानी की व्यवस्था हो तो कालमेघ की बुवाई का सबसे उत्तम समय अप्रैल से मई तक रहता है। कालमेघ के एक मुट्ठी बीच में 30 ग्राम बीज आते हैं जिनकी कुल संख्या 13,500 बीज होती है। इस प्रकार एक ग्राम भार में 450 बीज होते हैं।

गिलोय या गुडूची एक काष्ठीय लता है जो नीम आदि वृक्षों के सहारे चढ़ाई जा सकती है। फ्लैट में बालकनी की रेलिंग में भी चढ़ा सकते हैं। घर आंगन में किसी वृक्ष के सहारे रोपित कर सकते हैं। गमले में लगाना हो तो रोपित कर किसी रेलिंग या सहारे के साथ गमला रखन उचित है ताकि बेल बढ़ सके। गिलोय को सप्ताह में अधिक से अधिक एक या दो बार सिंचाई करना चाहिये। पौधारोपण के एक वर्ष बाद गिलोय का तना परिपक्व होना शुरू हो जाता है। इसे ऊपर की ओर से काटकर काम में ले सकते हैं। मुख्य तना नहीं काटना चाहिये। गिलोय के बीज अप्रैल से जून के बीच पकते हैं। इन्हें एकत्र कर वर्षा-ऋतु में नये पौधे उगाने के लिये बुवाई कर सकते हैं, हालांकि गिलोय की कलम लगाना उत्तम रहता है। गुडूची के तने की

कलम जिसमें कम से कम तीन नोड या गाँठ हों, को सीधी मिट्टी में या गमले में लगा सकते हैं। कलम में एक गाँठ को मिट्टी में गाड़ देना चाहिये और कम से कम एक गाँठ मिट्टी के ऊपर तने के फुटान के लिये रखना चाहिये। गुडूची की कलम प्राप्त करते समय ध्यान यह रखना कि वायुवीय जड़ों की कलम नहीं बल्कि तने की कलम लगाना है। वायुवीय जड़ों की कलम में फुटान नहीं होगा।

तुलसी, कालमेघ और अश्वगंधा के बीज बहुत छोटे आकार के होते हैं और यदि आप गमलों या छोटी क्यारी में सीधी बुवाई करना चाहते हैं तो अधिक से अधिक एक चुटकी बीज ही चाहिये। इस प्रकार पहले वर्ष में वन विभाग की पौधशालाओं से प्राप्त कर घर में लगाये गये पौधों से आने वाले वर्षों में बीज एकत्र कर बहुत से पौधे उगाये जा सकते हैं।

पहले साल वन विभाग की पौधशालाओं से पौधे प्राप्त कर रोपित करने के बाद बढ़िया रखरखाव किया जाये तो यथासमय फूल, फल और बीज घर में ही प्राप्त होते रहेंगे। इसी प्रकार घर में लगाई गयी गुडूची से कलम प्राप्त कर भी नई बेल तैयार की जा सकती है। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, फलों में बीज परिपक्व होकर तैयार हो जायें, तो एकत्र कर लेना चाहिये। तीनों प्रजातियों के बीज गमलों में या बगीचे की मिट्टी में खुरपी से खुदाई कर 1 से 2 सेंटीमीटर गहरे बुवाई कर दीजिये, बीज ज्यादा गहरे नहीं डालें। तुलसी, कालमेघ और अश्वगंधा के बीजों में थोड़ा राख मिलायें और गमले की मिट्टी या जमीन की क्यारी में ऊपर जरा सी राख की परत बुरक दें, नहीं तो चींटियाँ बीज ढोकर ले जाती हैं। बुवाई के पहले गमले या क्यारी की मिट्टी की सिंचाई करना जरूरी रहता है। लगभग 6 से 12 दिन के अन्दर तुलसी, कालमेघ और अश्वगंधा में अंकुरण पूर्ण हो जाता है। लगभग 8 से 12 दिन में तुलसी, 6-7 दिन में कालमेघ, और 6-10 दिन में अश्वगंधा में अंकुरण हो जाता है। अंकुरण होने तक बहुत हल्की सिंचाई करना चाहिये। उसके बाद आवश्यकतानुसार ही सिंचाई करना उपयुक्त रहता है। अगर बहुत से बीज गमले या क्यारी में अंकुरित हो गये हों तो आप इन्हें अंकुरण के तीन-चार सप्ताह के भीतर उखाड़कर अन्यत्र भी रोपित कर सकते हैं।

यदि आपके पास थोड़ी जमीन है तो बगिया का कुछ क्षेत्र ऐसा अवश्य हो जहां अनेक प्रजातियों के पौधे इस प्रकार लगाये जायें कि प्राकृतिक क्षेत्र का आभास हो। यदि बगीचे में अनेक औषधीय प्रजातियों के पौधे उगाना चाहते हैं तो इनमें से अधिसंख्य को बगीचे के एक कोने में बेतरतीबी से बहु-प्रजातीय रोपण करें। इस भाग में मानव दखल कम से कम करें ताकि प्राकृतिक वनों की तरह बीजोत्पादन, बीज विकीर्णन, पुनरुत्पादन जैसी पारिस्थितिकीय प्रक्रियायें समय के साथ अपने आप संचालित होने लगें। बगिया का यह सेमी-वाइल्ड हिस्सा बहुत मनोहारी, आरोग्यकर एवं उपयोगी होता है। यदि आपके पास जगह की कमी है या आप अपार्टमेंट्स में रहते हैं तो गमलों में भी अनेक प्रजातियों के पौधे उगाये जा सकते हैं। बगीचे में यदि पानी की कमी हो तो कम से कम वर्षा ऋतु में पौधों के इर्द-गिर्द थांवला बनाकर वर्षा-जल संरक्षण किया जा सकता है।

घर घर औषधीय पौधों का रोपण, सार-संभाल और उपयोग आदि की जानकारी परिवार में बच्चों को भी बताते रहना चाहिये। पौधों को उगाने और उपयोग का पारंपरिक ज्ञान विलुप्त होने से तभी बच सकता है जब अगली पीढ़ी को पौधे और ज्ञान दोनों दिये जायें। पौधों के रोपण और रखरखाव में बच्चों को साथ में लेकर चलने से इंडीजीनस-नॉलेज या पारंपरिक ज्ञान स्वतः ही अगली पीढ़ी को मिलने लगता है। स्थानीय ज्ञान को विलुप्त होने से बचाने का यह सबसे सशक्त माध्यम है। आज विश्व भर में पीढ़ियों से संचित स्थानीय ज्ञान के समाप्त होने का यह मूल कारण यह है कि हमने अपने घरों में औषधीय पौधे उगाना छोड़ दिया है। पीढ़ियों से संजोये जा रहे स्थानीय ज्ञान का प्रयोग कर औषधीय पौधों की सार-संभाल जनोपयोगी जैवविविधता के संरक्षण की ठोस रणनीति है। औषधियों के बारे में पारम्परिक ज्ञान के क्षरण को रोकने में घर घर औषधि योजना का बहुत बड़ा योगदान है।

इस वर्ष वन विभाग की पौधशालाओं से पौधे प्राप्त कीजिये। यहाँ बताई गयी विधि से रोपण कीजिये। रोपित करने के बाद बढ़िया रखरखाव करते रहिये। यथासमय फूल, फल और बीज घर में ही प्राप्त होते रहेंगे। इन बीजों और कलमों से से हर वर्ष नये नये पौधे उगाते और बढ़ाते रहिये। अपने वैद्य की सलाह से इनका उपयोग कर स्वस्थ रहिये। स्वस्थ राजस्थान की दिशा में हमारा सबसे बड़ा व्यक्तिगत योगदान यही होगा कि हम स्वयं स्वस्थ रहें।

डॉ. दीप नारायण पाण्डेय
(इंडियन फारेस्ट सर्विस में वरिष्ठ अधिकारी)
(यह लेखक के निजी विचार हैं और ‘सार्वभौमिक कल्याण के सिद्धांत’ से प्रेरित हैं।)