कहते हैं वक्त बड़ा बलवान होता है। एक वक्त वह था, जब घर- आंगन में मासूम बच्चों की खिलखिलाहट बड़ी से बड़ी थकान में भी सुकून का अहसास था और वक्त ने ऐसी करवट ली कि आज वही घर- आंगन, गली- मोहल्ले सब सूने हो गए। घर में खिलौने, कपड़े और बच्चों से जुड़ी हर वो चीज देखते ही मां, पिता का मन भर आता है। मन में अनजाना डर, बच्चों से बिछडऩे का गम, हर पल उसकी याद में इधर से उधर झांकती निगाह के बीच रह रहकर सिसकता मन। गेरों के बीच अपनों की याद में हर पल ठिठक जाते हैं वे और कांप उठती है उनकी रूह। एक घटना थी, जिसे आज 12 दिन हो गए, इस बीच असहज व असामान्य हालत में गुमसुम एक दम्पती को कई लोगों ने सांत्वना दी, समझाया भी। खाना तो क्या पानी की एक घूंट भी गले उतारना बड़ा मुश्किल हो रहा है। गांव, समाज के साथ आमजन भले ही एक घटना समझकर भूल गए हो, मगर वह दम्पती आज भी असहज सा है, जो न कुछ बोलता है और न ही खुद को संभाल पाने की हिम्मत जुटा पा रहे हैं। वे हर तरफ, हर चीज को गहरी निगाह से देखते ही रहते हैं और तभी बच्चों की तस्वीर, खिलौने, कपड़े या खेलने-कूदने की जगह पर निगाह पड़ती है, तो वे सिसक उठते हैं।
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कुछ यही हालात बन गए हैं अब सायों का खेड़ा पंचायत के वागा की वेर में बालूसिंह खरवड़ राजपूत के घर और गांव के। 2 सितंबर दोपहर तक जो घर सात वर्षीय दो जुड़वा बच्चों की अठखेलियों से आबाद था, उसी घर में आज सन्नाटा है। बच्चों को सुबह उठाने से लेकर खिलाने, पिलाने, नहलाने और सुलाने तक के हर लम्हे को याद करके बार बार चांदनी बाई सिसक- सिसक कर रो पड़ती है। बालूसिंह व चांदनी बाई को सांत्वना देने के लिए आने वाले लोग भी ईश्वर कोस रहे हैं कि ऐसा दगा क्यों किया। पहले तो कोई संतान दी नहीं और दी तो एक साथ दो जुड़वा बच्चे। फिर एक साथ दोनों को ही छीन लिया।
दे रहे दिलासा, होनी को नहीं टाल सकते
घर पर लोग दिलासा दिलाते दम्पती से कहते हैं कि होनी को कोई नहीं टाल सकता। धैर्य रखों, ईश्वर अच्छा करेगा। तभी मां व बाप का मन फिर उस काकी पर जा टिकता है, जिसने मासूम बच्चों को कुएं में धकेलकर हत्या कर डाली। फिर वे कोसते हैं, अरे घर, जमीन जायदाद ही लेनी थी, तो वैसे ही कहकर ले लेती या मुझे ही मार देती। उन मासूम बच्चों का क्या कसूर था, क्यों उन्हें बेमौत मारा। कुएं में धकेलने के बाद वे कितने तड़पे होंगे, मां को कितना याद किया होगा….। फिर फफकते हुए मां बोल पड़ती है कि जिस तरह से मेरे मासूम बच्चों को मौत मिली, हे भगवान, वैसी ही मौत उस अणछी को देना।
हर महिला की जुबां पर क्रूर काकी
तभी उनके आस पास बैठी अन्य महिलाएं व लोग भी हत्या की आरोपी अणछी को कोसने लगते हैं कि मासूम बच्चों के साथ ऐसा घिनौना कृत्य को कोई अनजान भी नहीं करता। किसी अनजान जगह पर बच्चा रोता, बिलखता दिखाई, देवे, तब भी हर कोई उनके परिजनों को डांटने से नहीं हिचकतें कि क्यों इस बच्चे को रूला रहे हो। आखिर काकी, तो एक मां भी तो है…। अपने ही बच्चों के समान वे भी तो बच्चे थे, वे क्या समझे माता-पिता व परिवार के झगड़े। …मगर ऐसा तो कोई भी नहीं करता। ऐसी औरत को वाकई सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए, ताकि समाज में ऐसी कोई काकी पैदा न हो सकें।
बोल रहे माता-पिता, क्या था हमारा गुनाह
कुछ इसी तरह अल सुबह से देर शाम तक लोग इस दम्पती को सांत्वना दे रहे हैं और समझाइश भी कर रहे हैं। फिर भी वे चाहकर भी अपनी रूलाई नहीं रोक पा रहे हैं। मन में एक टीस है, ऐसे रिश्ते पर। चांदनीबाई व बालूसिंह फिर मन ही मन सवाल करते हैं कि आखिर मैंने ऐसा क्या गुनाह कर दिया अथवा मैंने मेरे भाई या बहू, देवरानी का क्या बुरा किया, जिसकी हमें यह सजा मिली।
भाई को बेटे से बढक़र रखा, फिर ऐसा क्यों…
बालूसिंह खरवड़ ने छोटे भाई हीरासिंह व उसकी पत्नी अणछी को अपने बेटे की तरह ही रखा। हीरासिंह व अणछी अक्सर लड़ते, झगड़ते रहते, मगर बड़े भाई बालूसिंह ने कभी बुरा नहीं सोचा। छोटा भाई गंभीर बीमार हुआ, तो दस लाख रुपए तक का खर्च खुद बालूसिंह ने उठाया। पक्का मकान भी बनवाकर छोटे भाई को हिस्से में दे दिया और खुद आज भी कच्चे केलूपोश मकान में रह रहा है। फिर भी ऐसे भले बालूसिंह व चांदनीबाई के जुड़वा बच्चों को छीनने की इस घटना को लेकर हर कोई हैरत में हैं और सवाल भी कर रहे हैं कि अरे! ऐसा क्यों किया।
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ऐसा विश्वासघात क्यों किया
दम्पती को सांत्वना बंधाने वाले लोग बोल रहे हैं कि परिवार, समाज व दुनिया विश्वास पर चलती है। अगर परिवार में काकी ही ऐसा विश्वासघात करेंगी, तो फिर कैसे चलेगा। भगवान अब ऐसा, कभी किसी के घर में मत होने देना।