मारवाड़ के गांव-ढाणी में बैठे मौसम वैज्ञानिकों(बुजुर्गों) ने कोरोना काल में अच्छी खबर सुनाई है। प्रकृति व पक्षियों ने इस बार अच्छे मानसून के संकेत दिए है। उनका मानना है कि इस बार रोहिड़े, नीम, फोग आदि में फूल आना, खेजड़ी पर अच्छी तादाद में सांगरी लगना, कैर का उत्पादन कम होना, अच्छे जमाने के संकेत हैं।
मारवाड़ में मानसून का पूर्वानुमान लगाने की सदियों पुरानी परम्परा आज भी जीवंत है। गावं-ढाणी में बैठे इन मौसम वैज्ञानिकों के तर्क भी आसपास की प्रकृति में हो रहे बदलाव पर आधारित होते है। प्रकृति व पशु-पक्षियों में आए बदलाव के आधार पर ये लोग मानसून का एकदम सटीक पूर्वानुमान लगाते हैं।
बाकानेर के महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.अनिल कुमार छंगानी का कहना है कि प्रकृति और पशु पक्षियों की लाइफ स्टाइल में आने वाले बदलाव हमें मानसून का संकेत करते है। इन पर करीब से नजर रख हम मानसून का सटीक अंदाज लगा सकते है।
उन्होंने बताया कि सामान्यता एक या दो अंडे देने वाली गौरैया व टिटहरी ने इस बार तीन से चार अंडे दिए है। इनके अंडों की संख्या मानसून की स्थिति के आधार पर घटती बढ़ती है। इसी तरह टिटहरी ने अपने अंडे कुछ ऊंचाई वाले स्थानों पर दिए है। यह इस बात का संकेत है कि इतनी ऊंचाई तक पानी भर सकता है। इन पक्षियों के प्रजनन पर बहुत निकट से नजर रखने वाले प्रो. छंगानी का कहना है कि इस बार इनमें हैचिंग दर भी नब्बे फीसदी तक है।
दूसरी तरफ यदि मारवाड़ की प्रकृति पर नजर डाली जाए तो इस बार खेजड़ी पर सांगरी की बंपर उपज नजर आ रही है। तेज आंधियों के बावजूद न तो इसके फूल और न ही सांगरी नीचे गिरी। साथ ही सांगरी जल भी नहीं रही है। वहीं ये खेजड़ी पर ही सूख कर खोखा बन रही है। उन्होंने बताया कि यह इस बात का संकेत है कि इस बार मानसून अच्छा रहेगा। वहीं अकाल की आहट सबसे पहले कैर का पौधा देता है। कैर की यदि बंपर पैदावार हो रही है तो तय है कि अकाल पड़ता है। लेकिन इस बार कैर की उपज कम देखने को मिल रही है। इससे संकेत है कि क्षेत्र में अच्छी बारिश होगी। वहीं इस बार पूरे मारवाड़ में रोहिड़े का पेड़ फूलों से गुलजार रहा। ये भी अच्छी बारिश का संकेतक है।
प्रो. छंगानी ने बताया कि अनुभव व लोक ज्ञान के आधार पर गांव के लोग मौसम की एकदम सटीक भविष्यवाणी करते रहे है। ऐसा करने के लिए हमें चारों तरफ प्रकृति व पशु पक्षियों में आ रहे बदलाव पर गहन नजर रखने की आवश्यकता है। हाव, नमी व तापमान के आधार पर रेगिस्तानी पौधों में बदलाव आता है। और मानसून की बारिश भी इन्हीं तीन चीजों पर निर्भर करती है। वहीं पक्षी सबसे पहले प्रकृति में आने वाले बदलाव को भांप लेते है। इसके आधार पर वे अपनी दिनचर्या में बदलाव ले आते है।