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आज त्रयोदशी तिथि सुबह 11:31 बजे आरंभ होगी और कल सुबह 9:02 बजे तक विद्यमान रहेगी। आज शाम को प्रदोषकाल शाम 5:44 बजे से 8:18 बजे तक रहेगा। इसी प्रदोषकाल की अवधि में ही कुबेर और लक्ष्मी के पूजन को शुभ माना जाता है। मां लक्ष्मी व गणेश की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर में लाना धन, सफलता व उन्नति को बढ़ाने वाला माना गया है।

इस बार महालक्ष्मी का पांच दिवसीय पर्व दीपोत्सव मंगलवार से त्रिपुष्कर योग में शुरू हाेगा। दीपोत्सव पर्व धन त्रयोदशी से शुरू होकर भाई दूज तक चलेगा। पहला पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को कुबेर के पूजन से शुरू होकर मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीपदान तक चलेगा।

घराें में यम का दीपक जलाया जाएगा। इस बार धनतेरस मंगलवार को मनाई जाएगी। ज्योतिषाचार्य गिरीश त्रिवेदी ने बताया कि तेरस तिथि मंगलवार सुबह 9 बजे से शुरू होगी और बुधवार सुबह 10 बजे तक तक रहेगी। त्रिपुष्कर योग सूर्योदय सुबह 11:31 से तक चलेगा।

रूप चौदस बुधवार को सर्वार्थ सिद्धि योग सूर्योदय से सुबह 9:58 तक रहेगा। 4 नवंबर को दीपों का पर्व दीपावली मनाई जाएगी। 5 नवंबर को गोवर्धन पूजा अन्नकूट महोत्सव के तहत जिले में महिलाओं द्वारा गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है, साथ ही जिलेभर के मंदिरों में अन्नकूट का भगवान को भोग लगाकर श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण किया चिकित्सक अमृतधारी भगवान धनवंतरी की पूजा करेंगे। इस दिन देवता यमराज के लिए दीपदान से दीप जलाने की शुरुआत होगी और 5 दिनों तक दीप जलाए जाएंगे। लोकाचार में इस दिन खरीदे गए सोने-चांदी धातु के पात्र अक्षय सुख देते हैं। चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु ने माताअदिति ने आभूषण चुराकर ले जाने वाले निशाचर नरकासुर का वध कर 16 हजार कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। परंपरा में इसे शारीरिक सज्जा और अलंकार का रूप का दिन माना जाता हैं। इसे रूप चौदस भी कहा जाता हैं।

धनवंतरी की होगी पूजा

चिकित्सक अमृतधारी भगवान धनवंतरी की पूजा करेंगे। इस दिन देवता यमराज के लिए दीपदान से दीप जलाने की शुरुआत होगी और 5 दिनों तक दीप जलाए जाएंगे। लोकाचार में इस दिन खरीदे गए सोने-चांदी धातु के पात्र अक्षय सुख देते हैं। चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु ने माताअदिति ने आभूषण चुराकर ले जाने वाले निशाचर नरकासुर का वध कर 16 हजार कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। परंपरा में इसे शारीरिक सज्जा और अलंकार का रूप का दिन माना जाता हैं। इसे रूप चौदस भी कहा जाता हैं।

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस या धनत्रयोदशी का पर्व आज यानि  2 नंवबर को है। जैसा कि सब जानते हैं दिवाली का आरंभ धनतेरस से होता है और इस दिन सोना चांदी के आभूषण या बर्तन खरीदने का रिवाज है। कहते हैं कि धनतेरस के दिन ही देवताओं के वैद्य धन्वंतरि समुद्र मंथन से हाथ  में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इसे धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस यानि धनत्रयोदशी के दिन श्री गणेश, धन के देवता कुबेर, औषधि के देवता धन्वंतरि तथा सुख, समृद्धि तथा वैभव की देवी महालक्ष्मी की पूजा विधि विधान से एक साथ की जाती है। इस दिन सुख, संपत्ति के साथ बेहतर स्वास्थ्य के लिए पूजा करने का विधान है। धनतेरस के मौके पर लोग माता लक्ष्मी और धन देवता कुबेर को प्रसन्न करने के लिए तत्पर रहते हैं लेकिन भगवान धन्वंतरि को भूल जाते हैं जिनकी कृपा से स्वास्थ्य और दीर्घायु का वरदान प्राप्त होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी लक्ष्मी के साथ भगवान धन्वंतरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। यही कारण है दीपावली के पहले, यानी धनतेरस से ही दिवाली का आरंभ हो जाता है।

पहले करें भगवान गणेश की पूजा 

किसी भी पूजा को आरंभ करने से पूर्व भगवान गणेश की पूजा की जाती है क्योंकि वह सबके आराध्य हैं। धनतेरस के दिन पूजा आरंभ करते हुए सबसे पहले विघ्नहर्ता श्री गणेश को स्नान कराएं। स्नान कराने के बाद चंदन या कुमकुम का तिलक लगाएं। इसके उपरांत गणेश जी को लाल वस्त्र पहनाएं और उन पर ताजे पुष्प अर्पण करें। धनतेरस की पूजा को आरंभ करने से पहले इस मंत्र को पढ़ें-

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

भगवान धन्वंतरि की करें पूजा 

श्री गणेश की पूजा करने के बाद आयुर्वेद के संस्थापक भगवान धन्वंतरि की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले भगवान धन्वंतरि की मूर्ति को स्नान कराएं। उसके उपरांत धन्वंतरि देव का अभिषेक करें। भोग के रूप में उन्हें 9 प्रकार के अनाज चढ़ाएं। धन्वंतरि को पीली मिठाई और पीली चीज प्रिय है, आप उन्हें इसका भी भोग लगा सकते हैं। इसके उपरांत अपने परिवार के अच्छे स्वास्थ्य और भलाई के लिए प्रार्थना करें।

कुबेर देव को धन का अधिपति कहा जाता है। माना जाता है कि पूरे विधि- विधान से जो भी कुबेर देव की पूजा करता है उसके घर में कभी धन संपत्ति की कभी कमी नहीं रहती है। कुबेर देव की पूजा सूर्य अस्त के बाद प्रदोष काल में करनी चाहिए। वरना पूजा का उचित फल प्राप्त नहीं होता है। पूजा में फूल, फल, चावल, रोली-चंदन, धूप-दीप का उपयोग करें। भगवान कुबेर को सफेद मिठाई का भोग लगाएं। शाम को परिवार के सभी सदस्य इकट्ठा होकर पूजा करें।