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Bhakt or Bhagwan ki Kahani : भक्त और भगवान की कहानी : Interesting story of devotee and God

devotee and God https://jaivardhannews.com/bhakt-or-bhagwan-ki-kahani-devotee-god-story/

Bhakt or Bhagwan ki Kahani : एक बार एक दुखी भक्त अपने ईश्वर से शिकायत कर रहा था। आप मेरा ख्याल नहीं रखते, मै आपका इतना बड़ा भक्त हूं, आपकी सेवा करता हूं, रात-दिन आपका स्मरण करता हूं। फिर भी मेरी जिंदगी में ही सबसे ज्यादा दुःख क्यों ?

परेशानियों का अम्बार लगा हुआ है, एक समाप्त होती नहीं कि दूसरी समस्या तैयार रहती है। दूसरो कि तो आप सुनते हो उन्हें तो हर ख़ुशी देते हो, आप ने सभी को सारे सुख दिए हैं मगर मेरे हिस्से में केवल दुःख ही दिए। सबके अपने- अपने दुःख, परेशानिया है अपने कर्मो के अनुसार हर एक को उसका फल प्राप्त होता है यह मात्र तुम्हारी शंका है, लेकिन नहीं…. भक्त है कि सुनने को राजी ही नहीं, अंत में अपने इस नादान भक्त को समझा- समझा कर थक चुके भगवान् ने एक उपाय निकाला। interesting story पूरी पढ़ते रहिए

Interesting Hindi Story : प्रभु बोले चलो ठीक है मै तुम्हे एक अवसर और देता हूँ, अपने भाग्य को बदलने का। यह देखो यहाँ पर एक बड़ा सा पुराना व्रक्ष है, इस पर सभी ने अपने- अपने दुःख-दर्द और सारी परेशानियां, चिंताये, दरिद्रता, रूग्णता, तनाव आदि सब एक पोटली में बाँध कर उस व्रक्ष पर लटका दिए हैं। जिसे भी जो कुछ भी दुःख हो वो वहा जाता है, और अपनी समस्त परेशानियों की पोटली बना कर उस व्रक्ष पर टांग देता हैं। तुम भी ऐसा ही करो, इस से तुम्हारी समस्या का हल हो जाएगा। भक्त तो खुशी के मारे उछल पड़ा, धन्य है प्रभुजी आप तो, अभी जाता हूँ मैं।

तभी प्रभु बोले, लेकिन मेरी एक छोटी सी शर्त है। कैसी शर्त भगवन ?

भगवान् तुम जब अपने सारे दुखो की, परेशानियों की पोटली बना कर उस पर टांग चुके होंगे, तब उस पेड़ पर पहले से लटकी हुई किसी भी पोटली को तुम्हे अपने साथ लेकर आना होगा तुम्हारे लिए भक्त को थोड़ा अजीब लगा लेकिन उसने सोचा चलो ठीक है। फिर उसने अपनी सारी समस्याओं की एक पोटली बना कर पेड़ पर टांग दी, चलो एक काम तो हो गया अब मुझे जीवन में कोई चिंता नहीं। लेकिन प्रभुजी ने कहा था की एक पोटली जाते समय साथ ले जाना।

Bhakti Ki Kahani : ठीक है कौनसी वाली लू, यह छोटी वाली ठीक रहेगी। दुसरे ही क्षण उसे विचार आया मगर पता नहीं इसमे क्या है, चलो वो वाली ले लेता हूँ। अरे बाप रे…. मगर इसमे कोई गंभीर बिमारी निकली तो। नहीं नहीं ..अच्छा यह वाली लेता हूँ, मगर पता नहीं यह किसकी है और इसमे क्या क्या दुःख है।

Bhakt Ki Kahani : हे भगवान् इतनी उलझन, वो बहुत परेशान हो गया सच में बंद मुट्ठी लाख की खुल गयी तो ख़ाक की। जब तक पता नहीं है की दूसरो की पोटलियों में क्या दुःख- परेशानियां, चिंता, मुसीबतें है.. तब तक तो ठीक लग रहा था। मगर यदि इनमे अपने से भी ज्यादा दुःख निकले तो।

हे भगवान् कहाँ हो ? भगवान् बोले क्यों क्या हुआ ?

पसंद आये वो उठा लो, नहीं प्रभु क्षमा कर दो

नादान था जो खुद को सबसे दुखी समझ रहा था यहाँ तो मेरे जैसे अनगिनत हैं, और मुझे यह भी नहीं पता की उनका दुःख-चिंता क्या है ? मुझे खुद की परेशानियां , समस्याए कम से कम मालुम तो है,
नहीं अब मै निराश नहीं होउंगा …
सभी के अपने-अपने दुःख है में भी अपनी चिंताओं, परेशानियों का साहस से मुकाबला करूंगा] उनका सामना करूंगा न की उनसे भागूंगा।

धन्यवाद प्रभु , आप जब मेरे साथ है , तो हर शक्ति मेरे साथ है।

शिक्षा :- सदैव प्रसन्न रहे। मनुष्य को सुख और दुख उसके कर्मो के हिसाब से मिलता है। (Always be happy. Man gets happiness and sorrow according to his deeds.) इस तरह की अपडेट खबरों के लिए Jaivardhan News वेब पोर्टल विजिट करते रहिए।

प्रेषक :
श्याम सारस्वत

Ankahi kahaniya 2 : भक्त नामदेव व विट्‌ठल भगवान की कहानी

श्री नामदेव महाराष्ट्र के एक सुप्रसिद्ध संत थे। वे विट्ठल भगवान के बहुत बड़े भगत हुए हैं। उनका ध्यान सदा विट्ठल भगवान के दर्शन, भजन और कीर्तन में ही लगा रहता था। सांसारिक कार्यों में उनका जरा भी मन नहीं लगता था। वे एकादशी व्रत के प्रति पूर्ण निष्ठावान थे। वे उस दिन जल भी नहीं पीते थे। एकादशी की सम्पूर्ण रात्रि को हरिनाम संकीर्तन करते थे। एकादशी को वे न अन्न खाते और न किसी को खिलाते। एक दिन एकादशी की रात्रि को वे हरिनाम संकीर्तन कर रहे थे। उनके साथ अनेकानेक भक्त भी संकीर्तन कर रहे थे। अचानक एक क्षीणकाय, हड्डियों का ढाचा मात्र एक वृद्ध ब्राह्मण उनके द्वार पर आया और बोला,‘मैं अत्यन्त भूखा हूं। मुझे भोजन कराओ अन्यथा मैं भूख के मारे मर जाऊंगा।’

श्री नामदेव जी बोले,‘मैं एकादशी को न अन्न खाता हूं और न अन्न किसी और को खिलाता हं। अतः ब्राह्मण देवता प्रातः काल सूर्योदय का इंतजार करो। व्रत का पारण कर आपको भर पेट भोजन कराऊंगा।’ ब्राह्मण बोला,‘मुझे तो अभी ही भोजन चाहिए। मैं एक सौ बीस वर्ष का बूढ़ा हूं। एकादशी व्रत आठ वर्ष से लेकर अस्सी वर्ष तक के लोगों के लिए है। मैं भूख से मर जाऊंगा और तुमको ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा।’ श्री नाम देव जी ने कहा,‘ब्राह्मण देवता चाहे कुछ भी हो जाए मैं आपको भोजन नहीं करा सकता। कृपया आप सुबह तक प्रतिक्षा करें।’ श्री नाम देव जी के ऐसे व्यवहार के प्रति अन्य ग्राम-वासियों ने नाम देव जी को निष्ठुर कहा और ब्राह्मण को भोजन देना चाहा परन्तु ब्राह्मण ने भोजन लेने से इंकार कर दिया और कहा,‘यदि मैं भोजन ग्रहण करूंगा तो सिर्फ और सिर्फ नामदेव से ही करूंगा।’ श्री नाम देव जी ने जब ब्राह्मण को भोजन न दिया तो कुछ ही समय में उसके प्राण पखेरू उड़ गए। वहां उपस्थित सभी लोग श्री नामदेव जी के प्रति अपशब्द कहने लगे और उन्हें हत्यारा कह कर
संबोधित करने लगे। श्री नाम देव जी कुछ न बोले पूर्ववत विट्ठल भगवान के भजन और कीर्तन में ही लगे रहे तथा एक पल के लिए उठे और मृतक शरीर को ढक कर रख दिया व मृत देह के समक्ष नाम संकीर्तन करते रहे। प्रातःकाल श्री नाम देव जी ने व्रत पारण किया और एक चिता बनवाई। स्वयं उस ब्राह्मण के पार्थिव शरीर को अपनी गोद में लेकर चिता पर बैठ गए। चिता को प्रज्वलित किया गया। जब आग की लपटें श्री नामदेव जी तक पहुंचने ही वाली थी तो अचानक वह ब्राह्मण उठा और श्री नाम देवजी को उठाकर चिता से बाहर कूद पड़ा जब तक नामदेव जी कुछ समझ पाते वह बूढ़ा अंतर्धान हो गया।
स्वयं विट्ठल भगवान ही उनकी परीक्षा लेने आए थे। इस घटना को देख कर सब आश्चर्यचकित हो गए और श्री नाम देव जी की जय-जयकार करने लगे।

धन्य हैं श्री नामदेव जी। चित में प्रज्ञा का प्रकाश, ज्ञान का दीपक जले तभी ठाकुर जी का निराकार स्वरूप दिखाई देता है। भागवत श्रवण से चित रूपी दीपक जलाने का प्रयास मानव को करना चाहिए। मानव को अज्ञानता से लडऩा चाहिए मगर आलोचना और अज्ञानता पर चर्चा करके अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।

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