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Catchphrase : पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले वाक्य: लोकप्रिय तकिया कलाम, देखिए

Takiya Kalam https://jaivardhannews.com/catchphrase-lasting-generation-to-generation/

Catchphrase : मेरा गांव कांकरोली द्वारकाधीश की कृपा और उनके आशीर्वाद से सदा मस्त और मनमौजी प्रकृति का रहा है। यहां का बाशिन्दा लालच, बेर, भेदभाव व ईर्ष्या से परे रहकर मिल जुलकर रहने का आनन्द प्राप्त करता रहा और हमारे बुजुर्ग ऐसी ही मस्ती भरी खुन-नुमा जिन्दगी जी कर ईश्वर को प्यारे हो गये। आज हम ऐसे ही मस्त प्रकृति के दिवंगत आत्माओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने तकिया कलामों से लोगों का मन मोहा और अपनी एक अलग छवि बनाई थी, जिसे लोग आज भी याद कर कर के उन्हें याद करते हैं।

Takiya Kalam : स्व. बिहारी लाल जी उस्ताद (गौरवा )

Takiya Kalam : मेरा गांव मेरे लोग में आपने उनके बारे में उनके अनेक कार्यो के बारे में बहुत कुछ जाना पर हम आज उनके तकिया कलाम के बारे में बताने जा रहे है। वे पहली राजसमन्द नगरपालिका के अध्यक्ष भी रहे थे और तात्कालिक सरकार के नेताओं से उनके अच्छे सम्बन्ध भी थे। अतः उनके पास कोई भी गांव के लोग किसी कार्य के लिए आता और कार्य के बारे में बताता तो वे बस फट से यही कहते “भयो देख लुंगो” यानि कोई भी हो वे सदा “भयो देख लुंगा” कहते थे। यहां तक कि घर के लोग भी कोई काम कहते तो बस उन्हें भी वही रटा रटाया “भयो देख लुंगा” कहते थे। भयो देख लुंगा उनकी जबान पर एक रटा रटाया वाक्य ही उनका तकिया कलाम भयो देख लुंगा हो गया।

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स्व.नटवर लाल जी गौरवा

राजसमन्द नगरपालिका में चुंगी नाके के नाकेदार पद पर रहते हुए जब वे लोगों से बात करते तो “है जो फिर” अक्सर हर एक -दो मिनट में उनकी बातों में आ जाया करता था। आप सही सही कागजात बताओं नहीं तो “है जो फिर” मुझे आगे कार्यवाही करनी पड़ेगी “है जो फिर” बात यह है कि हमें भी आगे जवाब देना पडता है। “है जो फिर” उनके हर कहे गए वाक्यों में कई बार आता। “है जो फिर” में वहां गया, “है जो फिर” मैं वहां से आया तो है जो फिर है जो फिर बस यही तकिया कलाम “है जो फिर” उनका हो गया।

स्व. सोहन लाल जी साहू

उनके द्वारा कही गई बातों में लगभग 50 प्रतिशत “मतलब” यह है कि इसका मतलब क्या?। मतलब आप वहां गए। मतलब आपने उसको देखा, “मतलब” ये है कि उसने आपको बुलाया, “मतलब” ये है कि आप नहीं मानेंगे तो फिर आपको समझाने का क्या मतलब, मतलब मतलब के कारण ही आपका तकिया कलाम “मतलब” हो गया ।

स्व. बलदेव जी मुखिया

वे हर बात को कहते हुए “बराबर-बराबर’’ बार -बार कहा करते थे। आप वहां गए “बराबर”, आपने उसको देखा “बराबर”, उसने तुम्हे वो चीज दी “बराबर”, फिर तुम उस चीज को लेकर घर आए “बराबर”, फिर तुम कह रहे हो वो चीज खो गई “बराबर”, तो सवाल यह है कि वो चीज गई कहां बराबर। बराबर- बराबर, हर बात में “बराबर” कहने पर ही उनका तकिया कलाम “बराबर” हो गया।

स्व. प्यारे लाल जी सामरा

“केवारो मतलब यो है” यह उनका तकिया कलाम था। वे बडे ही विनेादी स्वाभाव के व्यक्ति थे। राष्ट्रभक्ति व समाज सेवा में अग्रणी रहते थे गांव के हर कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति रहती थी। पर जब भी कोई बात करते तो हर एक-दो वाक्य के बाद उनकी बातों में “केवारो मतलब यो है”। केवारो मतलब यो है बार -बार दोहराते रहते थे। इसीलिये उनका तकिया कलाम “केवा रो मतलब यो है” हो गया।

स्व. कासम भाई न्यारगर

वे भी हर बात में “बात इसमें ये है कि” में वहां गया तो देखा चारो ओर जंगल ही जंगल है पर “बात इसमें ये है कि” जंगल में जंगली जानवरों का भी डर पर “बात इसमें ये है कि” डरने से कोई काम थोडे ही हो जाता है। “बात इसमें ये है कि” हिम्मत के बल पर ही आदमी आगे बढता है, पर “बात इसमें ये है कि” हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा, यानि इसमें “बात इसमें ये है कि” ये तकिया कलाम उनकी हर बात में हुआ करता था।

स्व. मनमेाहन मुन्ना सरकार

“आ रे पट्ठे ये” जब भी किसी अपने से छोटे से नौजवानो को खेलते-कूदते देखते तो बरबस ही उनके मुख से “आ रे पट्ठे ये” हंसते हुए मुस्कुराहट के साथ निकल पडता था। अपनी मस्तानी चाल और मुस्कुराहट के वे धनी थे। वे खेल -कूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम या अन्य कोई आयोजन सबमें उनकी भागीदारी रहती थी। धीरे-धीरे “आ रे पट्ठे ये” का दौर बहुत ज्यादा हो गया और वे अक्सर हर बात में “आ रे पट्ठे ये” कहकर गांव के लोगोें में अपना तकिया कलाम “आ रे पट्ठे ये” के तकिया कलाम से मशहूर हो गए।

स्व. दौला बा

“मैं कियो रे भाई” उनका तकिया कलाम था। “मैं कियो रे भाई” असो काम मत कर। “मैं कियो रे भाई” थुं जारियो है तो म्हने भी लेतो जा। “मैं कियो रे भाई” थारी आ बात ठीक कोनी लागी। “मैं कियो रे भाई” थारे अणी वात उं कई लेना-देणों। “मैं कियो रे भाई” मैं कियो रे भाई हर बातचीत के पहले कहा करते थे और यहीं से “मैं कियो रे भाई” उनका तकिया कलाम बन गया था।

स्व. राम बाबू जी

स्वतंत्रता सेनानी सेवा भावी व अखाडे के उस्ताद रहे का तकिया कलाम “माया ईश्वरी” था। वे जब भी कोई होनी – अनहोनी घटना घटते देखते तो उनके मुंह से बस “माया ईश्वरी” निकल पडता था। किसी बच्चे को अच्छा दौडते देखते किसी बच्चे को अच्छा खेलते देखते तो बस यही कहते “माया ईश्वरी”। धीरे-धीरे “माया ईश्वरी” उनका तकिया कलाम हो गया। उनके मुंह पर “माया ईश्वरी” इस कदर चढ़ गया था कि वे हर बात में “माया ईश्वरी” का उच्चारण करने लगे थे। यहां तक कि उन्होंने अपने घर पर भी “माया ईश्वरी” लिखवा लिया था। इसलिए “माया ईश्वरी” उनका तकिया कलाम बन गया था।

स्व. रत्तु बा

“समज्या” हर वाक्य के बाद वे लोगों को कहते “समज्या”। काले मालनिया चौक में गवरी नाचेगा “समज्या”। अबे नहर खुलेगा और अबे कदी नहर खुलेगा और कदी पाणत करांगा “समज्या”। भुतालिया भूत में दौड लगाने धूलदार ही तो वैणो है “समज्या”। कहने का मतलब हर बात में अपना तकिया कलाम “समज्या” ही लगाया करते थे। इसलिए उनका तकिया कलाम “समज्या” हो गया। ये सभी लोग ईश्वर को प्यारे हो गए, लेकिन उनके तकिया कलाम आज भी लोग याद करते हैं। उन सभी दिवंगत आत्माओं को याद करते हुए मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि।

अफजल खां अफ़ज़ल
वरिष्ठ साहित्यकार
जलचक्की, कांकरोली
मो. 98284-75288

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