राजसमंद की शिवांगी 13 साल की उम्र में सांसारिक जीवन छोड़कर मोक्ष का मार्ग चुना है। शिवांगी ने चौथी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी। वे चौथी कक्षा तक ब्यावर के सेंट पॉल् स्कूल में पढ़ी। इसके बाद से सं साध्वियों के सान्निध्य में शिक्षा ग्रहण करने लगी। 17 फरवरी को 46 साधु और साध्वियों के सानिध्य को बीच ब्यावर में दीक्षा लेंगी।
शिवांगी के मां-बाप ने बताया कि बचपन से ही धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने में रूची थी। कम उम्र में भी जैन साधु-साध्वियों की धर्म सभाओं में जाकर प्रवचन सुना करती थी। इसके बाद 2019 में दीक्षा लेने का निर्णय लिया। जब परिजनों ने यह बात सुनी तो वे भी हैरान रह गए। शिवांगी को समझाया भी लेकिन वह नहीं मानी। इससे पहले वह जैन साध्वियों की सेवा में भी रही। 6 महीने तक जैन साध्वियों की सेवा करती। साध्वियों के साथ 400KM की पैदल यात्रा भी कर चुकी हैं। अब 17 फरवरी को ब्यावर में दीक्षा लेगीं। उसके पिता अंकित गन्ना का सोने-चांदी का काम है। 25 फरवरी 2009 को शिवांगी का जन्म हुआ था। अब 14वें जन्मदिन से 8 दिन पहले दीक्षा लेंगी।
गन्ना परिवार के 10 लोग ले चुके हैं दीक्षा
गन्ना परिवार में अभी तक 2 पीढ़ी के 10 लोग दीक्षा ले चुके हैं। दीक्षा लेने जा रही शिवंगी के दादा- दादी, छोटे दादा, 5 भुआ और 2 चाचा संयम पथ अपना चुके हैं। अब गन्ना परिवार से तीसरी पीढी की 11वीं सदस्य की दीक्षा होनी है। बचपन से परिवार के सदस्यों द्वारा दीक्षा लेकर संत बनते देख शिवांगी को भी दीक्षा लेने की प्रेरणा मिली।
दीक्षा ले रहीं शिवांगी ने बताया कि कई लोग कहते हैं कि तुम इतनी छोटी उम्र में दीक्षा क्यों ले रही हो? थोड़ी बड़ी होकर दीक्षा लेना। मेरा कहना है कि मैं छोटी हूं लेकिन आप तो बड़े हो। आप क्यों अभी भी संसार में बैठे हो। मृत्यु का कनेक्शन जैसे उम्र से नहीं है, वैसे ही दीक्षा का कनेक्शन उम्र से नहीं है। शिवांगी कहती है कि बॉर्डर पर अलर्ट रहने वाले जवानों से एक बार पूछ कर आओ कि देश की सुरक्षा ही करती है तो घर बैठे ही कर लेते? घर छोडने की क्या जरुरत है? जवान सोल्जर से रिप्लाई मिलेगा कि घर पर रहकर बॉर्डर की सिक्योरिटी कैसे संभव? बस धर्म ही करना है, यह प्रश्न पूछने वाले को मेरा ऐसा ही उत्तर है कि रहना घर पर रहकर कैसे संभव। धर्म का पूरी तरह से पालन करना है तो दीक्षा ही बेहतर और अंतिम निर्णय है।