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CM की राजसमंद को सौगात : उदयपुर की तर्ज पर राजसमंद में बनेगा शिल्पग्राम

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मिट्टी की हस्थशिल्प कलाकृतियों व लोक देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाने के लिए देश दुनिया में प्रसिद्ध राजसमंद जिले के खमनोर ब्लॉक के मोलेला गांव में अब उदयुपर की तर्ज पर  शिल्पग्राम (शिल्पबाड़ी) की स्थापना होगी। क्षेत्रीय विधायक एवं विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी पहल व प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 2.55 करोड़ रुपए का विशेष बजट मंजूर किया है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की इस सौगात से मोलेला के शिल्पकर्मी अपनी कलाकृतियों का प्रदर्शन कर बिक्री कर सकेंगे। यहां अपने कौशल से भावी पीढ़ियों को भी प्रशिक्षित कर सकेंगे। इससे युवाओं में कला के प्रति आकर्षण बढ़ेगा। शिल्पबाड़ी में सेमिनार हॉल, प्रदर्शनी हॉल, कैफेटैरिया व अन्य सुविधाएं भी विकसित हांेगी। 

देवी-देवताओं का माटी में रूपांकन

मोलेला में यहां के मृण शिल्पकार लोक देवी-देवताओं का माटी में रूपांकन करते हैं। इन्हें मेवाड़ के साथ ही गुजरात व मध्यप्रदेश की सीमाओं के आदिवासी गांवों के लोग खरीदते हैं। वे गांव के देवरों में विधि विधान से स्थापित कर धार्मिक परम्परा का निर्वाह करते हैं। इनकी खरीद अब घरों में सजावट के लिए भी हो रही है। बदलते परिवेश में कलाप्रेमियों की इच्छाओं के अनुसार कलाकारों ने आधुनिक कलाकृतियां गढ़ना शुरू कर दिया है।

जानिए टेराकोटा कला

टेराकोटा कला राजस्थान की प्रसिद्ध हस्तकलाओं में से एक है। लाल मिट्टी को पकाकर सजावटी सामान बनाने की कला टेराकोटा कला कहलाती है। मिट्टी की फड़ व मादल नामक वाद्य यंत्र का निर्माण मोलेला में होता है। उल्लेखनीय है कि मोलेला गांव के शिल्पकार देश-दुनिया में कला की छाप छोड़ चुके हैं। इन्हें पद्मश्री सहित राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है। यहां के मृण शिल्पकार विविध प्रकार के लोक देवी-देवताओं का माटी में रूपांकन करते हैं, जिन्हें मेवाड़ के साथ ही गुजरात व मध्यप्रदेश की सीमाओं पर स्थित आदिवासी गांवों के लोग खरीदकर ले जाते हैं और गांव के देवरों में विधि विधानपूर्वक स्थापित कर कला से जुड़ी धार्मिक परम्परा का निर्वाह करते हैं।

मोलेला के मृण कलाकारों द्वारा निर्मित हिंगाण कला में पारम्परिक व लोक तत्वों के साथ तकनीक की भी निजी विशेषता रही हैं जो पूर्ण रूपेण हॉफ रिलिफ में बनाए जाते हैं। पूर्णतया हस्तनिर्मित मोलेला की हिंगाण कला में चटकदार रंगों का प्रयोग कर रजत माली पन्नों से लोकानुरूप सुसज्जित कर परम्परा का निर्वाह किया जाता हैं। मोलेला की मृण कला से जुड़ा तथ्य यह हैं कि धार्मिक परम्पराओं के पालन के साथ रूपगत व रंगगत तत्वों को भी लौकिकता के साथ सहेज़कर रखा गया हैं।

मोलेला के मोहनलाल को मिला पद्यश्री पुरस्कार

अपनी पारम्परिक कला के बलबूते मोलेला के कलाकार मोहनलाल कुम्हार को पद्मश्री से सम्मनित हो चुके है। सात-आठ मृणकलाकारों ने विदेशों में जाकर अपनी कला का प्रदर्शन कर विश्वव्यापी पहचान बनाई। यहीं नहीं, मोलेला की परम्परा से प्रेरित होकर यूरोपीय देशों के 50 से ज्यादा कलाकार मोलेला के कुंभकारों के साथ मृण शिल्प का कार्य कर चुके हैं। नाथद्वारा के सेठ मथुरादास बिनानी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के चित्रकला के प्राध्यापक डॉ. गगन बिहारी दाधीच ने इस कला में कई समकालीन नवीन प्रयोग किये हैं तथा कार्यशालाओं का आयोजन किया है, जिन्हें न केवल देश में अपितु विदेशों में भी सराहना मिली है। महाराणा प्रताप के इतिहास से सम्बंधित जानकारी देने के लिए मोलेला के टेराकोटा कला की कलाकृतियों को उदयपुर के सिटी स्टेशन तथा राणा प्रतापनगर रेलवे स्टेशन पर लगा कर स्टेशन्स को सुन्दर रूप प्रदान किया गया है।

800 साल पुरानी परंपरा

मोलेला टेराकोट में सबसे ज़्यादा भगवान देवनारायण के ही चित्र देखे जा सकते हैं। माना जाता है कि भगवान देवनारायण गुज्जर योद्धा थे जो दरअसल भगवान विष्णु के अवतार थे। भगवान देवनारायण राजस्थान और मध्यप्रदेश के गड़रिये समुदायों, ख़ासकर गुज्जर के लिए बहुत महत्व रखते हैं। ये समुदाय देवनारायण कथा का भी ख़ूब आयोजन करते हैं। इस कृषक समुदायों के लिये भोपा जागरण का आयोजन करते हैं जिनमें भगवान देवनारायण कथा एक लोकप्रिय विषय होता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि देवनारायण उनके रक्षक थे,जिन्हें टोराकोट में मूंछे वाले चित्र के साथ घोड़े पर बैठा दिखाया जाता है। माना जाता है कि वह घोड़े पर सवार होकर शैतानों और आफ़तों से गांववालों को बचाने के लिए गांव का फेरा लगाते थे।

ऐसे तैयारी होती है टेराकोटा की कलाकृति

मोलेला में मृण शिल्प की पूरी प्रक्रिया मोल्ड का उपयोग किए बिना केवल हाथ से की जाती है। कलाकृति बनाने के लिए सूखी मिट्टी को पीटा जाता है और फिर पत्थरों व अन्य अशुद्धियों को अलग करने के लिए तार की जाली की छलनी प्रयुक्त की जाती है। नरम, शुद्ध मिट्टी का उपयोग मुख्य रूप से कार्यात्मक बर्तनों को बनाने के लिए किया जाता है। मिट्टी में पर्याप्त पानी व गधे की लीद मिला कर कलाकार कलाकृति का पैनल या पट्टी तैयार करके छाया में सूखा देता है जो सूखने पर ग्रे रंग का हो जाता है। भट्टे में पकने के बाद टेराकोटा लाल्र भूरा या यहां तक ​​की एक चमकदार काली आभा देता है। जब मिट्टी में 5 -10% गधे की लीद के साथ मिलाया जाता है, तो यह पट्टिका और अन्य मूर्तिकला के टुकड़ों के निर्माण के लिए आदर्श रहती है। बताते हैं कि गधे की लीद मिलाने से कलाकृति में दरारें नहीं पड़ती है।

शिल्पग्राम उदयपुर

उदयपुर शहर से 3 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है शिल्पग्राम। यह केंद्र अरावली पर्वतों से घिरे लगभग 70 एकड़ भूमि के एक लहरदार भूभाग में फैला हुआ है। शिल्पग्राम एक नृवंशविज्ञान संग्रहालय है जो क्षेत्र के लोक और आदिवासी लोगों की जीवन शैली को दर्शाता है। ग्रामीण कला और शिल्प के बारे में जागरूकता और ज्ञान बढ़ाने के उद्देश्य से, शिल्पग्राम ग्रामीण और शहरी कलाकारों को एक साथ आने और शिविरों और कार्यशालाओं की प्रक्रिया के माध्यम से बातचीत करने का अवसर प्रदान करता है।

पश्चिम क्षेत्र के प्रत्येक सदस्य राज्य में शिल्पग्राम के भीतर निर्मित पारंपरिक झोपड़ियाँ हैं, जो कुछ बुनियादी व्यवसायों से व्युत्पन्न हैं जो क्षेत्र के लोगों के जीवन के तरीके और देश की संस्कृति के केंद्र में भी हैं। इन पारंपरिक झोंपड़ियों में, रोजमर्रा के उपयोग के घरेलू सामान, जैसे टेराकोटा, कपड़ा, लकड़ी और धातु की वस्तुएं, सजावटी वस्तुएं और उपकरण उपयुक्त संकेत और व्याख्यात्मक विवरण के साथ लोगों और उनके सामान की यथार्थवादी झलक देने के उद्देश्य से चित्रित किए जाते हैं।

झोपड़ियों का निर्माण एक इंटरलॉकिंग व्यावसायिक विषय के आसपास किया गया है। इस एकीकृत पैटर्न में राजस्थान से पांच झोपड़ियां हैं , जो मारवाड़ से बुनकरों के समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं, मेवाड़ के पहाड़ी इलाकों से मिट्टी के बर्तनों और भील और सहरियाओं के आदिवासी किसान समुदायों का प्रतिनिधित्व करती हैं। राज्य के अपने प्रतिनिधित्व के अलावा, गुजरात राज्य से सात प्रतिनिधि झोपड़ियां हैं , पांच महाराष्ट्र राज्य से और पांच गोवा की कला और शिल्प की विशेषता है ।

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