नई दिल्ली। कोरोना की दूसरी लहर घातक रही, लेकिन अब इसमें कमी देखी जा रही है, लेकिन हेल्थ एक्सपट्र्स का कहना है कि कुछ दिनों के बाद देश तीसरी वेव से संक्रमित हो सकता है। तीसरी वेव की जद में देश की 35 फीसद तक जनता आ सकती है। इसके साथ यह भी माना जा रहा है कि तीसरी लहर का सबसे ज्यादा शिकार बच्चे और किशोर हो सकते हैं। ऐसी आशंकाओं के बीच राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने अब राज्यों से एक हफ्ते के भीतर बच्चों के लिए हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर के आंकड़े आयोग में जमा करने का आदेश दिया है।
थर्ड वेव के निशाने पर कितनी बड़ी आबादी?
2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर लगाए गए अनुमान के मुताबिक 0.4 साल तक के बच्चों की जनसंख्या तकरीबन 11 करोड़ से ज्यादा यानी कुल आबादी का तकरीबन 11 फीसदी है।12 करोड़ से ज्यादा आबादी 5.9 साल तक के बच्चों की है। यानी कुल आबादी का तकरीबन 12.5 फीसद है। 10 से 14 साल तक के बच्चों की आबादी भी 12 करोड़ से ज्यादा है यानी तकरीबन 12 फीसद। 15-19 साल तक के किशोरों की आबादी 10 करोड़ से ज्यादा यानी कुल आबादी के मुकाबले तकरीबन 10 फीसदी के आसपास है। 2019 में जारी हुए सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के मुताबिक 46.9 फीसदी लोग भारत में 25 साल से कम उम्र हैं। लिहाजा इस रिपोर्ट के आंकड़ों को आधार बनाएं तो थर्ड वेव की जद में आने वाली आबादी तकरीबन 35.38 फीसदी होगी।
आयोग ने विस्तृत फॉर्म भेजा, राज्यों के पास आंकड़े ही नहीं
आयोग ने एक विस्तृत फार्म राज्यों को भेजा है, लेकिन इस फॉर्म में आंकड़े भरते वक्त राज्यों के पसीने छूट जाएंगे। इसमें बच्चों के इलाज के लिए कुल अस्पताल, नर्सिंग होम, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, डॉक्टर, नर्सों के आंकड़ों को जुटाने में तो शायद राज्यों को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी, लेकिन इसके आगे के आंकड़ों को जुटाने में राज्यों को मुश्किल हो सकती है। दरअसल, पब्लिक डोमेन में मौजूद रिपोर्ट में चाइल्ड हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर के आंकड़े गायब नजर आते हैं। लिहाजा ऐसे में राज्यों को इतने बारीक आंकड़े आयोग को देना आसान नहीं होगा।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष और भारतीय बाल विकास अकादमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अशोक राय कहते हैं कि बच्चों का हेल्थ सिस्टम बिल्कुल अलग होता है। उनके लिए वेंटिलेटर, इंटेंसिव केयर यूनिट और सभी तरह के अन्य मेडिकल उपकरण अलग होते हैं। केवल बच्चों के डॉक्टर ही इलाज के लिए जरूरी नहीं बल्कि बच्चों के वार्ड में काम करने वाली नर्सेज भी अलग तरह से प्रशिक्षित होनी चाहिए। तो क्या हमारे यहां बच्चों के लिए प्रशिक्षित नर्सेजे हैं। वे कहते हैं, अभी हमारे पास बाल रोग चिकित्सकों की भारी कमी है। इसका कोई आंकड़ा तो नहीं मगर प्रशिक्षित नर्सें बेहद कम संख्या में होंगी।