किसानों का दर्द : मातृकुंडियां बांध में फसलें तबाह, बीमा है, पर क्लेम नहीं मिल रहा
बारिश के साथ नदी- नालों व तालाब- बांध में पानी की आवक होने लगती है, तो किसानों के चेहरे खिल उठते हैं, मगर रेलमगरा क्षेत्र के 12 गांवों के लिए तेज बारिश का होना और नदी- नालों का उफनना उतना ही दु:खदायी है। मानसून के दस्तक देने के साथ ही आम किसानों की तरह इन गांवों के लोग भी खेतों की जुताई करते हैं और बाजार से अच्छी किस्म के बीज खरीदकर बुवाई करते हैं, मगर उसके बाद अगर बारिश तेज होती है और नदी- नालों में पानी आने लगता है, तो मानो इनके अरमानों पर पानी फिरने लगता है और जैसे जैसे उनके गांव के बांध में पानी बढ़ता है, वैसे वैसे उनकी धड़कने बढ़ने लगती है और उनका दर्द और तकलीफे बढ़ती जाती है। जब बांध लबालब हो जाता है, तो उनके सब्र का बांध टूटकर किसानों में आक्रोश की ज्वाला भभक उठती है और फिर वे सिचांई महकमे से लेकर प्रशासन व जनप्रतिनिधियों के साथ प्रदेश की सरकाराें को भी कोसने लगते हैं। हालांकि अब खेतों की जुताई, बुवाई, बारिश का होना, बांध का भरना, तकलीफों से सामना, मेहनत पर पानी फिरने के अफसाने अब उनके जीवन का हिस्सा बन चुके हैं, मगर शासन, प्रशासन के साथ नेताओं और सरकार के प्रति बड़ा आक्रोश है। आखिर उनकी ही जमीन आज उनकी नहीं रही और वे घर-बार- खेत होकर भी बेघर से होकर रह गए हैं। खास बात यह है कि इनके खेतों में फसलों की बैंक द्वारा फसल बीमा किया जा रहा है, मगर पिछले दो दशक में क्लेम एक भी किसान को नहीं दिया गया। सवाल यह है कि जब किसानों को क्लेम नहीं दिया जा सकता है, तो फिर इनके खेतों का बीमा ही क्यों किया जा रहा है और प्रीमियम राशि क्यों वसूल की जा रही है।
कुछ यह दर्दभरी कहानी है राजसमंद जिले में गिलूंड उप तहसील क्षेत्र के 12 गांवों के किसानों की। मातृकुंडियां बांध किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष कालूराम गाडरी ने बताया कि गिलूंड, टीलाखेड़ा, खुमाखेड़ा, कुण्डिया, कोलपुरा, जवासिया, धूलखेड़ा व सांवलपुरा आदि गांवों के खेत मातृकुंडियां बांध के जलभराव क्षेत्र में समाए हुए हैं। 1979 व 1992 में मातृकुंडियां बांध निर्माण के दौरान 406 किसानों को मुआवजे के लिए सूचीबद्ध किया, मगर 185 किसानों को ही मुआवजा मिला और आधे से ज्यादा किसानों को आज तक मुआवजा नहीं मिला। किसानों की मांग है कि जितने खेत उनके बांध में डूबे हैं, उतनी ही जमीन उन्हें दूसरी जगह आंवटित कर दी जाए, लेकिन इस पर भी कोई निर्णय नहीं हो पाया। इसके चलते गिलूंड व कुंडियां क्षेत्र के किसान फिर एकजुट हो गए हैं और मुआवजा या डूबने के बराबर जमीन दिलाने की मांग का संघर्ष तेज कर दिया है।
More News ; गिलूंड क्षेत्र के एक दर्जन गांवों में एक हजार किसानों के खेत डूबे, लाखों की फसलें तबाह
विधायक दीप्ति ने भी सरकार पर उठाए सवाल
गिलूंड व कुंडिया क्षेत्र के किसानों की परेशानी को लेकर मीडिया में खबरें चलने के बाद राजसमंद विधायक दीप्ति माहेश्वरी ने भी किसानों की मांग को जायज बताते हुए प्रदेश की सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाते हुए आक्रोश व्यक्त किया। विधायक दीप्ति ने सोशल मीडिया पर पोस्ट जारी कर बताया कि मातृकुंडियां बांध की वजह से किसानों को लाखों रुपए का नुकसान हुआ है। साथ ही कॉपरेटिव बैंक व बैंकों में किसान क्रेडिट कार्ड के साथ फसल बीमा प्रतिवर्ष किया जा रहा है, मगर अभी तक एक भी किसान को कोई क्लेम नहीं दिया, जबकि हर वर्ष उनकी फसलें पानी में डूब रही है। विधायक ने जल संसाधन विभाग व जिला प्रशासन से उचित समाधान की मांग उठाई है।
डूबती फसलों को नाव में बैठकर लाने को मजबूर
कुंडिया क्षेत्र के खेत की फसलें जलमग्न होने से पहले किसान नाव के जरिए खेतों में डूब रही फसलों को काटकर ला रहे हैं। बांध में ज्यों ज्यों पानी बढ़ रहा है, उसी तरह उनकी फसलें डूबती जा रही है। जहां पानी कम है, उस क्षेत्र में किसान खेतों में खड़े चारा, ज्वार व मक्का की फसलों को काटकर ला रहे हैं, मगर ज्यादातर किसानों के खेत की फसलें जलमग्न हो गई है, जहां से काटकर लाना मुश्किल है। कुंडिया क्षेत्र के किसान नाव के जरिए कुछ चारा लाने में जुटे हैं, मगर ये प्रयास भी उनकी मेहनत के आगे नाकाफी है।
मवेशियों के लिए चारे का संकट, पशुपालक परेशान
गिलूंड, कुंडिया के साथ एक दर्जन गांवों के खेत मातृकुंडिया बांध में डूबने से चारे का बड़ा संकट खड़ा हो गया है। खेतों में फसलों के साथ ज्वार, बाजरा व रिजका भी डूब गया है, जिसके चलते न तो हरे चारे का कोई प्रबंध है और न ही भविष्य के लिए सूखे चारे का संग्रहण हो पा रहा है। ऐसे में मवेशियों के चारे को लेकर पशुपालक काफी परेशान है और सरकार से नि:शुल्क चारे का प्रबंध करने की मांग उठा रहे हैं।
नहीं सुनेगी सरकार तो करेंगे आंदोलन
मातृकुंडियां बांध किसान संघर्ष समिति अध्यक्ष कालूराम गाडरी ने बताया कि बांध में गांव के खेत डूब चुके हैं, जिससे पटवारी व पंचायत से लेकर राजस्व महकमा वाकिफ है। फिर भी किसानों की समस्या का समाधान करना तो दूर कोई सुनने को भी तैयार नहीं है। इसलिए अब सिंचाई विभाग व प्रशासन उनकी नहीं सुनेंगे, तो अब वे जल्द ही उग्र आंदोलन करेंगे। अब आंदोलन अनिश्चितकाल के लिए होगा, जिसमें जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हाेगी, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
किसानों की समस्या जायज, विधानसभा में उठाऊंगी
गिलूंड उप तहसील क्षेत्र के 12 गांवों की समस्या जायज है। इस मुद्दे को मैं विधानसभा में उठाऊंगी और किसानों को उनका हक दिलाने का प्रयास करूंगी। प्रदेश की गहलोत सरकार से आमजन काफी परेशान है। किसान लंबे समय से संघर्षरत है, मगर गहलोत सरकार के साथ तमाम मंत्री व प्रशासन भी जानकर अनजान बना हुआ है, जो गंभीर बात है। मैं अब इसके लिए कृषि मंत्री व सहकारिता मंत्री से भी मिलकर किसानों की समस्या बताऊंगी।
दीप्ति माहेश्वरी, विधायक राजसमंद