राजसमंद। जिला मुख्यालय स्थित चंद्रदीप कॉलोनी में रहने वाले एक बुजुर्ग का निधन होने पर उनकी बेटियों व दोहित्रि ने अर्थी को कंधा देकर अपना फर्ज निभाते हुए अंतिम यात्रा पर पहुंचाया। दिवंगत के पुत्र नहीं होने पर पुत्रियों द्वारा इस तरह अपने पिता को कंधा देना औरों को अनूठी मिसाल के साथ ही बेटा-बेटी में भेद नहीं करने का संदेश भी दे गया।
जानकारी के अनुसार कालीमगरी (मावली) हाल चंद्रदीप कॉलोनी राजसमंद निवासी मोहनसिंह कितावत (83) का बुधवार देर शाम को निधन हो गया। वे पिछले करीब डेढ दो दशक से यहीं रह रहे थे। उनके पुत्र नहीं है तथा तीन पुत्रियां है। ये बेटियां ही निरंतर अपने पिता की सार-सम्भाल एवं सेवा कर रही थी। मोहनसिंह का निधन होने पर गुरूवार सुबह उनके अंतिम संस्कार से पूर्व घर पर धार्मिक रीति अनुसार तमाम रस्में पूर्ण की गई। इस दौरान वहां मौजूद लोगों के मन में इस बात को लेकर विचार चल रहा था कि दिवंगत के पुत्र नहीं होने के कारण अंतिम यात्रा पर ले जाने के लिए आखिर उन्हें कंधा कौन देगा लेकिन तभी उनकी बेटियां नरेन्द्र कंवर, आनंद कंवर एवं देवेन्द्र कंवर आगे आई तथा अपने पिता की अर्थी को कंधा देने के लिए बढ़ी और इस बारे में सभी को बताया तो लोगों के मन में चल रहे विचारों पर विराम लग गया तथा एकाएक माजरा ही पूरी तरह बदल गया। फिर क्या था। तीनों बेटियों नरेन्द्र कंवर, आनंद कंवर एवं देवेन्द्र कंवर के साथ ही दोहित्रि संगम राठौड़ ने अर्थी को कंधा देकर अंतिम यात्रा के रूप में प्रस्थान कर कॉलोनी के बाहर तक पहुंचाया। वहां पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेश पालीवाल सहित कार्यकर्ता पार्थिव देह को मुक्ति धाम ले जाने के लिए मौजूद थे तथा भारत विकास परिषद का मोक्ष रथ भी तैयार था। वहां पार्थिव देह को मोक्ष रथ में रखा एवं इसके बाद पूर्व सभापति पालीवाल स्वयं मोक्षरथ को कांकरोली सलूस रोड़ स्थित मुक्तिधाम ले गए जहां विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया गया।
इधर, बेटियां द्वारा अपने पिता की अर्थी को कंधा देने की जानकारी क्षेत्रवासियों को मिली तो उनके मन में अलग ही भाव पैदा हो गया। लोगों का कहना है कि बेटों की भांति बेटियों ने अपना फर्ज निभाते हुए जिस प्रकार अपने पिता की अर्थी को कंधा दिया एवं अंतिम सफर के लिए पहुंचाया, वह अनूठी मिसाल है तथा हमारे लिए सीख देने वाला पहलू है। इस वाकये से लोगों में विशेष रूप से यह संदेश प्रसारित हुआ है कि बेटा-बेटी एक समान होते है, इनमें कोई भेद नहीं करना चाहिए। भले ही पुत्र हो परन्तु पुत्री को भी कम नहीं आंकना चाहिए तथा उसे भी बेटे की तरह पूरी तरजीह देनी चाहिए। यह भी सही है कि एक नारी दो परिवारों तथा कई पीढिय़ों को तारने में समर्थ होती है। तभी तो हमारे धर्म शास्त्रों में भी कहा गया है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।