Story Changed Fate : प्रकृत्य ऋषि का रोज का नियम था कि वह नगर से दूर जंगलों में स्थित शिव मंदिर में भगवान् शिव की पूजा में लींन रहते थे, कई वर्षो से यह उनका अखंड नियम था। उसी जंगल में एक नास्तिक डाकू अस्थिमाल का भी डेरा था, अस्थिमाल का भय आसपास के क्षेत्र में व्याप्त था, अस्थिमाल बड़ा नास्तिक था, वह मंदिरों में भी चोरी-डाका से नहीं चूकता था। एक दिन अस्थिमाल की नजर प्रकृत्य ऋषि पर पड़ी. उसने सोचा यह ऋषि जंगल में छुपे मंदिर में पूजा करता है, हो न हो इसने मंदिर में काफी माल छुपाकर रखा होगा. आज इसे ही लूटते हैं। अस्थिमाल ने प्रकृत्य ऋषि से कहा कि जितना भी धन छुपाकर रखा हो चुपचाप मेरे हवाले कर दो. ऋषि उसे देखकर तनिक भी विचलित हुए बिना बोले- कैसा धन ? मैं तो यहाँ बिना किसी लोभ के पूजा को चला आता हूं। डाकू को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ. उसने क्रोध में ऋषि प्रकृत्य को जोर से धक्का मारा ऋषि ठोकर खाकर शिवलिंग के पास जाकर गिरे और उनका सिर फट गया रक्त की धारा फूट पड़ी।
किस्मत बदलने वाली कहानी : इसी बीच आश्चर्य ये हुआ कि ऋषि प्रकृत्य के गिरने के फलस्वरूप शिवालय की छत से सोने की कुछ मोहरें अस्थिमाल के सामने गिरीं। अस्थिमाल अट्टहास करते हुए बोला तू ऋषि होकर झूठ बोलता है। झूठे ब्राह्मण तू तो कहता था कि यहाँ कोई धन नहीं फिर ये सोने के सिक्के कहां से गिरे. अब अगर तूने मुझे सारे धन का पता नहीं बताया तो मैं यहीं पटक-पटकर तेरे प्राण ले लूंगा।
life changing story : प्रकृत्य ऋषि करुणा में भरकर दुखी मन से बोले- हे शिवजी मैंने पूरा जीवन आपकी सेवा पूजा में समर्पित कर दिया फिर ये कैसी विपत्ति आन पड़ी ? प्रभो मेरी रक्षा करें. जब भक्त सच्चे मन से पुकारे तो भोलेनाथ क्यों न आते। महेश्वर तत्क्षण प्रकट हुए और ऋषि को कहा कि इस होनी के पीछे का कारण मैं तुम्हें बताता हूं. यह डाकू पूर्वजन्म में एक ब्राह्मण ही था इसने कई कल्पों तक मेरी भक्ति की। परंतु इससे प्रदोष के दिन एक भूल हो गई, यह पूरा दिन निराहार रहकर मेरी भक्ति करता रहा. दोपहर में जब इसे प्यास लगी तो यह जल पीने के लिए पास के ही एक सरोवर तक पहुंचा।
संयोग से एक गाय का बछड़ा भी दिन भर का प्यासा वहीं पानी पीने आया. तब इसने उस बछड़े को कोहनी मारकर भगा दिया और स्वयं जल पीया. इसी कारण इस जन्म में यह डाकू हुआ। तुम पूर्वजन्म में मछुआरे थे. उसी सरोवर से मछलियां पकड़कर उन्हें बेचकर अपना जीवन यापन करते थे. जब तुमने उस छोटे बछड़े को निर्जल परेशान देखा तो अपने पात्र में उसके लिए थोड़ा जल लेकर आए. उस पुण्य के कारण तुम्हें यह कुल प्राप्त हुआ। पिछले जन्मों के पुण्यों के कारण इसका आज राजतिलक होने वाला था पर इसने इस जन्म में डाकू होते हुए न जाने कितने निरपराध लोगों को मारा व देवालयों में चोरियां की इस कारण इसके पुण्य सीमित हो गए और इसे सिर्फ ये कुछ मुद्रायें ही मिल पायीं।
तुमने पिछले जन्म में अनगिनत मत्स्यों का आखेट किया जिसके कारण आज का दिन तुम्हारी मृत्यु के लिए तय था पर इस जन्म में तुम्हारे संचित पुण्यों के कारण तुम्हें मृत्यु स्पर्श नहीं कर पायी और सिर्फ यह घाव देकर लौट गई। कई आध्यात्मिक परंपराओं में, कर्म कारण और प्रभाव का नियम है। यह विचार है कि इस जीवन में हमारे कार्य भविष्य के जीवन में हमारे अनुभवों को निर्धारित करेंगे। इसका मतलब यह है कि हमारा भाग्य तय नहीं है, बल्कि हमारे कर्म इसे बदल सकते हैं।
Inspirational Stories : हमारे कर्म को बदलने के कई तरीके हैं
- नैतिक एवं नैतिक जीवन जीना। इसका मतलब है हिंसा, चोरी और झूठ जैसे हानिकारक कार्यों से बचना। इसका अर्थ अच्छे कर्म करना भी है, जैसे दूसरों की मदद करना और जानवरों के प्रति दयालु होना।
- ध्यान और आत्मनिरीक्षण. अपने विचारों, शब्दों और कार्यों पर चिंतन करके, हम अपने कर्म पैटर्न के बारे में जागरूक हो सकते हैं। यह जागरूकता हमें नकारात्मक कर्म चक्रों से मुक्त होने में मदद कर सकती है।
- क्षमा का अभ्यास करना. क्रोध और आक्रोश को पकड़कर रखने से ही कर्म का चक्र कायम रहता है। उन लोगों को माफ करके जिन्होंने हमारे साथ अन्याय किया है, हम खुद को उस नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त कर सकते हैं जो हमें रोक रही है।
- दूसरों की सेवा. दूसरों की मदद करना सकारात्मक कर्म बनाने का एक शक्तिशाली तरीका है। जब हम अपने आप को देते हैं, तो हम न केवल दूसरों की मदद कर रहे हैं, बल्कि हम खुद को आध्यात्मिक रूप से विकसित होने में भी मदद कर रहे हैं।
- यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि कर्म कोई दंड या पुरस्कार नहीं है। यह तो बस प्रकृति का नियम है. हमारा कर्म हमारे अपने कार्यों का परिणाम है, और इसे बदलना हमारी शक्ति में है। नैतिक और नैतिक जीवन जीकर, ध्यान और आत्मनिरीक्षण का अभ्यास करके, दूसरों को क्षमा करके और दूसरों की सेवा करके, हम सकारात्मक कर्म बना सकते हैं और बेहतरी के लिए अपना भाग्य बदल सकते हैं।
life changing fact : कर्म और भाग्य के बीच संबंध पर कुछ विचार
- कर्म नियतिवादी नहीं है. इसका मतलब यह नहीं है कि हमारा भविष्य पत्थर में तय हो गया है। हमारे पास अपने कार्यों के माध्यम से अपने कर्म को बदलने की शक्ति है।
- कर्म का संबंध दंड या पुरस्कार से नहीं है। यह सीखने और विकास के बारे में है। हमारा कर्म उन पाठों को दर्शाता है जिन्हें हमें आध्यात्मिक रूप से विकसित होने के लिए सीखने की आवश्यकता है।
- नियति भी निश्चित नहीं है. यह वह क्षमता है कि हमें अपनी वास्तविकता स्वयं बनानी होगी। हम अपने कर्म को बदलकर अपना भाग्य बदल सकते हैं।
- अंततः, कर्म और भाग्य के बीच का संबंध जटिल है। ऐसा कोई एक उत्तर नहीं है जो सभी को संतुष्ट कर सके। हालाँकि, मेरा मानना है कि कर्म के सिद्धांतों को समझकर, हम अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते हैं और अपने लिए एक बेहतर भविष्य बना सकते हैं।
शिक्षा :
ईश्वर वह नहीं करते जो हमें अच्छा लगता है, ईश्वर वह करते हैं जो हमारे लिए सचमुच अच्छा है. यदि आपके अच्छे कार्यों के परिणाम स्वरूप भी आपको कोई कष्ट प्राप्त हो रहा है तो समझिए कि इस तरह ईश्वर ने आपके बड़े कष्ट हर लिए। हमारी दृष्टि सीमित है परंतु ईश्वर तो लोक-परलोक सब देखते हैं, सबका हिसाब रखते हैं.हमारा वर्तमान,भूत और भविष्य सभी को जोड़कर हमें वही प्रदान करते हैं जो हमारे लिए उचित है. ईश्वर की शरण में रहें।
साभार : वीरेन्द्र नाथ तिवारी, बलिया उत्तर प्रदेश