विविध धर्म, संस्कृति वाले हमारे देश में कुछ ऐसी धार्मिक परम्पराएं है, जो वाकई चौंकाने वाली है। उन परम्पराओं के पीछे की कहानियां भी बड़ी रोचक है। कुछ ऐसी ही दिलचस्प परम्परा है राजस्थान के राजसमंद शहर में स्थित श्री पुष्टिमार्गीय तृतीय पीठ प्रन्यास के श्री द्वारिकाधीश मंदिर की। एक माह तक फाग महोत्सव के भाव से ठाकुरजी की सेवा होती है, तो श्रद्धालु भी फाग महोत्सव के दौरान गुलाल, अबीर से सराबोर हो जाते हैं। यह खास परम्परा है राल दर्शन की, जिसे सामान्य भाषा में बोले तो ज्वाला भी कह सकते हैं। दर्शन के लिए गुजराती वैष्णवों के साथ देशभर से लोग आने लगे हैं। दर्शन में श्री द्वारकाधीश के जयकारों के साथ बीच सेवादारों ने गुलाल उड़ाई। राल से आग का गुब्बार उठा, तो श्रद्धालुओं को शीतकाल के बाद ग्रीष्मकाल का अहसास हो गया। यह मंदिर राजसमंद शहर के kankroli में स्थित है।
श्री द्वारकाधीश मंदिर (shree dwarkadhish temple) में प्रतिदिन शाम को श्री प्रभु के शयन दर्शन में राल के दर्शन होते हैं। वल्लभ सम्प्रदाय की प्रधान पीठ श्रीनाथजी और 7 पीठ में से केवल श्री द्वारिकाधीश मंदिर राजसमंद में ही फाल्गुन मास में राल के दर्शन होते हैं। द्वारिकाधीश मंदिर में राल दर्शन की परम्परा काफी प्राचीन है। मंदिर के कार्यकारी अधिकारी विनित सनाढ्य ने बताया श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में एक भाव को चरितार्थ करता है। सर्दी कम करने के भाव को राल जलाई थी। इसके साथ ही राल का वैज्ञानिक प्रभाव यह भी है, कि बदलते मौसम में बीमारी पैदा करने वाले कीटाणुओं का नाश इस राल नामक औषधि जलाने से होता है।
Phag Festival : अनूठी राल परंपरा
राल एक तरह से ज्वाला है। राल में ज्वनशील पदार्थ होते हैं, जिसमें सिंघाड़े का आटा मिलाकर बड़ी मशाल पर राल व सिंघाड़े के आटे के मिश्रण को फेंका जाता है, जिससे कुछ क्षण के लिए आग का बड़ा गुबार निकलता है। श्री द्वारकाधीश मंदिर के रतन चौक में दो बड़ी मशाल जलाकर मंदिर के सेवादार राल फेंकते हैं। जैसे ही आग का बड़ा गुब्बार निकलता है, तो चौतरफा श्री द्वारकाधीश प्रभु के जयकारों से वातावरण गूंज उठता है। राल के बाद आम दर्शनार्थी ठाकुरजी के दर्शन करते हैं। जहां मंदिर के सेवादारों ने दर्शनार्थियों के ऊपर गुलाल फेंकी। दर्शनार्थी भी ठाकुरजी की गुलाल से सराबोर हो गए। राल के पीछे की यह मान्यता है कि राल यानि ज्वाला के गुब्बार के माध्यम से मंदिर का वातावरण गर्म करना भी है, तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो राल से वातावरण में व्याप्त कीटाणु नष्ट हो जाते हैं, जिससे मौसमी बीमारियों का कोई खतरा नहीं रहता। राल एक प्रकार की औषधि होती है। जो साल के पेड़ के दूध से बनाई जाती है। यह अत्यन ज्वलनशील होती है। इसका उपयोग पूजा पाठ में किया जाता है। इसका उपयोग औषधि के लिए भी किया जाता है। द्वारकाधीश मंदिर में इसका उपयोग राल से आग जलाकर किया जाता है।
द्वारकाधीश मंदिर में श्रीनाथजी पाठोत्सव
राजसमंद के श्री द्वारकाधीश मंदिर परिसर में श्रीनाथजी का पाठोत्सव भी परम्परानुसार मनाया गया। इसके तहत श्री प्रभु को तृतीय पीठाधीश्वर गोस्वामी डॉ. वागीश कुमार के निर्देशन में विशेष शृंगार धराया गया। श्री प्रभु को राजभोग में श्रीनाथजी की भावनात्मक रूप से द्वारकाधीश मंदिर पधारे, जहां प्रभु द्वारिकाधीश के साथ उन्हें भी पांच रंग से फाग खेलाई गइ। पाठ उत्सव के उपलक्ष्य में शयन के दर्शन में राल व गुलाल उड़ाई गई। श्री द्वारकाधीश मंदिर में इस अनोखे दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रही।
Dwarkadhish temple mathura : द्वारिकाधीश मंदिर मथुरा
यह मथुरा का सबसे खूबसूरत मंदिर है जो अपने अलंकृत निर्माण और भित्तिचित्रों के लिए पूरे देश में जाना जाता है। भगवान द्वारकाधीश, भगवान कृष्ण का एक रूप जिन्हें द्वारकानाथ के नाम से जाना जाता है, मंदिर में एक काले संगमरमर की मूर्ति की तरह विराजमान हैं। यहां भगवान के जीवन के विभिन्न तत्वों को दर्शाने वाली आश्चर्यजनक छत पेंटिंग्स की भरमार है। इसके अलावा, सुंदर राजस्थानी वास्तुशिल्प पैटर्न और शिल्प कौशल इस परिसर को और भी अधिक भव्य बनाते हैं। द्वारकाधीश मंदिर आपको कई रोमांचक गतिविधियाँ प्रदान करता है जो श्रावण माह के दौरान बढ़ जाती हैं जब भगवान कृष्ण हिंडोला (एक प्रकार का झूला सेट) के अंदर झूलते हैं। यह मथुरा में सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों में से एक है।
Dwarkadhish temple timings : द्वारिकाधीश दर्शन का समय
द्वारिकाधीश मंदिर में दर्शन का समय सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 6:30 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक और शाम 5:00 बजे से रात 9:30 बजे तक है। kankroli darshan time कांकरोली के द्वारिकाधीश मंदिर में दर्शन का समय सुबह 7:00 बजे से दोपहर 11 बजे तक हैं। वहीं शाम के दर्शन का समय 4:00 बजे से रात 7:00 बजे तक रहता है। द्वारकाधीश मंदिर मथुरा टाइमिंग, मथुरा में द्वारिकाधीश मंदिर का दर्शन समय सुबह साढ़े 6 बजे से साढ़े 10 बजे तक है। वहीं वापस दर्शन का समय दोपहर साढ़े 3 बजे से शाम 6 बजे तक है।
Dwarkadhish temple history : द्वारिकाधीश मंदिर का इतिहास
पुरातत्व संबंधी निष्कर्षों से पता चलता है कि मूल मंदिर का निर्माण सबसे पहले 200 ईसा पूर्व में हुआ था। 15वीं-16वीं शताब्दी में मंदिर का पुनर्निर्माण और विस्तार किया गया। परंपरा के अनुसार, माना जाता है कि मूल मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पोते वज्रनाभ ने हरि-गृह (कृष्ण का निवास स्थान) के ऊपर किया था।
Dwarkadhish temple Tradition : द्वारिकाधीश मंदिर परंपरा
परंपरा के अनुसार, माना जाता है कि मूल मंदिर का निर्माण कृष्ण के पोते वज्रनाभ ने हरि-गृह (कृष्ण का निवास स्थान) के ऊपर किया था। मूल संरचना को 1472 में महमूद बेगड़ा ने नष्ट कर दिया था। यह मंदिर भारत में हिंदुओं द्वारा पवित्र मानी जाने वाली चार धाम तीर्थयात्रा का हिस्सा बन गया।
द्वारकाधीश मंदिर किस नदी के किनारे स्थित है ?
मथुरा में स्थित द्वारिकाधीश मंदिर यमूना नदी के किनारे विश्राम घाट पर स्थित है। वहीं गुजरात के द्वारिकाधीश मंदिर की बात करें तो वो गोमती नदी के किनारे स्थित है। जबकि कांकरोली का द्वारकाधीश मंदिर राजसमंद झील के किनारे स्थित है।
द्वारकाधीश मंदिर मथुरा : Dwarkadhish temple mathura
द्वारकाधीश मंदिर, जिसे मथुरा के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है, अपनी विस्तृत वास्तुकला और पेंटिंग के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। 1814 में निर्मित, यह मंदिर अपेक्षाकृत नया है लेकिन अत्यधिक पूजनीय है। यह मंदिर भगवान द्वारकाधीश को समर्पित है, जो भगवान कृष्ण का एक रूप है जिसे द्वारकानाथ के नाम से जाना जाता है, जिसे काले संगमरमर की मूर्ति में दर्शाया गया है।
द्वारकाधीश मंदिर खुलने का समय : Dwarkadhish mandir open timing
गुजरात में द्वारिकाधीश मंदिर के खुलने का समय साढ़े 6 बजे हैं, वापस मंदिर रात 9:30 बजे बंद हो जाता है। मथुरा में द्वारिकाधीश मंदिर खुलने का समय सुबह 6:30 बजे से रात 9:30 बजे तक है। यह मंदिर साेमवार को बंद रहता है।