Education : राजस्थान में शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। जयपुर, उदयपुर सहित राज्य के 7 और जिलों के सरकारी स्कूलों में अब स्थानीय भाषा में पढ़ाई शुरू होने जा रही है। पाली, राजसमंद, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा और चित्तौड़गढ़ ये वो जिले हैं जहां स्थानीय भाषा में शिक्षा दी जाएगी। इससे पहले, सिरोही और डूंगरपुर के कुछ स्कूलों में इस तरह के पायलट प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक चलाया जा चुका है और अब इस योजना को और विस्तार दिया जा रहा है।
Changes in teaching in Rajasthan :राजस्थान के सरकारी स्कूलों में बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाएगा। ढूंढाड़ी, मेवाड़ी जैसी स्थानीय भाषाओं में शिक्षा देने का फैसला लिया गया है। अगले शैक्षणिक सत्र से प्राथमिक कक्षाओं के छात्र अपनी मातृभाषा में पढ़ सकेंगे। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा कि स्थानीय भाषाओं के माध्यम से बच्चों को शिक्षित करना बहुत जरूरी है, क्योंकि इससे बच्चों की समझने की क्षमता तेजी से बढ़ती है। राजस्थान में विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषाओं की विविधता को देखते हुए, बच्चों की शिक्षा को और बेहतर बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। इससे बच्चों को स्कूल की भाषा सीखने में आसानी होगी। क्योंकि जब बच्चे अपनी मातृभाषा में सीखते हैं तो उनकी समझने की क्षमता तेजी से बढ़ती है। यह कदम न केवल बच्चों को शिक्षा से जोड़ेगा बल्कि उनकी मातृभाषा के प्रति सम्मान भी बढ़ाएगा।
School Syllabus Rajasthan : अगले सत्र से इन जिलाें में होगी स्थानीय भाषा में पढ़ाई
School Syllabus Rajasthan : राज्य सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में एक नया प्रयोग शुरू किया है। वर्तमान में सिरोही और डूंगरपुर में बहुभाषी शिक्षा का एक पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है। अगले शैक्षणिक सत्र से इस योजना को जयपुर, उदयपुर, पाली, राजसमंद, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ सहित कुल 9 जिलों में लागू किया जाएगा। इस योजना के तहत बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा दी जाएगी। सरकार का लक्ष्य है कि 2026 तक इस योजना को राज्य के 25 जिलों में लागू किया जाए।
Local Laungages Studies in Rajasthan : राजस्थान में स्थानीय भाषाओं में शिक्षा का विस्तार
Local Laungages Studies in Rajasthan : वर्तमान में सिरोही और डूंगरपुर जिलों के कुछ स्कूलों में बहुभाषी शिक्षण का पायलट प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक चल रहा है। इस पायलट प्रोजेक्ट के सकारात्मक परिणामों को देखते हुए सरकार ने इस योजना को राज्य के अन्य जिलों में भी लागू करने का निर्णय लिया है। अगले शैक्षणिक सत्र से सिरोही, डूंगरपुर सहित 9 जिलों में स्थानीय भाषाओं में शिक्षण शुरू किया जाएगा। इसके साथ ही, वर्ष 2026 तक इस योजना को राज्य के 25 जिलों में लागू करने का लक्ष्य रखा गया है। राज्य के विभिन्न जिलों में बोली जाने वाली प्रमुख स्थानीय भाषाओं में ढूंढाड़ी, मेवाड़ी, वागड़ी, मारवाड़ी और गोडवाड़ी शामिल हैं। इसके अंतर्गत जयपुर में ढूंढाड़ी, उदयपुर, चितौड़गढ़, प्रतापगढ में मेवाड़ी, डूंगरपुर बांसवाड़ा में वागड़ी, राजसमंद में मेवाड़ी, सिरोही में मारवाड़ी, पाली में राजस्थानी गोडवाड़ी भाषा का चलन है। शिक्षा विभाग ने इन भाषाओं में पाठ्य सामग्री तैयार करने और शिक्षकों को प्रशिक्षित करने का कार्य शुरू कर दिया है।
Madan Dilawar : बच्चा में बचपन से ही होती है सीखने की ललक
Madan Dilawar : शिक्षा मंत्री के इस कथन ने शिक्षा के क्षेत्र में एक नई चर्चा को जन्म दिया है कि बच्चा जितना छोटा होता है, उतना ही ज्यादा सीखने की क्षमता रखता है। उन्होंने महाभारत के पात्र अभिमन्यु का उदाहरण देते हुए कहा कि कैसे अभिमन्यु ने अपनी माँ के गर्भ में ही चक्रव्यूह तोड़ने का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। यह कहानी हमें बताती है कि बच्चों का मस्तिष्क जन्म से ही सीखने के लिए तैयार होता है। आधुनिक विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, गर्भवती महिलाओं को अच्छी कहानियाँ सुननी चाहिए, क्योंकि यह उनके गर्भ में पल रहे बच्चे के मस्तिष्क विकास में सहायक होता है। बच्चे को अच्छे वातावरण में रखने और मंदिरों में सत्संग सुनने से बच्चे के मन में अच्छे संस्कारों का विकास होता है।