राजसमंद, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम विशिष्ट न्यायालय के न्यायाधीश पवन कुमार जीनवाल ने राजनगर पुलिस थाना अधिकारी के विरुद्ध एससी- एसटी एक्ट की धारा 4 व भारतीय दंड संहिता की धारा 166 व 166- ए के तहत तत्काल एफआइआर दर्ज करने का आदेश दिया है।
अधिवक्ता रजनीकांत सनाढ्य ने बताया कि परिवादी दयाराम ने 28 अगस्त, 2023 को डॉ. शिप्रा व अन्य के विरुद्ध एससी-एसटी एक्ट व भारतीय दंड संहिता की धाराओं में एक परिवाद राजसमंद पुलिस अधीक्षक को पेश किया था, जिस पर एसपी ने कांकरोली थानाधिकारी को कार्रवाई के लिए प्रेषित किया। कांकरोली सीआई ने परिवाद क्षेत्राधिकार का नहीं होना बताकर लौटा दिया। एसपी ने इसे राजनगर थाने को भेजा। 14 सितम्बर को थाना अधिकारी ने जांच उप निरीक्षक संग्राम सिंह को सौंपते हुए लिखा कि मामला संज्ञेय है या नहीं। न्यायालय ने पाया कि यह टिप्पणी इंगित करती है कि थानाधिकारी ने परिवाद पत्र का अवलोकन किए बिना ही ऐसा है, जबकि संज्ञेय अपराधों में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करने या दर्ज करने से मना करना धारा- 166 के तहत दंडनीय अपराध है।
अदालत ने कहा- एक गंभीर प्रकृति का अपराध अनुसूचित जाति के व्यक्ति के साथ हुआ, लेकिन थानाधिकारी ने अधिनियम के प्रावधानों की अनदेखी कर विधि विरुद्ध आचरण किया। जांच अधिकारी की रिपोर्ट पर थानाधिकारी की ओर से ‘प्रकरण सिविल नेचर का पाया गया’ टिप्पणी को भी अदालत ने कर्त्तव्य के प्रति घोर लापरवाही एवं पीड़ित के प्रति असंवेदनशील आचरण प्रकट करना माना।
यह मामला सामान्य वर्ग की महिला द्वारा तथ्य छुपाकर परिवादी के हिस्से की जमीन विधि विरुद्ध क्रय कर उसका रूपांतरण करवाने के लिए लोक प्राधिकारी के समक्ष पेश करने का है।