Jaivardhan News

Matrikundiya Dam में डूबे एक हजार किसानों के खेत, लाखों की फसलें तबाह, न बीमा हुआ न क्लेम मिला

लक्ष्मणसिंह राठौड़ @ राजसमंद

Matrikundiya Dam : राजसमंद जिले के गिलूंड उप तहसील क्षेत्र में एक दर्जन से ज्यादा गांवों में करीब एक हजार किसानों के खेत जलमग्न होकर मक्का, ज्वार, बाजरा सहित लाखों की बोई गई फसलें तबाह हो गई। मातृकुंडिया बांध के कैचमेंट एरिया के इन गांवों में लोग नाव बैठकर चारा लाने को मजबूर है, तो कई परिवारों के लिए घर गुजारे पर भी संकट है। बांध बने करीब तीन से पांच दशक का समय हो गया, मगर न तो जल संसाधन विभाग से किसानों को मुआवजा मिला और न ही खेतों का हक उनके पास रहा है। जल संसाधन विभाग द्वारा प्रतिवर्ष 22.56 फीट तक बांध का भरा जा रहा है, जिससे एक दर्जन गांवों के खेत जलभराव है। बांध के अंदर खेत होने के बावजूद कॉपरेटिव बैंक व केन्द्रीय बैंक भी किसान क्रेडिट कार्ड के साथ फसल बीमा कर कर प्रीमियम राशि वसूल रहे हैं, मगर अब तक एक भी बार किसी किसान को क्लेम का भुगतान नहीं किया। जब बांध के जल भराव क्षेत्र की जमीन का क्लेम नहीं हो सकता है, तो कॉपरेटिव व बैंकों द्वारा जबरन किसानों के खेतों का फसल बीमा क्यों कर क्लेम वसूला जा रहा है। तीन दशक पहले जल संसाधन विभाग द्वारा सूचीबद्ध 406 किसानों में से 185 किसानों ने मुआवजा लिया था, मगर 221 किसानों ने मुआवजा नहीं लिया था। 1973 व 1992 में सूचीबद्ध किसानों की संख्या आज बढ़कर एक हजार के करीब पहुंच गई, जो न तो खेती कर पा रहे हैं और न ही कोई उपज ले पा रहे हैं।

kheti : बनास नदी गिलूंड, कुंडिया, जवासिया ग्राम पंचायत की सरहद में मातृकुंडिया बांध का निर्माण हुआ है, 97 फीसदी जलभराव भी राजसमंद जिले में है। बताया कि गिलूंड, खुमाखेड़ा, टीलाखेड़ा, कोलपुरा, कुंडिया, धुलखेड़ा, जवासिया, डूमखेड़ा आदि गांव शामिल है। 52 गेट के बांध की पाल और 49 गेट भी राजसमंद जिले के कुंडिया पंचायत की सरहद में ही है। गेट खोलने के बाद पानी चित्तौड़गढ़ जिले में जा रहा है, मगर फिर यह पानी भीलवाड़ा जिले में पेयजल के लिए जा रहा है। इसका निर्माण कार्य 1973 में शुरू हुआ और पहले चरण का कार्य 1979 पूरा हुआ। फिर दूसरे चरण का कार्य 1992 में पूरा हुआ। इसकी भराव क्षमता 27.50 फीट है, मगर अभी 22.56 फीट तक पानी भरने पर इसके गेट खोल दिए जाते हैं। अगर पूर्ण भराव क्षमता में इस बांध को भरा जाए, तो कुंडिया व गिलूंड के साथ एक दर्जन गांव की आबादी ही इसमें डूब जाती है। इस कारण तत्कालिन परिस्थिति के चलते 22.56 फीट भरने पर पानी आगे बनास नदी में खोल दिया जाता है, लेकिन जब जब भारी बारिश होती है, उस वक्त कुंडियां व गिलूंड कस्बे में भी पानी आ जाता है। 22.56 फीट का गेज रहने पर भी एक दर्जन गांवों के खेत जलमग्न हो जाते हैं, जिसकी वजह से किसानों की बोई गई सारी फसलें तबाह हो रही है और चारा भी बांध में समा रहा है। इस कारण करीब एक हजार किसानों के करीब चार हजार बीघा से ज्यादा खेत बांध के पानी में डूबे हुए हैं, जिसकी वजह से प्रत्येक किसान को हर साल 3 लाख से 8 लाख रुपए तक का नुकसान हो रहा है, मगर इस समस्या को लेकर ग्रामीण कई बार प्रशासन से शिकायत कर चुके हैं और विरोध प्रदर्शन व भूख हड़ताल पर भी बैठे, मगर जनप्रतिनिधियों व प्रशासन द्वारा आश्वासन के सिवाय कोई ठोस कार्रवाई आज तक नहीं हो पाई।

20230717 140913 https://jaivardhannews.com/gilund-and-kundian-villages-drowning-in-matrikundia-dam/

Dam की पहले क्षमता थी सिर्फ 12.5 फीट, फिर बढ़ाई

Matrikundiya Dam : मातृकुंडिया बांध का पहले चरण में निर्माण 1979 में हुआ, तब इसकी भराव क्षमता 12.5 फीट ही थी, जिससे किसानों को ज्यादा नुकसान नहीं था, मगर 1992 में इसकी पाल बढ़ाकर भराव क्षमता 22.56 फीट कर दी। इस कारण एक दर्जन गांव डूब क्षेत्र में आ गए। इस बांध में कुल 1789 एमसीएफटी पानी की भराव क्षमता है, मगर गिलूंड- कुंडिया गांव के डूबने के खतरे की वजह से 1188 एमसीएफटी पानी भरने पर गेट खोल दिए जाते हैं, जिससे आबादी क्षेत्र डूबे नहीं, मगर इससे क्षेत्र के खेत तो डूब ही रहे हैं।

Matrikundiya Dam History : हाईकोर्ट में विचाराधीन जनहित याचिका

गिलूंड व कुंडिया क्षेत्र के सैकड़ों किसानों की हजारों बीघा जमीन मातृकुंडिया बांध में डूबने से हो रहे नुकसान को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी, जिस पर हाईकोर्ट द्वारा जल संसाधन विभाग के एक्सईएन से लेकर जिला कलक्टर तक से जवाब तलब किया। इसमें पीड़ित किसानों के साथ सरकार की तरफ से भी बयान हो चुके हैं। बताया जा रहा है और प्रकरण अब अंतिम चरण में चल रहा है और जल्द ही फैसले की उम्मीद है। इसमें किसानों ने मौजूदा परिस्थिति के अनुसार मुआवजा मांगा है। साथ ही जितनी जमीन बांध में डूब रही है, उतनी ही जमीन दूसरी जगह आवंटित करने की मांग भी कर रखी है, मगर अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं हो पाया है।

Crop Insurance : किसानों ने नहीं लिया मुआवजा, पैसा सरकार को रिटर्न

Crop Insurance Update : 1979 व 1992 में जल संसाधन विभाग द्वारा करीब 406 किसानों को मुआवजा देने के लिए अवार्ड जारी कर चैक दे दिए, मगर आधे से ज्यादा किसानों ने मुआवजा राशि नहीं ली। किसानों का कहना था कि मुआवजा राशि बहुत कम थी। साथ ही 1979 के वक्त तो बांध की भराव क्षमता 12 फीट ही थी, जिससे उस वक्त तो खेत जलमग्न हो ही नहीं रहे थे, मगर बाद में बांध में पानी 22.5 फीट तक भरने लग गए। इस कारण किसानों के खेत जलमग्न हो रहे हैं। 1992 से 1995 तक मुआवजा राशि वितरण के प्रयास हुए, मगर किसानों ने मुआवजा नही लिया। इस पर सिंचाई विभाग द्वारा जारी राशि राजस्व विभाग द्वारा वापस सरकार को लौटा दी गई। उसके बाद न तो मुआवजा राशि रिवाइज हुई और न ही किसानों को मुआवजा मिल पाया है और न ही दूसरी जगह ही जमीन आवंटित हो पाई।

Agriculture Department : जनप्रतिनिधियों ने भी गंभीरता से नहीं लिया

राजसमंद के गिलूंड- कुंडिया क्षेत्र में मातृकुंडिया बांध की समस्या को लेकर कई बार किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया और ज्ञापन दिए, मगर अब तक जनप्रतिनिधियों ने भी गंभीरता से नहीं लिया और न ही इस समस्या का हल निकल पाया। नब्बे के दशक में राजसमंद के पूर्व विधायक शांतिलाल चपलोत द्वारा जरूर एक बार बांध को खाली करवाया था, मगर उसके बाद पूर्व मंत्री स्व. किरण माहेश्वरी, नाथद्वारा विधायक व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी द्वारा भी समाधान का आश्वासन दिया था, मगर समाधान नहीं हो पाया।

Crops Submerged in Dam : फिर दी आंदोलन की चेतावनी

गिलूंड व कुंडिया क्षेत्र में पांच हजार 440 बीघा खेत बांध में डूबे हुए हैं। पांच दशक पहले जो ढाई सौ किसान सूचीबद्ध थे, वे अब बढ़कर एक हजार के आस पास हो गए हैं। मौजूदा परिस्थिति में नियमानुसार मुआवजा मिले, तो किसान मुआवजा लेने को तैयार है। साथ ही जितनी जमीन बांध में डूबी है, उतनी जमीन दूसरी जगह दिलाने की मांग है। हमारी समस्या न तो जनप्रतिनिधियों ने सुनी और न ही प्रशासन ने। 2019 में पूर्व कलक्टर पीसी बेरवाल ने एक वर्ष में समाधान का आश्वासन दिया था, तो भूख हड़ताल खत्म की थी, मगर अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया। बैंकों द्वारा खेतों के फसल का बीमा कर प्रीमियम राशि ली जा रही है, मगर फसल खराबे पर क्लेम का भुगतान एक भी किसान को नहीं किया गया। अब फिर आंदोलन की रणनीति बना ली है और जल्द ही सभी किसान उग्र आंदोलन करेंगे।

कालूराम गाडरी, अध्यक्ष मातृकुंडिया बांध किसान संघर्ष समिति गिलूंड

जमीन अधिग्रहण व मुआवजा राजस्व विभाग के हाथ

मातृकुंडिया बांध के जल भराव क्षेत्र में 1979 व 1992 के रिकॉर्ड के अनुसार जितने भी किसान थे, उनके अवार्ड जारी कर राजस्व विभाग को दिए थे। कितने को मुआवजा मिला व कितने को नहीं, यह तो राजस्व विभाग ही बता सकता है। गिलूंड- कुंडिया क्षेत्र के एक दर्जन गांवों के खेत बांध में डूबे हुए जरूर है। अगर बांध को पूरा 27.5 फीट तक भरा जाए, तो गिलूंड गांव पूरा डूब सकता है।

सुरेश जाट, सहायक अभियंता जल संसाधन विभाग मातृकुंडिया, जिला भीलवाड़ा
Exit mobile version