संपूर्ण राजस्थान की जैव विविधता (पादप एवं जंतु जातियों ) फसलों एवं स्थानीय वनस्पति प्रजातियों जैसे खेजड़ी, रोहिडा, पलाश, आदि का सर्वनाश करने के लिए पनप चुकी 5 मुख्य खरपतवार, जिनमें गाजर घास (कांग्रेस घास), सत्यानाशी (बीजेपी घास) लेंटाना कैमारा (गैंदी/पामणी) जूली फ्लोरा (विलायती बबूल) तथा जलकुंभी का फैला जाल अब “जीव के लिए जंजाल” बन चुका हैं। जिनके विषैले आतंक ने जल, वायु, मृदा तथा पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्र को बेहद नुकसान पहुंचाया है और इनके फैलाव एवं अतिक्रमण ने राजस्थान की संपूर्ण जैव विविधता के लिए घोर संकट पैदा हो गया है ।
आई फ्लू व चर्म रोग की जनक खरपतवार
प्रकृति एवं प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण के लिए संघर्षरत पर्यावरणविद विज्ञान शिक्षक कैलाश सामोता रानीपुरा का रिसर्च बताता है कि इन खरपतवारो के परागकण, जब औंस या वर्षा जल के संपर्क में आते हैं तो इनसे विषैले टॉक्सिन स्रावित होते हैं जो वायु के माध्यम से इंसानी दुनिया में कई प्रकार की घातक एलर्जी, बुखार, चर्म एवं नेत्र रोगों का कारण बनती है, विशेषकर वर्षा ऋतु के बाद या सावन भादो महीनो के बाद जो हरियाली आपको नजर आती है, यह हरियाली नहीं, जहरीली खरपतवार की आभासी हरितिमा है, जो ना केवल प्रकृति के लिए घातक है, बल्कि प्रकृति के सभी सजीव (जीव जंतुओं) और निर्जीव घटकों (हवा, पानी, मृदा,पहाड़, प्राकृतिक जल स्रोतों) के लिए बेहद ही खतरनाक खरपतवार है ।
प्रकृति, फसल व भौम जल के लिए खतरा
राजस्थान मरुधरा को अपने आतंक के जाल को विस्तार दे चुकी, यह पांचों प्रकार की खरपतवार अपनी जड़ें बेहद ही गहरी कर चुकी हैं, जो यहां की मुख्य पादप जातियों, प्राणी प्रजातियो एवं प्राकृतिक जल स्रोतों के लिए बेहद ही खतरनाक साबित हो रही है। यदि इन घातक खरपतवारों को कोई इंसान या पशु पक्षी भूलवश खा लेता है या इनके संपर्क में आ जाता है तो तो उसमें कई प्रकार की बीमारी होकर, वह तड़प तड़प के मरने को मजबूर हों जाता है। मरुधरा के मुख्यतः मृतप्राय हो चुके प्राकृतिक जल स्रोत जैसे नदियां, तालाब, बांध, बावड़ी, कुंए, आदि के जल भराव व प्रवाह क्षेत्र में ज्यादा खरपतवार का जाल फैला है जिसने भोमजल स्तर को काफी नुकसान पहुंचाया है। इन खतरनाक खरपतवारो ने अन्य वनस्पतियों की तुलना में डेढ़ से दोगुना भौम जल को अवशोषित किया है।
सांप बिच्छु जैसे जहरीले जीवों की शरणस्थली खरपतवार
प्रदेश की इन प्रमुख पांच खरपतवारो में बीज लाखों करोड़ों की संख्या में उत्पन्न होते हैं जो प्रकीर्णन के माध्यम से तेजी से फैलते हैं जो कि क्षेत्र की मुख्य फसलो के साथ उनके आवास, प्रकाश व भोजन आदि के साथ प्रतिस्पर्धा व संघर्ष कर, उन्हें धीरे-धीरे समाप्त करने का काम किया हैं । इन खरपतवारों की एक जैसी जहरीली प्रवृत्ति होने के कारण, इनमें आपस में सहवास पाया जाता है और यह एक साथ मिलकर अन्य वनस्पतियों को अपने विषैले प्रभाव से धीरे-धीरे नष्ट कर देती है । इनका जहरीला स्वभाव, इतना घातक और खतरनाक है कि इनकी छांव सांप, बिच्छू, वेरेनस, जैसे “जहरीले जीवों की शरणस्थली” है ।
डीएमएफडी फंड का सदुपयोग नही होना चिंताजनक
प्रदेश की जैव विविधता के लिए खतरा बन चुकी, इन पांच प्रमुख खरपतवारों के उन्मूलन के लिए राजस्थान की सरकारों से तो कोई उम्मीद नहीं है क्योंकि इन्हें प्रकृति के संरक्षण की कोई परवाह नहीं है । उल्टा इनके द्वारा तो पर्यावरण संरक्षण एवं विकास के लिए एकत्र राजकोष (डीएमएफटी) के फंड के पैसे को भी प्रकृति को नुकसान पहुंचाने में ही लगाने का पाप किया जा रहा है। अब जरूरत है कि मनरेगा जैसी मानव शक्ति का सदुपयोग कर सतत खरपतवार उन्मूलन अभियान आरंभ किया जाए, तभी खरपतवार के कहर से मुक्ति मिलना संभव है । इसलिए आमजन को इन खरपतवारो के उन्मूलन के लिए कोई ठोस कदम उठाने होंगे और इन्हें समूह नष्ट कर, इन्हें जलाना होगा। आपके प्रयासों द्वारा ही खरपतवार उन्मूलन संभव है और तभी आपके खेत और किसानी बच पाएगी ।
हमारा पर्यावरण, हमारी जिम्मेदारी
अपने आस पास के खेत खलियान, सड़क मार्ग, रेलवे मार्ग, गोचर भूमि, बंजर भूमि, बिलानाम भूमि, नदी, प्राकृतिक जल स्रोतों के प्रवाह और उनके जलभराव क्षेत्रों को इस खरपतवार जो कि “जीव का जंजाल” बन चुकी है, का समूल उन्मूलन करना होगा, इन नाकारा गैर जिम्मेदार सरकारों के भरोसे मरुधरा की जैव विविधता मृत हो जाएगी। हम प्रदेशवासी प्रकृति की रक्षा हेतु साथ आइए और स्वप्रेरित हो मरूप्रदेश की मृतप्राय जैव विविधता एवं प्रकृति के संरक्षण के लिए, प्रदेश बेतहाशा पनप चुकी इन पांचों घातक खरपतवारो (गाजर घास, जूली फ्लोर, लैंटाना कैमारा, सत्यानाशी व जलकुंभी ) के उन्मूलन की मुहिम को अंजाम तक पहुंचाएं। क्योंकि हमारा पर्यावरण, हमारी जिम्मेदारी भी है ।
कैलाश सामोता “रानीपुरा” पर्यावरणविद शिक्षक,
मुरलीपुरा, (शाहपुरा) जयपुर ग्रामीण,
राजस्थान