श्री राजपूत करणी सेना राजसमंद के जिलाध्यक्ष चंद्रभान सिंह मोयणा ने हल्दीघाटी युद्ध स्थल रक्त तलाई पर लगे शिलापट्ट पर अंकित युद्ध की तिथि और महाराणा प्रताप के युद्ध से पीछे हटने की अंकित जानकारी को मिथ्या करार दिया है। राजसमंद में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में जिलाध्यक्ष चुंडावत ने कहा कि भ्रमित करने वाली यह शिला पट्टिका पर हल्दीघाटी युद्ध की तारीख और युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत की जानकारी अंकित की जावे। उन्होंने चेतावनी दी कि 7 दिन में पुरातत्व विभाग और राजसमंद प्रशासन द्वारा इसका सुधार नहीं करने पर श्री करणी राजपुत सेना के कार्यकर्ता भ्रामक जानकारी दे रही शिला पट्टिका को हटा दिया जाएगा।
इतिहास की पुस्तकों और कई शोध स्पष्ट हो चुका है कि हल्दीघाटी युद्ध में अकबर की सेना को 6 किलोमीटर पीछे हटना पड़ा था। युद्ध में अकबर की सेना द्वारा केवल मेवाड़ का एक साथी रामप्रसाद को गिरफ्तार किया गया था, जिसने बाद मे मुगलों का खाना पीना छोड़ कर अपनी देह त्याग दी। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद अकबर स्वयं सितंबर में मांडलगढ़ मदारिया होते हुए उदयपुर पहुंचा और अलग-अलग टुकड़ियों में भेजकर महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए भेजा, परंतु अकबर स्वयं दो महीना उदयपुर रुकने के बाद भी महाराणा प्रताप को गिरफ्तार तो दूर महाराणा को देख तक नहीं पाया। न ही मेवाड़ी सेना का कुछ बिगाड़ पाया, अकबर स्वयं आईने अकबरी में लिखवाता है कि 2 महीने के असफल अभियान के बाद अकबर स्वयं अजमेर की ओर रवाना हो गया था। इतिहास में प्रसिद्ध है कि हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की विजय होने से अकबर के सेनापति मानसिंह और आंसफ खां से अकबर नाराज होकर उसने उनकी ड्योडी (दरबार) बंद कर दिया था। अगर हल्दीघाटी का युद्ध अकबर जीतता तो मान सिंह व आसफ खां को इनाम दिया जाता, परंतु उनको इनाम नहीं मिलकर इनाम के रूप में उनकी ड्योडी बंद कर दी। शिला पट्ट पर अंकित दिनांक भी गलत है। डॉक्टर गोविंद कुमार मेनारिया व डॉ गिरीश नाथ माथुर के नेतृत्व में 10 इतिहासकारों ने मिलकर तिथि के अनुसार युद्ध की सही तारीख 18 जून 1576 है, मगर वहां शिला पट्ट पर गलत जानकारी है।