Untitled 8 copy 5 https://jaivardhannews.com/hindu-prayers-will-continue-in-gyanvapi/

ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में चार ‘तहखाने’ (तहखाने) हैं, और उनमें से एक अभी भी व्यास परिवार के पास है। हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि ज्ञानवापी तहखाने में जारी रहेगी हिंदू प्रार्थना, याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया था कि उसे तहखाना में प्रवेश करने और पूजा फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाए। हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के एक तहखाने में हिंदू प्रार्थनाओं की अनुमति दी व मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है। जज रोहित रंजन अग्रवाल ने मस्जिद समिति की याचिका को खारिज करते हुए कहा, व्यास तहखाना में हिंदू प्रार्थनाएं जारी रहेंगी। वाराणसी जिला अदालत ने पिछले महीने फैसला सुनाया था कि एक पुजारी ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने जिसे “व्यास तहखाना” कहा जाता है, उसमें प्रार्थना कर सकता है। जिला अदालत का आदेश शैलेन्द्र कुमार पाठक की याचिका पर दिया गया था, जिन्होंने कहा था कि उनके नाना सोमनाथ व्यास ने दिसंबर 1993 तक पूजा-अर्चना की थी। श्री पाठक ने अनुरोध किया था कि, एक वंशानुगत पुजारी के रूप में, उन्हें तहखाना में प्रवेश करने और पूजा फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाए।

मस्जिद के तहखाने में चार ‘तहखाने’ (तहखाने) हैं, और उनमें से एक अभी भी व्यास परिवार के पास है। मस्जिद समिति ने याचिकाकर्ता के संस्करण का खंडन किया था। समिति ने कहा कि तहखाने में कोई मूर्ति मौजूद नहीं थी, इसलिए 1993 तक वहां प्रार्थना करने का कोई सवाल ही नहीं था। उच्चतम न्यायालय द्वारा वाराणसी जिला अदालत के आदेश के खिलाफ उसकी याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करने और उसे उच्च न्यायालय जाने के लिए कहने के कुछ ही घंटों के भीतर समिति 2 फरवरी को उच्च न्यायालय चली गई। 15 फरवरी को दोनों पक्षों को सुनने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

31 जनवरी को मिला पूजा का अधिकार

31 साल बाद 31 जनवरी 2024 की रात, ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित व्यास तहखाने में फिर से पूजा-पाठ शुरू हुआ। वाराणसी कोर्ट ने 31 जनवरी को व्यास परिवार को तहखाने में पूजा का अधिकार दिया था। कोर्ट के आदेश के करीब 8 घंटे बाद, रात 11 बजे तहखाने में स्थापित विग्रह (प्रतिमा) की पूजा की गई। सुबह से बड़ी संख्या में भक्त व्यास तहखाने में दर्शन करने पहुंचे। तहखाने में जाने का अधिकार सिर्फ व्यास परिवार को है।

Gyanvapi case https://jaivardhannews.com/hindu-prayers-will-continue-in-gyanvapi/

मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज

मुस्लिम पक्ष ने 31 जनवरी को ही सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल याचिका दाखिल करते हुए पूजा पर रोक की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनवाई से इनकार करते हुए मुस्लिम पक्ष को पहले हाईकोर्ट जाने का सुझाव दिया था। अंजुमन इंतजामिया के वकील मुमताज अहमद ने कहा था कि व्यास तहखाना मस्जिद का पार्ट है। यह वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। इसलिए पूजा की अनुमति नहीं दी जा सकती। सोमवार को हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करते हुए, व्यास परिवार को ज्ञानवापी तहखाने में पूजा करने का अधिकार दे दिया। तहखाने में 1993 से पूजा-पाठ बंद था। 31 साल बाद 31 जनवरी 2024 को यहां पूजा-पाठ शुरू हुई।

वाराणसी कोर्ट का आदेश

वाराणसी कोर्ट के आदेश में कहा गया कि व्यास परिवार ब्रिटिश काल से तहखाने में पूजा करता रहा है। व्यास परिवार के शैलेंद्र कुमार व्यास ने ही पूजा के लिए याचिका लगाई थी। कोर्ट के आदेश में तहखाने में पूजा-पाठ करने की अनुमति सिर्फ व्यास परिवार के लिए है। यह घटना ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।

Untitled 10 copy 7 https://jaivardhannews.com/hindu-prayers-will-continue-in-gyanvapi/

ज्ञानवापी एएसआई सर्वेक्षण रिपोर्ट

Untitled 11 copy 3 https://jaivardhannews.com/hindu-prayers-will-continue-in-gyanvapi/

एएसआई सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्ञानवापी परिसर में भगवान विष्णु, गणेश और शिवलिंग की मूर्तियां मिली हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे परिसर को मंदिर के ढांचे पर खड़ा किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक 34 साक्ष्यों का जिक्र किया गया है जो मंदिर के ढांचे का समर्थन करते हैं। मस्जिद परिसर के अंदर ‘महामुक्ति मंडप’ नाम का एक शिलापट भी मिला है। एएसआई ने रिपोर्ट में लिखा कि ज्ञानवापी में एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था। बताया गया कि 17वीं शताब्दी में जब औरंगजेब का शासन था, उस वक्त ज्ञानवापी स्ट्रक्चर को तोड़ा गया था। कुछ हिस्सों को मॉडिफाई किया गया और मूलरूप को प्लास्टर और चूने से छिपाया गया। कहा गया है कि मस्जिद के वजूखाने में नंदी की मूर्ति मिली है। मस्जिद के पश्चिमी दीवार पर स्वस्तिक चिह्न मिला है। एएसआई ने रिपोर्ट में कहा है कि मस्जिद के निर्माण में हिंदू और मुस्लिम दोनों कला शैलियों का इस्तेमाल किया गया है।