Hisaab Barabar Review : हिंदी सिनेमा में ऐसी कई फिल्में आई हैं जो आम आदमी की समस्याओं को दर्शाती हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही ऐसी होती हैं जो दर्शकों के दिल तक पहुंच पाती हैं। जियो स्टूडियोज की नई फिल्म ‘हिसाब बराबर’, जिसे अश्वनी धीर ने निर्देशित किया है, भी इसी दिशा में एक प्रयास है। अश्वनी धीर, जो पहले ‘ऑफिस ऑफिस’, ‘अतिथि तुम कब जाओगे’, और ‘सन ऑफ सरदार’ जैसी कहानियों से अपनी छाप छोड़ चुके हैं, इस बार माधवन को मुख्य भूमिका में लेकर आए हैं। आइए जानें कि यह फिल्म दर्शकों की उम्मीदों पर कितना खरी उतरती है।
फिल्म ‘हिसाब बराबर’ का विवरण
विवरण | जानकारी |
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कलाकार | आर माधवन, कीर्ति कुलहरि, नील नितिन मुकेश, राजेश जैस, रश्मी देसाई |
लेखक | अश्वनी धीर, रितेश शास्त्री, पूर्वा नरेश, डॉल्फी फर्नांडीज |
निर्देशक | अश्वनी धीर |
निर्माता | शरद पटेल, श्रेयांसी पटेल, ज्योति देशपांडे |
रिलीज | 24 जनवरी 2025 |
रेटिंग | 2/5 |
Hisaab Barabar movie : फिल्म की कहानी रेलवे में टिकट निरीक्षक (टीटीई) के रूप में काम करने वाले एक साधारण आदमी की है, जिसे गणितीय पहेलियां सुलझाने का शौक है। वह अपने खाली समय में सीए की कोचिंग करता है। एक दिन उसे पता चलता है कि उसके बैंक खाते से 27 रुपये गायब हो गए हैं। इस छोटी-सी रकम की गुमशुदगी का कारण जानने के लिए वह बैंक पहुंचता है, जहां उसे एक टेलीविजन गिफ्ट में मिलता है।
इसके बाद, कहानी में एक अजीब मोड़ आता है। अन्य लोग भी अपनी शिकायतों के साथ बैंक पहुंचने लगते हैं, और बैंक उन्हें भी गिफ्ट देता है। यहां टीटीई को समझ आता है कि अगर बैंक चार करोड़ ग्राहकों के खाते से थोड़ी-थोड़ी रकम हटाए, तो कितना बड़ा घोटाला हो सकता है। फिल्म इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमती है।
Film Hisab barabar : बड़ी कहानी का कमजोर प्रदर्शन
Film Hisab barabar : ‘हिसाब बराबर’ का मूल विचार दिलचस्प है, लेकिन इसे जिस तरह से पेश किया गया है, वह काफी कमजोर प्रतीत होता है। फिल्म की शुरुआत अच्छी है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, उसकी रफ्तार धीमी होती जाती है। अश्वनी धीर ने कहानी को व्यंग्यात्मक अंदाज में दिखाने की कोशिश की है, लेकिन यह प्रयास न तो पूरी तरह व्यंग्य बन पाता है और न ही गंभीर मुद्दे को गहराई से छू पाता है। पटकथा कहीं-कहीं गुदगुदाती है, लेकिन अधिकांश समय यह दर्शकों को जोड़े रखने में असफल रहती है। फिल्म का संवाद लेखन भी औसत है और अश्वनी धीर की पहचान रहे हास्य और व्यंग्य का सही तालमेल इसमें नहीं दिखता।
माधवन का प्रदर्शन: एकल प्रयास, लेकिन अधूरा असर
आर. माधवन, जो ‘डिकपल्ड’ और ‘द रेलवे मेन’ जैसी ओटीटी प्रस्तुतियों में अपनी अदाकारी से प्रभावित कर चुके हैं, इस फिल्म में भी अपना सौ फीसदी देने की कोशिश करते हैं। हालांकि, कमजोर पटकथा के कारण उनका प्रदर्शन भी दर्शकों को पूरी तरह प्रभावित नहीं कर पाता। माधवन के अलावा, कीर्ति कुल्हारी और नील नितिन मुकेश जैसे कलाकार भी फिल्म में हैं। लेकिन कीर्ति का किरदार कमजोर लेखन की भेंट चढ़ गया है, और नील नितिन मुकेश का प्रदर्शन भी औसत ही कहा जा सकता है। फिल्म के अन्य सहायक कलाकार जैसे राजेश बैस, अपनी छाप छोड़ने में असफल रहे हैं।
कमजोरियां: क्या ‘हिसाब बराबर’ दर्शकों को बांध पाई?
फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी इसकी पटकथा है। कहानी का केंद्रीय मुद्दा शुरुआती 15 मिनट में ही स्पष्ट हो जाता है, और इसके बाद फिल्म कहीं भी नई ऊंचाइयों तक नहीं पहुंचती।
- धीमी गति: फिल्म की रफ्तार इतनी धीमी है कि इसे एक बार में देखना भी चुनौतीपूर्ण लगता है।
- किरदारों की गहराई का अभाव: माधवन के किरदार को छोड़कर, बाकी सभी किरदार अधूरे और सतही लगते हैं।
- संवाद और निर्देशन: अश्वनी धीर के निर्देशन में वह धार नहीं दिखती, जो उनके पहले के कामों में नजर आई थी।
- संगीत: फिल्म के गाने न तो कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं और न ही दर्शकों के मन में अपनी जगह बना पाते हैं।
तकनीकी पहलू: क्या बचा सकता था फिल्म को?
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी और एडिटिंग औसत दर्जे की है। तकनीकी टीम ने अपना काम पूरा किया है, लेकिन इसमें कोई नयापन या क्रिएटिविटी नजर नहीं आती।
ओटीटी रिलीज: क्या यही बेहतर विकल्प था?
जियो स्टूडियोज ने ‘हिसाब बराबर’ को सीधे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज करने का फैसला किया, जो सही ही लगता है। फिल्म सिनेमाघरों में दर्शकों को खींचने लायक नहीं थी। ओटीटी पर भी यह फिल्म दर्शकों को सिर्फ माधवन के नाम की वजह से आकर्षित कर सकती है।
Fimi News : क्या ‘हिसाब बराबर’ देखने लायक है?
Fimi News : ‘हिसाब बराबर’ एक औसत फिल्म है, जिसे सिर्फ माधवन के प्रशंसक ही एक बार देख सकते हैं। कमजोर पटकथा, धीमी गति, और अधूरे किरदार इस फिल्म को साधारण बना देते हैं। अगर आप कुछ नया और मनोरंजक देखने की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह फिल्म आपको निराश कर सकती है।
रेटिंग: 2/5
फिल्म “हिसाब बराबर” की कहानी का सार
“हिसाब बराबर” एक ऐसी फिल्म है जो एक आम आदमी के संघर्ष को दर्शाती है, जो सिस्टम के खिलाफ खड़ा हो जाता है। फिल्म की कहानी राधे मोहन शर्मा (आर माधवन) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक ईमानदार रेलवे टिकट चेकिंग अधिकारी है। अपने बैंक खाते में एक छोटी सी गड़बड़ी देखकर राधे की जिंदगी बदल जाती है। वह जब इस मामले की तह तक जाता है तो उसे पता चलता है कि यह कोई छोटी-मोटी गलती नहीं है, बल्कि एक बड़े वित्तीय घोटाले का हिस्सा है। बैंक के अधिकारी लाखों लोगों के खातों से थोड़ी-थोड़ी रकम निकालकर करोड़ों का घोटाला कर रहे हैं। राधे इस घोटाले का पर्दाफाश करने की ठान लेता है। लेकिन जब वह सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाता है तो उसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उसे नौकरी से निकालने की धमकी दी जाती है, उसके परिवार को परेशान किया जाता है। लेकिन राधे हार नहीं मानता और अपने हक के लिए लड़ता रहता है।
“हिसाब बराबर”: सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाने की प्रेरणा
“हिसाब बराबर” एक ऐसी फिल्म है जो सिर्फ एक मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि यह समाज के लिए एक प्रेरणा का स्रोत भी है। फिल्म में दिखाया गया है कि एक आम आदमी कैसे सिस्टम के खिलाफ खड़ा होकर अपनी बात रख सकता है। राधे मोहन शर्मा का किरदार, जो एक साधारण रेलवे टिकट चेकिंग अधिकारी है, हमें यह सिखाता है कि किसी भी परिस्थिति में हार नहीं माननी चाहिए।
फिल्म की कहानी हमें बताती है कि जब सिस्टम में कोई गड़बड़ी होती है तो उसे सहन नहीं करना चाहिए। राधे जब अपने बैंक खाते में एक छोटी सी गड़बड़ी देखता है तो वह चुप नहीं बैठता। वह इस मामले की तह तक जाता है और उसे पता चलता है कि यह कोई छोटी-मोटी गलती नहीं है, बल्कि एक बड़े वित्तीय घोटाले का हिस्सा है।
राधे की इस लड़ाई में उसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उसे नौकरी से निकालने की धमकी दी जाती है, उसके परिवार को परेशान किया जाता है। लेकिन वह डरता नहीं है। वह जानता है कि वह सही रास्ते पर है और उसे अपनी लड़ाई जारी रखनी चाहिए।
फिल्म दर्शकों को क्या संदेश देती है?
- सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाने का साहस: फिल्म हमें सिखाती है कि अगर सिस्टम में कुछ गलत हो रहा है तो हमें चुप नहीं रहना चाहिए। हमें अपनी आवाज उठानी चाहिए और सिस्टम में सुधार लाने का प्रयास करना चाहिए।
- ईमानदारी की जीत: फिल्म में दिखाया गया है कि ईमानदारी की जीत होती है। राधे की ईमानदारी ही उसे इस मुश्किल परिस्थिति से बाहर निकालती है।
- संघर्ष करने का महत्व: फिल्म हमें बताती है कि अपने हक के लिए संघर्ष करना बहुत जरूरी है। अगर हम चुपचाप बैठ जाएंगे तो हमारे साथ अन्याय होता रहेगा।
- एकजुटता की शक्ति: फिल्म में दिखाया गया है कि जब लोग एकजुट होकर लड़ते हैं तो वे किसी भी मुश्किल परिस्थिति का सामना कर सकते हैं।
“हिसाब बराबर” एक ऐसी फिल्म है जो हमें प्रेरित करती है कि हम अपने अधिकारों के लिए लड़ें। यह फिल्म हमें यह भी सिखाती है कि अगर हम मिलकर काम करेंगे तो हम अपने समाज को एक बेहतर जगह बना सकते हैं।
आज के समय में जब भ्रष्टाचार चरम पर है, इस तरह की फिल्में बहुत जरूरी हैं। ये फिल्में हमें जागरूक करती हैं और हमें अपने अधिकारों के प्रति सजग बनाती हैं।