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Holi Festival : होली क्यों मनाते हैं ? रहस्य, मस्ती, हंसी-मजाक के पीछे की क्या है मान्यता, Holi Ki Kahani

Holi Festival

होली की कहानी, होली क्यों मनाई जाती है (Holi Festival story, Holika Dahan history, Prahlad story, Hiranyakashipu fact In Hindi)

Holi Festival : होली का पर्व देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है। हिन्दू समाज का सांस्कृतिक, धार्मिक और पारंपरिक पर्व है। सनातन धर्म में प्रत्येक मास की पूर्णिमा का बड़ा ही महत्व है और यह किसी न किसी उत्सव के रूप में मनाते हैं। उत्सव के इसी क्रम में होली, बसंतोत्सव के रूप में फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाते हैं। कहते हैं कि यह दिन सतयुग में विष्णु भक्ति का प्रतिफल के रूप में सबसे अधिक महत्वपूर्ण दिनों में से माना जाता है। Holi Festival भारत के अलग अलग क्षेत्र में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। सामान्यत: होली का पर्व हिंदी पंचाग के अनुसार मनाते हैं, जो कि फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होली मनाई जाती है। एक तरह से बसंत ऋतु के स्वागत का त्यौहार होली। यह त्योहार भारत के अलावा नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य देशों में भी मनाया जाता है। होली पर घरों में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। दूसरे दिन होली खेलने के बाद उन पकवानों का आनंद लेते हैं।

Holi Festival : होली पर्व मनाने के अनूठे व रोचक तरीके

होली का पर्व पूरे देश में मनाते हैं, मगर उत्तर भारत व दक्षिण भारत में होली का पर्व मनाने के तौर तरीके व परम्पराएं भी कुछ रोचक व अनूठी है। होली का त्यौहार देखने के लिए लोग ब्रज, वृन्दावन, गोकुल जैसे स्थानों पर जाते है। इन जगहों पर यह त्यौहार कई दिनों तक मनाया जाता हैं। ब्रज में ऐसी प्रथा है, जिसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते है और महिलाएं उन्हें डंडे से मारती है। यह एक बहुत ही प्रसिद्ध प्रथा है, जिसे देखने लोग उत्तर भारत जाते है। कई स्थानों पर फूलों की होली भी मनाई जाती है और गाने बजाने के साथ सभी एक दूसरे से मिलते है और खुशियां मनाते हैं। मध्य भारत एवं महाराष्ट्र में रंग पंचमी का अधिक महत्त्व है, लोग टोली बनाकर रंग, गुलाल लेकर एक दूसरे के घर जाते है और एक दूजे को रंग लगाते है। कहते है “बुरा ना मानों होली है ”. मध्य भारत के इन्दोर शहर में होली की कुछ अलग ही धूम होती है, इसे रंग पञ्चमी की “गैर” कहा जाता है, जिसमें पूरा इंदौर शहर एक साथ निकलता है और नाचते गाते त्यौहार का आनंद लिया जाता। इस तरह के आयोजन के लिए 15 दिन पहले से ही तैयारिया की जाती है। रंगो के इस त्यौहार को “फाल्गुन महोत्सव” भी कहा जाता है। इसमें पुराने गीतों को ब्रज की भाषा में गाया जाता। भांग का पान भी होली का एक विशेष भाग है। नशे के मदमस्त होकर सभी एक दूसरे से गले लगते सारे गिले शिकवे भुलाकर सभी एक दूसरे के साथ नाचते गाते है।

Holi Ki Kahani : होली पर्व में भक्त प्रहलाद की दिलचस्प कहानी

Holi Festival के पर्व के पीछे की कहानी की बात करें, तो एक हिरन्याक्श्यप नाम का राजा था, जो खुद को सर्वाधिक बलवान समझता था। इसलिए वह देवताओं से घृणा करता और उसे देवताओं के भगवान विष्णु का नाम सुनना भी पसंद नहीं था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। इसलिए हिरन्याक्श्यप अपने पुत्र प्रहलाद को बिलकुल पसंद नहीं करते थे और प्रहलाद को मारने का षड़यंत्र रच लिया। प्रहलाद हमेशा विष्णु का जाप करता रहता था, जबकि पिता हिरन्याकश्यप यह चाहता था कि वह उसके नाम का जाप करें। इस पर हिरण्यकश्यप ने बेटे प्रहलाद को मारने का षड़यंत्र रचा, जिसमें उसकी बहन को अग्नि में बैठाकर प्रहलाद को खत्म करने का प्लान बनाया। क्योंकि उसकी बहन होलिका को यह वरदान था कि वह आग से कभी नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यप ने सोचा कि उसकी बहन को तो कुछ नहीं होगा और बेटा प्रहलाद खत्म हो जाएगा। इसीलिए होलिका की गोद में प्रहलाद को वेदी पर बिठा दिया और आग लगा दी। फिर भी प्रहलाद तो विष्णु नाम का जाम करता रहा। जब होलिका जलने लगी, तभी आकाशवाणी हुई, जिसमें होलिका को याद दिलाया कि अगर वह अपने वरदान का दुरूपयोग करेगी, तब वह खुद जलकर राख हो जाएगी और ऐसा ही हुआ। होलिका जल गई और प्रहलाद का अग्नी कुछ नहीं बिगाड़ पाई। इसी तरह प्रजा ने हर्षोल्लास से उस दिन खुशियां मनाई और आज तक उस दिन को होलिका दहन के नाम से मनाया जाता है और अगले दिन रंगो से इस दिन को मनाया करते है।

Holi wishes : कामदेव तपस्या की भी रोचक कहानी

Holi wishes : शिवपुराण के मुताबिक हिमालय की पुत्री पार्वती शिव से विवाह के लिए कठोर तपस्या कर रहीं थीं। तब शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्र का भी शिव-पार्वती विवाह में स्वार्थ छिपा था कि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था। इसी वजह से इंद्र व अन्य देवताओं ने कामदेव को शिवजी की तपस्या भंग करने भेज दिया। भगवान शिव की समाधि को भंग करने के लिए कामदेव ने शिव पर अपने ‘पुष्प’ बाण से वार किया। उस बाण से शिव के मन में प्रेम और काम का संचार होने के कारण उनकी समाधि भंग हो गई। इससे आक्रोशित होकर भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल कामदेव को भस्म कर दिया। शिवजी की तपस्या भंग होने के बाद देवताओं ने शिवजी को पार्वती से विवाह के लिए राज़ी कर लिया। कामदेव की पत्नी रति को अपने पति के पुनर्जीवन का वरदान एवं शिवजी का पार्वती से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करने की खुशी में देवताओं ने इस दिन को उत्सव की तरह मनाया। यह दिन फाल्गुन पूर्णिमा का ही दिन था। इस प्रसंग के आधार पर काम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से जलाकर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

Holi Festival india : होली पर्व के प्रमुख तथ्य

Holi 2024 Date : होली कब है 2024 में

इस वर्ष होली 25 मार्च 2024, यानि सोमवार को खेली जाएगी, जबकि होलिका दहन 24 मार्च 2024, रविवार को होगा। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। सभी नकारात्मकता और बीमारियां नष्ट हो जाती हैं। होलिका दहन 24 मार्च 2024 को रात 11:13 बजे से रात 12:27 बजे तक शुभ मुहूर्त बताया गया है।

Happy Holi : होली में सावधानी भी जरूरी

होली रंग का त्यौहार है, लेकिन सावधानी रखना भी बहुत जरूरी है। आजकल रंग में मिलावट होने के कारण शरीर की त्वचा को नुकसान हो सकता है। इसलिए गुलाल से होली खेलनी चाहिए और सूखी होली का उपयोग सबसे बेहतर रहता है। गली होली से पानी भी बर्बाद होता है और रंग भी त्वचा को खराब करता है। सुखी होली से आसानी से रंग शरीर से उतर जाता है और त्वचा को भी ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाता है। गलत रंग के उपयोग से आंखों व शरीर पर एलर्जी हो सकती है। इसलिए रसायन मिश्रित वाले रंग के प्रयोग से बचे। घर से बाहर बनी कोई भी वस्तु खाने से पहले सोचें। सावधानी से एक दूसरे को रंग लगाए। अगर कोई ना चाहे तो जबरजस्ती रंग न लगाए। होली जैसे त्योहारों पर लड़ाई झगड़े भी काफी बढ़ने लगे हैं।

Holi : नाथद्वारा- चारभुजा में निकलती है बादशाह की सवारी

होली के पर्व पर नाथद्वारा में श्रीनाथजी मंदिर और गढ़बोर में श्री चारभुजानाथ मंदिर परम्परानुसार बादशाह की सवारी निकाली जाती है। यह अनूठी परम्परा कई वर्षो से चली आ रही है। औरंगजेब ने मेवाड़ पर जब आक्रमण किया और नाथद्वारा तक पहुंचा। कहते हैं जब उसने वहां मंदिर तोडऩे का प्रयास किया तो सफल नहीं हो सका। मंदिर के दरवाजे पर वहां दंडवत हो गया। उसके बाद उसने प्रभु श्रीनाथजी को एक हीरा भेंट किया। मान्यता है कि प्रभु श्रीनाथजी के सम्मान में बादशाह ने अपनी दाढ़ी से मंदिर के कमल चौक को बुहारा। इसी परम्परा के निर्वहन के लिए धुलण्डी पर बादशाही सवारी निकाली जाती है। इसमें बादशाह का स्वांग रचने वाला व्यक्ति दाढ़ी से कमल चैक को बुहारता है। इसी तरह ब्यावर, उदयपुर, टोंक आदि जिलों में भी होली पर इसी तरह की सवारी निकाली जाती है। भगवान शिव के श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप के दर्शन करने के लिए नट के स्वरूप को धारण करने से जुड़ी इलूजी की परम्परा अब लुप्त हो रही है। इसी तरह राजसमंद जिले में ही गढ़बोर स्थित चारभुजानाथ मंदिर परम्परानुसार भी बादशाह की सवारी निकाली जाती है, जिसमें बीरबल कोड़े मारते हुए चलता है। लोग बड़े ही उत्साह व उमंग के साथ इसमें शामिल होते हैं और गुलाल अबीर से खेलते हैं।

Holi Shayari : होली शायरी

“रंगों से भरी इस दुनियां में, रंग रंगीला त्यौहार है होली,
गिले शिक्वे भुलाकर खुशियाँ मनाने का त्यौहार है होली,

रंगीन दुनियां का रंगीन पैगाम है होली,
हर तरफ यहीं धूम है मची “बुरा ना मानों होली है होली”

गुलाल का रंग, गुब्बारों की मार,
सूरज की किरणे,खुशियों की बहार,
चांद की चांदनी, अपनों का प्यार,
मुबारक हो आपको रंगों का त्यौहार

हवाओं के साथ अरमान भेजा है,
नेटवर्क के जरिये पैगाम भेजा है,
वो हम हैं, जिसने सबसे पहले,
होली का राम-राम भेजा है।
शुभ होली

जो पूरी सर्दी नहीं नहाये
हो रही उनको नहलाने की तैयारी
बाहर नहीं तुम आये तो
घर में आकर मारेंगे पिचकारी

राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम के रूप में भी मनाते

होली का पर्व राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा हुआ है। पौराणिक समय में श्री कृष्ण और राधा की बरसाने की होली के साथ ही होली के उत्सव की शुरुआत हुई। आज भी बरसाने और नंदगाव की लट्ठमार होली विश्व विख्यात है। इसलिए श्रीकृष्ण व राधा के प्रेम के रूप में भी होली का पर्व मनाया जाता है।

Holi Festival : होलिका दहन

Holi FAQ : होली पर्व से जुड़े रोचक प्रश्न

  1. होली कब है 2024 ?
    Ans : 2024 में 24 को होलिका दहन व 25 मार्च को धुलंडी (होली खेली) मनाई जाएगी।
  2. होलिका दहन का मुहूर्त कब है ?
    Ans : होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शाम 6.31 बजे से रात 8.58 बजे तक रहेगा।
  3. होली कौन से महीने में बनाई जाती है ?
    Ans : होली हर वर्ष फागुन माह के पूर्णिमा पर मनाई जाती है।
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