मेवाड़ के चार प्रमुख धाम में से एक प्रभु श्रीनाथजी की नगरी में 40 दिन के फागोत्सव में Holi का त्योहार अनूठे ढंग से मनाया जाता है। यहां Holi की रंगत बसंत पंचमी से शुरू होती है और होलिका दहन व डोलोत्सव जारी रहती है। पूरे फागोत्सव में प्रतिदिन राजभोग की झांकी में गुलाल की सेवा ठाकुरजी को धराई जाती है। फिर दर्शनार्थियों पर डोल तिबारी में गुलाल फेंकी जाती है। प्रभु के सम्मुख रंगों में सराबोर होने का अहसास अपार आनंद से भर देता है। फागुन मास की शुरुआत पर माघ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन होली का डंडा रोपा जाता है। इस दिन से शुरू होली की धमार फागुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा एवं अगले दिन डोलोत्सव के साथ विराम लेती है। ठाकुरजी को लाड़ लड़ाने की सेवा में तिलकायत परिवार से लेकर मुखिया कीर्तनियां व सेवाकर्मी तक शामिल होते हैं।
Holi Festival : ये होते हैं मनोरथ
- फागुन कृष्ण सप्तमी को श्रीनाथजी के नाथद्वारा पदार्पण के उपलक्ष्य में पाटोत्सव
- विजया एकादशी एवं फागुन शुक्ल पक्ष की सप्तमी को तिलकायत राकेश महाराज का जन्मदिन
- शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी यानि कुंज एकादशी
- फागुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर होलिका दहन एवं अगले दिन डोलोत्सव
Holi Festival : निकलती है बादशाह की सवारी
होली के दूसरे दिन नगर में मंदिर परंपरानुसार बादशाह की सवारी निकलती है। मंदिर परिक्रमा कर मंदिर के गोवर्धन पूजा चौक पहुंचती है बादशाह पालकी से उतरकर सूरजपोल दरवाजे पर पहुंचते हैं, जहां पर नवधा भक्ति से बनी सीढियों को अपनी दाढ़ी से बुहारते हैं। यह पंरपरा मंदिर स्थापना समय से ही चली आ रही है। प्रसाद या नेग दिया जाता है, फिर पालकी में सवार बादशाह की सवारी अपने घर पहुंचती है। बाजार से सवारी गुजरने के दौरान ग्वाल-बाल परंपरानुसार ‘गार गायन’ कर बादशाह को खुली गालियां व उलाहना देते हैं एवं कीर्तनगान करते हुए चलते हैं। बादशाह के घर सभी को पकौड़ी का नाश्ता कराया जाता है। सवारी पूरे ठाठ-बाट से निकलती है, जिसमें ऊंट, घोड़े एवं मंदिर का बांसुरी बैंड शामिल होता है। बादशाह बृजवासी- गुर्जर परिवार के सदस्य हेमंत गुर्जर बनते हैं।
Holi की ठिठोली
होलिकाष्टक के बाद ठाकुरजी को विशेष रसिया गान सुनाए जाते हैं। कुछ प्रसंग में गार का जिक्र भी होता है, जबकि निधि स्वरूप लाड़ले लालन के समक्ष डोलोत्सव तक प्रतिदिन शयन की झांकी से ठीक पहले रसिया में गार गायन होता है। राजभोग दर्शन में holi की ठिठोली होती है।
Holi Festival : होलिका पूजन
होलिका दहन 25 मार्च को प्रातः होगा। मंदिर के खर्च भंडार के अधिकारी, कीर्तनकार सहित सेवाकर्मी holi मगरा जाकर होलिका पूजन व दहन करेंगे। होलिका बनाने में कांटे की झाडियां और वढुलिये इस्तेमाल होते हैं। लगभग 15 सौ मतारी यानि कांटेदार झाडियां लगाई जाती है। 15 दिन तक holi को आकार दिया जाता है।
Holi Festival : डोलोत्सव पर चार राजभोग
प्रभु श्रीनाथजी मंदिर डोलोत्सव पर सुबह से गुलाल अबीर से सराबोर हो जाता है। प्रभु श्रीनाथजी के राजभोग की चार झांकियों के दर्शन होते हैं। देशभर से श्रद्धालु holi खेलने आते हैं। मंदिर में ठाकुरजी की सेवा में गुलाल अबीर सिंघाड़े के आटे से बनी होती है, वहीं गुलाल महंगी होने के बावजूद सैकड़ों श्रद्धालु खुद ठाकुरजी की सेवा में भेंट करते हैं।
मार्मिक प्रसंगों के साथ रसिया गान
पूरे फागोत्सव में मंदिर में रसिया गान प्रतिदिन राजभोग की झांकी में होता है। कई विशेष रसिया अपने गायन से बृज के माहौल का आभास कराते हैं। ‘जशोदा मईया खोल किंवडिया लाला आयो गाय चराय… जैसे रसिया गान कृष्ण के बाल सुलभ भावों से मोह लेते हैं। उड़त गुलाल लाल भये बादल… रसिया गान के साथ वैष्णवों पर गुलाल फेंकने का दृश्य भाव-विभोर कर देता है।