कोरोना की तीसरी लहर से बच्चों को बचाने के लिए राजस्थान सरकार इसकी तैयारी में जुट गई है। संक्रमित गर्भवती महिला का दूध नवजात को कोरोना से बचाने में कितना कारगर है। एंटीबॉडी मददगार है या नहीं। इम्युनिटी क्षमता पर 8 डॉक्टरों की टीम इस पर रिसर्च करेगी। तीसरी लहर की आशंका को लेकर गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उतर प्रदेश के बाद अब राजस्थान में भी इस पर रिसर्च किया जाएगा।
इसमें गायनी, पीडियाट्रिक्स, माइक्रोबायलोजिस्ट दि शामिल हैं। सरकार व एथिक्स कमेटी की ओर से जयपुर के सांगानेरी गेट स्थित महिला चिकित्सालय को 102 संक्रमित गर्भवती महिला और उनके नवजात शिशु पर अध्ययन की मंजूरी मिली है। शोध के बाद रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाएगी।
महिला चिकित्सालय सांगानेरी गेट में 1229 संक्रमित गर्भवतियों में मात्र 12 बच्चे पॉजिटिव मिले हैं। जुलाई माह में अभी तक न तो संक्रमित गर्भवती मिली है और न ही संक्रमित बच्चा। इम्युनिटी क्षमता पर शोध अजमेर, जोधपुर, उदयपुर और बीकानेर में भी करना प्रस्तावित है।
डॉक्टरों के अनुसार मां के दूध में शिशु को कोरोना से बचाने की उच्च स्तर की क्षमता है। दूध पिलाने से मां से शिशुओं में संक्रमण नहीं फैलता है। अगर मां कोरोना संक्रमित है, तो भी मां का दूध संक्रमण से बचा सकता है। कोरोना से बचाने के लिए मां का दूध वरदान साबित हो सकता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, नई दिल्ली के अनुसार संक्रमित मां के दूध का सैंपल लेकर एलाइजा टेस्ट के जरिए एंटीबॉडी की जांच की जाएगी।
एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सुधीर भंडारी के अनुसार, सांगानेरी गेट स्थित महिला चिकित्सालय में एंटीबॉडी का अध्ययन किया जाएगा। सरकार से मंजूरी मिल चुकी है। इसमें मदर मिल्क बैंक का सहयोग भी लिया जाएगा। टीम में डॉ. एमएल गुप्ता, डॉ. सुनील गोठवाल, डॉ. आरएन सेहरा, डॉ. आशा वर्मा, डॉ. भारती मल्होत्रा, डॉ. आरके गुप्ता, डॉ. सीतारमण, डॉ. मधुर जैन आदि।
बच्चों में ब्लैक फंगस का खतरा
प्रदेश में जहां एक तरफ कोरोना सिमटता नजर आ रहा है, वहीं बड़ों के बाद बच्चों में भी ‘ब्लैक फंगस’ का खतरा मंडराने लगा है। अब तक पांच बच्चों में म्यूकरमाइकोसिस मिल चुका है। बीकानेर में पांच में से एक बच्चे की मौत हो चुकी है। भरतपुर निवासी 5 साल के बच्चे का जेके लोन में इलाज चल रहा है। एसएमएस अस्पताल के डॉक्टर बच्चे का आधा तालु, आधा जबड़ा और दांत निकाल चुके हैं। बच्चे की हालत स्थिर है। म्यूकर माइकोसिस से पीड़ित बच्चों की उम्र डेढ़ से लेकर 12 साल तक की है।