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शरद पूर्णिमा पर खीर खाने का महत्व, डॉक्टर का दावा- श्वास रोगों से मिलती है राहत, माता लक्ष्मी का मिलता है आशीर्वाद

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शरद पूर्णिमा के दिन चांद की रोशनी में रखे खीर को लेकर कुछ मान्यताएं हैं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के चांद से निकली रोशनी हमारे स्वास्थ्य को पूरे साल बेहतर रखती है। रात भर चांद की रोशनी में रखी खीर को अल सुबह खाने से सांस से जुड़ी परेशानियां खत्म होती हैं।

जानिए चांदनी वाली खीर खाने का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व के बारे में…

उज्जैन में धनवंतरी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर और मेडिसिन विभाग में पदस्थ डॉ. प्रकाश जोशी इस दिन का विशेष महत्व बता रहे हैं। वे लगातार 25 वर्षों से खीर का वितरण करते आ रहे हैं। अपने यहां आने वाले श्रद्धालुओं को पूरी रात सत्यनारायण भगवान की कथा, सुंदर कांड और अन्य धार्मिक आयोजन करते हैं और सुबह 4 बजे खीर का वितरण करते हैं। उनका कहना है कि चांदनी रात में रखे खीर को खाने से सांस से संबंधित बीमारियां नहीं होतीं।

धार्मिक कारण… पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी विचरण करती हैं, इसलिए माता लक्ष्मी की पूजा करने से उनका विशेष आशीर्वाद मिलता है तथा जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती। हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन लोग उपवास व पूजन करते हैं।

माना जाता है कि चंद्रमा से निकलने वाली किरणें इसे अपने गुणों से पोषित कर देती है। इसके बाद वितरण किया जाता है। शरद पूर्णिमा की रात वाली खीर खाने का विधान पौराणिक काल से चला आ रहा है। डॉ. जोशी ने बताया कि इसमें मिलाई जानी वाली औषधियों को नवरात्रि में सिद्ध किया जाता है। इसके बाद शरद पूर्णिमा पर खीर में मिलाया जाता है।

आयुर्वेद का दावा- वर्षा ऋतु में बढ़ता है पित्त, खीर उसे नष्ट करती है

आयुर्वेद के आचार्यों ने श्वास रोग (दमा या इसके जैसे रोग) को पित्त से उत्पन्न बीमारी माना है। दरअसल, वर्षा ऋतु में शरीर में पित्त बढ़ता है और शरद ऋतु में शरीर में यही पित्त सबसे ज्यादा होता है। दूध से बनी खीर खाने से पित्त और इससे होने वाली बीमारियां नहीं होती हैं। यही वजह है कि वर्षा ऋतु खत्म होने पर श्राद्ध आते हैं और इन दिनों खीर खाने की परंपरा है।
इस दिन रात्रि जागरण दो कारणों से किया जाता है। चंद्रमा अपनी किरणों से निरन्तर पोषण करता रहता है। दूसरी रातों के मुकाबले शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा ज्यादा चांदनी बिखेरता है, इसलिए शरद ऋतु में पैदा होने वाले फूलों की माला और स्वच्छ वस्त्र पहनकर किरणों में बैठना चाहिए। आयुर्वेद के मुताबिक, रात्रि जागरण से शरीर में वायु की मात्रा बढ़ती है। जो सुबह खीर खाने से नियंत्रित होती है, इसलिए खीर खाने के बाद डॉ. जोशी भी श्रद्धालुओं को करीब 500 कदम चलने का भी कहते हैं।

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