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लक्ष्मणसिंह राठौड़ राजसमंद

मेवाड़ में प्रसिद्ध राजसमंद जिले के गढबोर, चारभुजा स्थित चारभुजानाथ मंदिर से परंपरानुसार शाही लवाजमे के साथ सोने का बेवाण ठाठ बाट से दूध तलाई पर पहुंचा, जहां इस बार गिने चुने पुजारीगणों व कस्बे के कुछ लोगों की मौजूदगी में ठाकुरजी को स्नान कराया गया। कोरोना संक्रमण के चलते सरकार के प्रतिबंध के चलते इस बार न तो मेला भरा और न ही देशभर से श्रद्धालु आए। यहां देवस्थान विभाग द्वारा मेला भरता है, जिसमें देशभर से हजारों लोग उमड़ते हैं, लेकिन शुक्रवार को जलझूलनी एकादशी पर चौतरफा सन्नाटा पसरा रहा। न तो बाजार में मेले सा कहीं माहौल था और न ही कोई शोर शराबा। हालांकि कानून एवं शांति व्यवस्था को लेकर जरूर भारी पुलिस जाब्ता तैनात रहा। गढबोर में चारभुजा मंदिर से अल सुबह पांच बजे से ही सरोवर स्नान के लिए ठाकुरजी का बेवाण चुनिंदा पुजारीगणों के साथ रवाना हो गया। छोगाला छैल के जयकारों के साथ पुजारीगण मंदिर से रवाना हुए।

पुजारियों ने किया हरजस का गायन

मंदिर से दूध तलाई तक गुलाल अबीर से रंगी राह पर भक्ति के रंग में रंगे पुजारी व कुछ भक्तजन जयकारे लगाते चल रहे थ्ज्ञे। बैंड चारभुजानाथ के मनमोहक भजनों की प्रस्तुतियां दे रहा था। विशेष पुलिस जाब्ते के साथ ठाकुरजी के बाल स्वरुप का विग्रह रवाना हुआ।इस दौरान रेवाड़ी के आगे पुजारीगण हाथों में छड़ी, गोटा, मयूरपंख, भाला, तलवार, बंदूक सहित सोने चांदी के आयुध लिए चल रहे थे। मेवाड़ी पगड़ी, गले में स्वर्णहार, धोती कुर्ता पहने पुजारी थिरकते हुए आगे बढ़ रहे थे। पीछे भगवान की सोने की पालकी थी, जो पुजारियों के सुरक्षा घेरे में थी। ज्यों ही बेवाण नक्कार खाना चौक पहुंचा, तो गुलाल व फूलों की बौछार हुई। होली चौक से होते हुए रामी तलाई स्थित छतरी पर पहुंची, जहां हरजस का गान किया गया। यहां से सवारी दूध तलाई स्थित छतरी पर पहुुची, जहां ठाकुरजी का पंचामृत से पूजन हुआ और दही का भोग लगाया गया। स्नानयात्रा में बैंड, थाली, मृदंग, नरसिंगा बजाते कलाकार एवं भक्तिमय हरजस के साथ श्रद्धालु भक्ति की मस्ती में थिरकते हुए दूधतलाई की तरफ बढ़ रहे थे।

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टैंकर के पाइप की पानी की बौछार

दूध तलाई की छतरी से ठाकुरजी की छवि को एक पुजारी ने सिर पर बिराजित कर परिक्रमा के लिए आगे बढ़े। ज्यों ही ठाकुरजी का विग्रह पाल पर पहुंचा, तो इस बार तलाई में बहुत कम बारिश होने से पानी कम आया। इस कारण दो टैंकर मंगवाए गए और कड़ाहे में पानी भरा गया। परिक्रमा के दौरान भी टैंकर के पाइप से ही पानी की बौछार की गई। फिर ठाकुरजी के दक्षिण स्थित छतरी पर पहुंचने पर झीलवाड़ा ठिकाना की ओर से अमल के भोग की रस्म निभाई गई। फिर मुख्य छतरी पर पहुंचने पर ठाकुरजी का विशेष शृंगार कर हरजस का गायन किया। करीब पौने 9 बजे वापस ठाकुरजी को चांदी की पालकी में बिराजित कर रेवाड़ी रवाना हुई। आगे बैंड मधुर भजनों की स्वर लहरियां बिखेर रहा था, जबकि श्रद्धालु छोगाला छैल के जयकारे लगाते चल रहे थे। करीब साढ़े दस बजे ठाकुरजी का बेवाण वापस निज मंदिर पहुंचा।

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कस्बे रहा सन्नाटा, नहीं भरा मेला

इस बार कोरोना गाइडलाइन के चलते चारभुजा मंदिर का मुख्य द्वार बंद रहा। हालांकि रेवाड़ी के दौरान स्थानीय गांववासियों के अलावा कुछ चुनिंदा लोग बाहर से भी आए, जिन्होंने ठाकुरजी के दर्शन किए। हालांकि इस बार न तो मेला भरा और न ही फुटकर बाजार लगा और न ही डोलर, चकरी लगी। सवारी के दौरान भी मुख्य मंदिर परिसर से लेकर बाजार तक चौतरफा सन्नाटा पसरा रहा। श्री चारभुजानाथ मंदिर से बस स्टैंड, पुलिस थाना से लेकर मेवाडिय़ा चौराहा तक सडक़ें सूनी रही। कानून एवं शांति व्यवस्था को लेकर राजसमंद जिलेभर का जाब्ता तैनात रहा।