राजसमंद। चीन के बाद दूसरी सबसे लंबी दीवार, कुंभलगढ़ दुर्ग, वन्यजीव अभ्यारण्य के साथ कुंभलगढ़ की हरी भरी पहाडिय़ों पर बादलों की अठखेलियों का नजारा हर किसी को आकर्षित करता है। इसे देखने के लिए देश विदेश के पर्यटक यहां आते हैं और कुंभलगढ़ की होटलों में रूकते हैं और सुबह शाम हरी भरी कुंभलगढ़ की वादियों के साथ सुकून, शांति का आनंद लेते हैं।
वैश्विक कोरोना महामारी के चलते विगत 2 माह से ऐतिहासिक दुर्ग कुंभलगढ़ के द्वार पर्यटकों के लिए बंद जरूर रहे, लेकिन 16 जून से एक बार पुन: दुर्ग के द्वार पर्यटकों के लिए खुल गए हैं । प्री-मानसून बारिश के चलते दुर्ग परिक्षेत्र तथा कुंभलगढ़ की वादियों ने मानो हरियाली की चादर ओढ़ ली है तथा बादलों की आवाजाही व बरसात की फुहार पर्यटकों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर रही है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में खरीफ की मुख्य फसल मक्का के खेत अब लहराने लगी है तथा हर पनघट पर रेहट की आवाज दूर से ही सुनाई देती है, जो पर्यटकों को सहज ही अपनी और आकर्षित कर रही हैं। पर्यावरणविद शिक्षक कैलाश सामोता का कहना है कि कुंभलगढ़ परीक्षेत्र जैव विविधता से संपन्न क्षेत्र है, जहां पर्यटन की अपार संभावनाएं है। यहां एडवेंचर, ग्रामीण पर्यटन एवं जैविक कृषि तथा देसी व्यंजनों को प्रोत्साहन देखकर पर्यटन व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा सकता है।