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सरल व्यक्तित्व थे लाल बहादुर शास्त्री, उनकी पत्नी ने पत्र लिखने के बाद उठाया यह कदम

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लालबहादुर शास्त्री देश के दूसरे पीएम लाल बहादुर शास्त्री का जन्म रामनगर में मुंशी शारदा प्रसाद के यहां 2 अक्टूबर, 1904 को हुआ था। जब 1965 में देश भुखमरी की समस्या से गुजर रहा था, तब उस समय शास्त्री जी ने वेतन लेना बंद कर दिया था। इसी दौरान अपने घर काम करने आने वाली बाई को भी काम पर आने से मना कर दिया था और घर का काम खुद करने लगे थे। उन्हें सादगी पसंद थी, इस कारण वे फटे कुर्ते को भी कोट के नीचे पहन लिया करते थे। आइए जानते है लाल बहादुर शास्त्री के जीवन से जुड़े कुछ रोचक और प्रेरक किस्से..

थर्ड क्लास में लगवाए थे पंखे

लाल बहादुर शास्‍त्री प्रधानमंत्री बनने से पहले विदेश मंत्री, गृह मंत्री और रेल मंत्री जैसे अहम पदों पर थे।
एक बार वे रेल की एसी बोगी में सफर कर रहे थे। इस दौरान वे यात्रियों की समस्या जानने के लिए थर्ड क्लास (जनरल बोगी) में चले गए। इसके बाद उन्होंने वहां की दिक्कतों को देखा और अपने PA पर नाराज भी हुए। फिर उन्‍होंने थर्ड क्लास में सफर करने वाले पैसेंजर्स को फैसिलिटी देने का फैसला करते हुए जनरल बोगियों में पहली बार पंखा लगवाया और साथ ही पैंट्री की सुविधा भी शुरू करवाई।

बचपन में तैरकर जाते थे स्कूल

शास्‍त्री जी बचपन में काफी शरारती हुआ करते थे। घर में लोग उन्हें नन्हे कहते थे। उन्हें गांव के बच्चों के साथ नदी में तैरना बहुत अच्छा लगता था। वे दोस्तों के साथ गंगा में तैरने भी जाते थे। बचपन में उन्होंने अपने साथ पढ़ने वाले एक दोस्‍त को डूबने से बचाया था। काशी के रामनगर के अपने पुश्तैनी घर से रोज माथे पर बस्ता और कपड़ा रखकर वे कई किलोमीटर लंबी गंगा को पार कर स्कूल जाते थे। हरिश्चन्द्र इंटर कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे अक्सर लेट पहुंचते थे और क्लास के बाहर खड़े होकर पूरे नोट्स बना लेते थे।

फटे कपड़ों का रूमाल बनवाते थे शास्‍त्री जी

बताया जाता है कि शास्त्री जी फटे कपड़ों से बाद में रूमाल बनवाते थे औऱ फटे कुर्तों को कोट के नीचे पहनते थे। इस पर जब उनकी पत्नी ने उन्हें टोका तो उनका कहना था कि देश में बहुत ऐसे लोग हैं, जो इसी तरह गुजारा करते हैं।

VVIP कल्चर नहीं था पसंद

शास्त्री जी किसी भी प्रोग्राम में VVIP की तरह नहीं, बल्कि आम आदमी की तरह जाना पसंद करते थे। प्रोग्राम में इवेंट ऑर्गनाइजर उनके लिए तरह-तरह के पकवान बनवाते तो वे उन्हें समझाते थे कि गरीब आदमी भूखा सोया होगा और मै मंत्री होकर पकवान खाऊं, ये अच्छा नहीं लगता। दोपहर के खाने में वे अक्सर सब्जी-रोटी खाते थे।

पानी की बौछार से हटवाई थी भीड़

वे जब पुलिस मिनिस्टर थे, तब उन्होंने देश में पहली बार लाठी चार्ज की जगह पानी की बौछार डालने का आदेश जारी किया था, ताकि कोई घायल न हो।

ऐसे रहूंगा तभी समझूंगा गरीबों का दर्द

जब शास्त्री जी रेल मंत्री थे, तो काशी आने पर उनका भाषण होना था। मैदागिन में जहां वो रुके थे, वहां से जब वो निकल रहे थे, तो उनके एक सहयोगी ने उनको टोका कि आपका कुर्ता साइड से फटा है। शास्त्री जी ने विनम्रता से जवाब दिया कि गरीब का बेटा हूं। ऐसे रहूंगा, तभी गरीब का दर्द समझ सकूंगा।

जब पत्‍नी ने डाल दिया था चिता में लेटर

शास्त्री जी समझौते के लिए जब ताशकंद गए थे, तो उस समय उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने अपने मन की बातों को एक पत्र में लिख कर रखा था। ताशकंद से 12 जनवरी 1966 को उनका पार्थिव शरीर भारत आया, इसी दिन विजय घाट पर उनकी जलती चिता में उन्होंने वह लेटर इस सोच के साथ डाल दिया कि अब अपने मन की बात वहीं आकर करूंगी।

एक दिन का व्रत रखें देशवासी

शास्त्री जी ने युद्ध के दौरान देशवासियों से अपील की थी कि अन्न संकट से उबरने के लिए सभी देशवासी सप्ताह में एक दिन का व्रत रखें। उनके अपील पर देशवासियों ने सोमवार को व्रत रखना शुरू कर दिया था।

शिक्षा के बारे में बहुत सोचते थे शास्त्री जी

शास्त्री जी शिक्षा के बारे में भी बहुत सोचते थे। उनका मानना था कि प्रारंभिक शिक्षा में हिंदी भाषा अनिवार्य है।
उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में दर्शनशास्त्र अवश्‍य पढ़ाया जाना चाहिए। उनको विश्‍वास था कि हमारे शास्त्रों में लोकतंत्र के चारों स्तंभ को मजबूत करने की शक्ति है। उनका मानना था कि गांव समृद्ध होगा, किसान समृद्ध होगा तो देश समृद्ध होगा।

थप्‍पड़ के जवाब में लगा लिया गले

हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज में हाईस्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के दौरान उन्होंने साइंस प्रैक्टिल में यूज होने वाले बीकर को तोड़ दिया था। स्कूल के चपरासी देवीलाल ने उनको देख लिया और उन्‍हें जोरदार थप्पड़ मारा और लैब से बाहर निकाल दिया। रेल मंत्री बनने के बाद 1954 में एक कार्यक्रम में भाग लेने आए शास्त्री जी जब मंच पर थे, तो देवीलाल उनको देखते ही हट गए। लेकिन शास्त्री जी ने उन्हें पहचान लिया और देवीलाल को मंच पर बुलाकर गले लगा लिया।

कैसे बने थे शास्‍त्री

काशी विद्यापीठ में बीए की डिग्री को शास्त्री कहते थे। इसी डिग्री को उन्होंने अपना टाइटिल बना लिया जो आज भी उनके परिवार की पहचान है।

कहा- किसी भी मकान को न तोड़ा जाए मैं पैदल ही घर जाऊंगा

जब वह प्रधानमंत्री बनकर पहली बार काशी अपने घर आ रहे थे, तब पुलिस उनके स्वागत के लिए चार महीने पहले से रिहर्सल कर रही थी। उनके घर तक जाने वाली गलियां काफी संकरी थीं, जिस कारण उनकी गाड़ी वहां तक नहीं पहुंच पाती। फिर रास्ता बनाने के लिए गलियों को चौड़ा करने का फैसला किया गया। यह बात शास्त्री जी को मालूम हुई तो उन्होंने तत्काल खबर भेजी कि गली को चौड़ा करने के लिए किसी भी मकान को तोड़ा न जाए। मैं पैदल घर जाऊंगा।

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