Loksabha Election Result : दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े चुनाव में जनता ने चौंकाने वाले परिणाम दिए। लोकसभा चुनाव में आए जनादेश ने सारे अनुमानों को ध्वस्त कर दिया। रुझानों में भाजपा 250 तक भी नहीं पहुंच पाई। आखिरी नतीजे में भी एनडीए के सहयोगी दलों के साथ 290 के आस पास ही रही। 33 साल बाद जनता दोबारा वहीं परिणाम दिए हैं। लोकसभा चुनाव को लेकर जनादेश को लेकर कई मायने है। इसे समझने के लिए 10 बातों को जानना होगा, तभी आपके हर सवाल का समाधान होगा।
Election Result : पहला सवाल है- इस जनादेश के क्या मायने हैं
Election Result : इसका जवाब है- एनडीए को 400 पार और पार्टी को 370 पार ले जाने की भाजपा की रणनीति कामयाब नहीं हो पाई। जनादेश ने साफ कर दिया कि सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे के भरोसे रहने से भाजपा का काम नहीं चलेगा। उसके निर्वाचित सांसदों और राज्य के नेतृत्व को भी अच्छा प्रदर्शन करना होगा। जनादेश बताता है कि गठबंधन की अहमियत का दौर 10 साल बाद फिर लौट आया है। भाजपा के पास अकेले के बूते अब वह आंकड़ा नहीं है, जिसके सहारे वह अपना एजेंडा आगे बढ़ा सके। एग्जिट पोल्स की भी हवा निकल गई। 11 एग्जिट पोल्स में एनडीए को 340 से ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। तीन सर्वेक्षणों में तो एनडीए को 400 लोकसभा सीटें मिलने का अनुमान था। रुझानों/नतीजों में एनडीए उससे तकरीबन 100 सीट पीछे है।
Loksabha Chunav 2024 : दूसरा सवाल है – क्या इसे सत्ता विरोधी लहर कहेंगे?
Loksabha Chunav 2024 : 1999 में 182 सीटें जीतने वाली भाजपा जब 2004 में 138 सीटों पर आ गई तो उसने सत्ता गंवा दी। उसके पास स्पष्ट बहुमत 1999 में भी नहीं था और उससे पहले भी नहीं था। फिर भी यह माना गया कि जनादेश भाजपा के ‘फील गुड फैक्टर’ के विरोध में था। 2004 में भाजपा से महज सात सीटें ज्यादा यानी 145 सीटें जीतकर कांग्रेस ने यूपीए की सरकार बना ली। 2009 में कांग्रेस इससे बढ़कर 206 सीटों पर पहुंच गई, लेकिन 2014 में 44 पर सिमट गई। इसे स्पष्ट तौर पर यूपीए के लिए सत्ता विरोधी लहर माना गया। जब उत्तर प्रदेश जैसे सबसे अहम राज्य के नतीजे देखते हैं तो तस्वीर इस बार अलग नजर आती है। यहां भाजपा 34-35 सीटों पर सिमटती दिख रही है, जबकि 2014 में यहां भाजपा ने 71 और 2019 में 62 सीटें जीती थीं। सबसे बड़ा नुकसान भाजपा को इसी राज्य से हुआ है।
Narendra Modi : तीसरा सवाल – कम वोटिंग से घटी भाजपा की सीटें घटा ?
Narendra Modi : वैसे तो इस बार लोकसभा चुनाव के शुरुआती छह चरण में ही पिछली बार के मुकाबले ढाई करोड़ से ज्यादा वोटरों ने मतदान किया था। फिर भी मतदान का प्रतिशत कम रहा। इसके ये मायने निकाले जा रहे हैं कि भाजपा अब की पार 400 पार के नारे में खुद ही उलझ गई। उसके वोट इसलिए नहीं बढ़े क्योंकि भाजपा को पसंद करने वाले वोटरों ने तेज गर्मी के बीच संभवत: खुद ही यह मान लिया कि इस बार भाजपा की जीत आसान रहने वाली है। इसलिए वोटरों का एक बड़ा तबका वोट देने के लिए निकला ही नहीं।
NDA Alliance : चाैथा सवाल है- यह किसकी जीत और किसकी हार?
NDA Alliance : यह भाजपा की स्पष्ट जीत नहीं है। यह एनडीए की जीत ज्यादा है। आंकड़ों की दोपहर तक की स्थिति को देखें तो यह माना जा सकता है कि पूरे पांच साल भाजपा गठबंधन के सहयोगियों खासकर जदयू और तेदेपा के भरोसे रहेगी। इन दोनों दलों के बारे में यह कहना मुश्किल है कि ये भाजपा के साथ पूरे पांच साल बने रहेंगे या नहीं। राज्य के लिए विशेष पैकेज और केंद्र और प्रदेश की सत्ता में भागीदारी के मुद्दे पर इनके भाजपा से मतभेद के आसार ज्यादा रहेंगे। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू, दोनों ही अतीत में एनडीए से अलग हो चुके हैं। इंडी गठबंधन की बात करें तो यह उसकी स्पष्ट जीत कम और बड़ी कामयाबी ज्यादा है। यह गठबंधन 200 का आंकड़ा आसानी से पार कर रहा है। इसके ये सीधे तौर पर मायने हैं कि अगले पांच साल विपक्ष केंद्र की राजनीति में मजबूती से बना रहेगा। क्षेत्रीय दल देश की राजनीति में अपरिहार्य बने रहेंगे।
INDIA Alliance : पांचवां सवाल है- मुकाबला भाजपा बनाम विपक्ष था या मोदी बनाम मोदी ?
INDIA Alliance : आंकड़ों की मानें तो इसका जवाब है हां, लेकिन इसका दूसरा जवाब यह भी है कि यह मुकाबला 2014 और 2019 में मोदी की लोकप्रियता बनाम 2024 में मोदी की लोकप्रियता का रहा। भाजपा ने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर पहली बार 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। पहली बार में ही वह अकेले के बूते 282 सीटों पर पहुंची। 2019 में भाजपा ने 303 सीटें जीतीं। इस बार भाजपा की अपनी सीटें 240 के आसपास हैं। यानी वह 2014 से 40 सीटें और 2019 से 60 सीटें पीछे है।
Loksabha Election 2024 : छठा सवाल है- गठबंधन की राजनीति लौट रही है क्या ?
Loksabha Election 2024 : इसका जवाब सटीक है। भाजपा को भले ही पांच साल तक आसानी से सरकार चला लेने का भरोसा हो, लेकिन उसकी निर्भरता जदयू और तेदेपा जैसे दलों पर रहेगी। भाजपा ने 10 साल स्पष्ट बहुमत से सरकार चलाई, लेकिन अब गठबंधन सरकार का दौर लौटेगा।
Rahul Gandhi : सातवां सवाल है- इस बार भाजपा सरकार किस स्थिति में रहेगी?
Rahul Gandhi : डॉ. मनमोहन सिंह के समय कांग्रेस ने इससे भी कम सीटें लाकर गठबंधन की सरकार चलाई। अटल-आडवाणी भी भाजपा को अधिकतम 182 सीटों पर पहुंचा सके थे, लेकिन सरकार चला पाए। भाजपा की 2024 की स्थिति इससे बेहतर है।
आठवां सवाल है- यह जनादेश कौनसी याद दिलाता है ?
नतीजे 1991 के लोकसभा चुनाव जैसे हैं। तब कांग्रेस ने 232 सीटें जीतीं और पीवी नरसिंहा राव प्रधानमंत्री बने। उन्होंने पूरे पांच साल अन्य दलों के समर्थन से सरकार चलाई। इस बार भाजपा भी 240 के आसपास है। गठबंधन अब उसकी मजबूरी है।
नौवां सवाल है- चुनाव किसके लिए उत्साहजनक हैं?
इसके पीछे कई चेहरे हैं। जैसे राहुल गांधी। कांग्रेस 2014 में 44 और 2019 में 52 सीटों पर थी तो उन्हें जिम्मेदार माना गया। इस बार वह 100 सीटों के करीब है। यानी पिछली बार के मुकाबले लगभग दोगुनी सीटों पर वह जीत रही है। दूसरा बड़ा नाम है अखिलेश यादव। देशभर में भाजपा को सबसे बड़ा झटका सपा ने ही दिया है। सपा ने पिछली बार बसपा के साथ गठबंधन किया। बसपा को 10 सीटें मिली थीं, लेकिन सपा पांच ही सीटें जीत पाई थी। इस बार सपा ने कांग्रेस से हाथ मिलाया।
वह 34 से ज्यादा सीटों पर जीत रही है। यह लोकसभा चुनावों में वोट शेयर के लिहाज से सपा का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन हो सकता है। 2004 के लोकसभा चुनाव में उसे 35 सीटें मिली थीं। वहीं, वोट शेयर के लिहाज पार्टी का सबसे बेहतर प्रदर्शन 1998 में था जब उसे करीब 29 फीसदी वोट मिले थे। इस बार यह आंकड़ा 33 फीसदी से ज्यादा हो सकता है। तीसरा बड़ा नाम हैं चंद्रबाबू नायडू। उनकी तेदेपा आंध्र प्रदेश में सरकार बनने के करीब है और एनडीए के सबसे अहम घटक दलों में से एक रहेगी। ऐसा ही एक नाम उद्धव ठाकरे का है। यह उनके लिए अस्तित्व की लड़ाई थी। शिंदे गुट से ज्यादा सीटें जीतकर उद्धव ठाकरे यह कहने की स्थिति में होंगे कि उनकी शिवसेना ही असली शिवसेना है।
दसवां सवाल है- इस बार क्या रिकॉर्ड बन सकते हैं?
इसका जवाब है- इस बार का लोकसभा चुनाव भले ही सुस्त नजर आया, लेकिन जनादेश ऐतिहासिक हो सकता है। अगर भाजपा ही सरकार बनाती है तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हैट्रिक होगी। पीएम मोदी पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद वे ऐसे दूसरे नेता होंगे, जो लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे। 1947 में पंडित नेहरू पहली बार प्रधानमंत्री जरूर बने, लेकिन चुनावी राजनीति शुरू होने के बाद उन्होंने 1951-52, 1957, 1962 का चुनाव जीता और लगातार प्रधानमंत्री रहे। शपथ लेने के बाद प्रधानमंत्री मोदी अटलजी की भी बराबरी कर लेंगे। अटलजी का कार्यकाल कम रहा, लेकिन उन्होंने तीन बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।