maha kumbh mela stampede : प्रयागराज का महाकुंभ मेला आस्था, श्रद्धा और आत्मशुद्धि का सबसे बड़ा संगम माना जाता है। हर बार लाखों श्रद्धालु इसमें हिस्सा लेने के लिए देश-विदेश से आते हैं, लेकिन इस बार यह ऐतिहासिक आयोजन एक बड़े हादसे का गवाह बना। 29 जनवरी 2025 को दूसरे शाही स्नान के दिन संगम तट पर श्रद्धालुओं के सैलाब के कारण भारी भगदड़ मच गई, जिसमें अब तक 17 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है, जबकि दर्जनों लोग घायल हो गए।
यह हादसा न सिर्फ प्रशासन के लिए एक बड़ा झटका था, बल्कि इसे एक दुर्लभ 144 साल के बाद बने महाकुंभ संयोग से भी जोड़ा जा रहा है। श्रद्धालु इस पुण्य मुहूर्त का इंतजार कर रहे थे और इसी वजह से घाटों पर भारी भीड़ जमा हो गई, जिससे हादसा हुआ।
संगम तट पर भगदड़ की घटना के बाद प्रशासन ने अखाड़ों से जुलूस न निकालने की अपील की है। इसी कारण 13 अखाड़ों ने मौनी अमावस्या पर होने वाला अमृत स्नान स्थगित कर दिया है। महंत रवींद्र पुरी ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया कि महाकुंभ में भगदड़ के बाद अखाड़ों ने मौनी अमावस्या का ‘अमृत स्नान’ रद्द कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अब सभी अखाड़े 3 फरवरी, बसंत पंचमी के दिन स्नान करेंगे।
मौनी अमावस्या महाकुंभ का दूसरा शाही स्नान है, जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होने की संभावना है। महाकुंभ के अन्य प्रमुख स्नान तिथियों में 3 फरवरी (बसंत पंचमी – तीसरा शाही स्नान), 12 फरवरी (माघी पूर्णिमा), और 26 फरवरी (महा शिवरात्रि) शामिल हैं।
kumbh stampede death : कैसे हुआ हादसा? प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया पूरा मंजर
kumbh stampede death : असम से आई मधुमिता, जो इस हादसे की प्रयागराज महाकुंभ मेला भगदड़ चश्मदीद गवाह हैं, बताती हैं कि संगम तट पर हजारों लोग सुबह होने का इंतजार कर रहे थे। कई श्रद्धालु वहीं बैठे और लेटे हुए थे ताकि शुभ मुहूर्त में स्नान कर सकें। इसी दौरान अखाड़ों के अमृत स्नान के लिए बनाए गए बैरियरों को तोड़कर बेकाबू भीड़ अंदर घुस आई और जो लोग पहले से घाट पर लेटे थे, वे इस भगदड़ की चपेट में आ गए।
बेगूसराय से आईं बुजुर्ग महिला बदामा देवी कहती हैं, “बेटा, इस जनम में ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा, इसलिए हम इतनी दूर से आए थे, लेकिन हमें क्या पता था कि यह मौका हमारी जान पर भारी पड़ जाएगा।”
झारखंड के पलामू से आए श्रद्धालु राम सुमिरन का भी कुछ ऐसा ही कहना है। वे बताते हैं कि 144 साल बाद आया यह विशेष अवसर कोई भी गंवाना नहीं चाहता था। यही वजह थी कि देश-दुनिया से लोग संगम के किनारे खुले आसमान के नीचे रातभर डटे रहे। लेकिन जैसे ही बैरियर टूटे, जनसैलाब अनियंत्रित हो गया और लोग एक-दूसरे को रौंदते चले गए।
maha kumbh stampede 2025 : 144 साल का दुर्लभ संयोग बना हादसे की वजह?
maha kumbh stampede 2025 : इस बार का महाकुंभ बेहद खास था, क्योंकि 144 साल बाद ऐसा संयोग बना था, जब विशेष ग्रहों की स्थिति में संगम में स्नान करने से हजारों गुना अधिक पुण्य मिलने की मान्यता थी। यही वजह थी कि श्रद्धालु इस दुर्लभ मुहूर्त में स्नान करने के लिए बेसब्र थे।
ज्योतिषीय दृष्टि से इस दिन बना अद्भुत योग:
- इस दिन मौनी अमावस्या थी, जो सबसे पवित्र तिथि मानी जाती है।
- सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में थे, जिससे इस दिन का महत्व और बढ़ गया।
- ज्योतिषियों के अनुसार, इस स्नान से 100 जन्मों के पाप कटने की मान्यता थी।
यही कारण था कि लोग प्रशासन की अपीलों को नजरअंदाज कर उसी विशेष मुहूर्त का इंतजार कर रहे थे।
prayagraj stampede news : प्रशासन ने की थी बार-बार अपील, लेकिन…
prayagraj stampede news : प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, प्रशासन हादसे की प्रयागराज महाकुंभ मेला भगदड़ आशंका पहले से जता रहा था। प्रयागराज के मंडलायुक्त विजय विश्वास पंत लगातार लाउडस्पीकर से श्रद्धालुओं को समझाने की कोशिश कर रहे थे। वे बार-बार यह कहते सुने गए:
👉 “सभी श्रद्धालु सुन लें… यहां (संगम तट) लेटे रहने से कोई फायदा नहीं है। जो सोवत है, वो खोवत है। उठिए और स्नान करिए। बहुत भीड़ आने वाली है, भगदड़ मच सकती है।”
👉 “आप पहले आ गए हैं तो सबसे पहले स्नान करके वापस लौट जाइए। यह आपके सुरक्षित रहने के लिए जरूरी है।”
लेकिन श्रद्धालु किसी भी हाल में 144 साल के संयोग का लाभ लेने के लिए अड़े रहे और इसी जिद ने उन्हें इस हादसे की ओर धकेल दिया।
प्रशासन की चूक बनी जानलेवा?
हालांकि, हादसे के बाद प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल उठने लगे हैं।
➡ पहले से था भारी भीड़ का अनुमान:
प्रशासन को मालूम था कि इस बार अभूतपूर्व भीड़ उमड़ने वाली है, लेकिन इसके बावजूद भीड़ प्रबंधन के इंतजाम पर्याप्त नहीं थे।
➡ बैरिकेडिंग का कमजोर होना:
जो बैरिकेड्स श्रद्धालुओं को नियंत्रित करने के लिए लगाए गए थे, वे भारी भीड़ के आगे कुछ ही मिनटों में ढह गए।
➡ संख्या नियंत्रित करने की कोई व्यवस्था नहीं:
श्रद्धालुओं की संख्या को सीमित करने या उन्हें अलग-अलग समय पर स्नान करवाने का कोई व्यवस्थित प्लान प्रशासन के पास नहीं था।
एंट्री पॉइंट भीड़ की वजह से बंद
प्रयागराज में बुधवार को 9 करोड़ से ज्यादा लोग पहुंचे। इसके बाद भी लगातार लोगों के आने का सिलसिला जारी है। भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने प्रयागराज में आने वाले 8 एंट्री पॉइंट को बंद कर दिया।
- भदोही: वाराणसी बॉर्डर पर 20 किमी लंबा जाम
- चित्रकूट बॉर्डर: 10 किमी लंबा जाम है।
- कौशांबी बॉर्डर: सड़क से पार्किंग तक 50 हजार से ज्यादा वाहन रोके गए।
- फतेहपुर-कानपुर बॉर्डर: यहां भी वाहनों की लंबी कतारें देखी गईं।
- प्रतापगढ़ बॉर्डर: 40 हजार वाहनों को रोका गया।
- जौनपुर बॉर्डर: जौनपुर जिले के बदलापुर में पुलिस ने प्रयागराज जाने वाली सभी बसों को रोक दिया है।
- मिजापुर बॉर्डर: यहां भी गाड़ियों की लंबी लाइन देखी गई।
- रीवा बॉर्डर: 50 हजार वाहनों को रोका गया है।
भगदड़ के बाद का माहौल: श्रद्धालु सहमे, लेकिन आस्था बरकरार
इस हादसे के बावजूद संगम में श्रद्धालुओं का आना जारी है। कई लोग अपनों को खोकर भी स्नान करने के लिए संगम तट की ओर बढ़ रहे हैं।
वाराणसी से आए संत चैतन्य दास कहते हैं, “यह तो ईश्वर की माया है। जीवन और मृत्यु उसी के हाथ में है। हम तो अपनी आस्था को लेकर आए हैं, स्नान करके ही जाएंगे।”
सरकार और प्रशासन की प्रतिक्रिया
➡ उत्तर प्रदेश सरकार ने जांच के आदेश दे दिए हैं।
➡ मृतकों के परिवारों को ₹10 लाख का मुआवजा देने की घोषणा की गई है।
➡ घायलों के इलाज की व्यवस्था की जा रही है और उन्हें आर्थिक सहायता भी दी जाएगी।
आखिर कौन है जिम्मेदार?
इस हादसे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं:
- क्या प्रशासन पहले से और बेहतर इंतजाम कर सकता था?
- क्या श्रद्धालुओं को इस दुर्लभ संयोग के प्रति जागरूक करके हादसे से बचाया जा सकता था?
- क्या कुंभ मेले जैसी भीड़भाड़ वाली जगहों पर स्नान की व्यवस्था को दोबारा से व्यवस्थित करने की जरूरत है?
सबक लेना जरूरी
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति, आस्था और परंपरा का प्रतीक है। लेकिन ऐसे हादसे इस ऐतिहासिक पर्व पर काले धब्बे की तरह हैं।
जरूरी है कि आगे से:
✅ भीड़ प्रबंधन के बेहतर उपाय किए जाएं।
✅ श्रद्धालुओं को जागरूक किया जाए कि आस्था के नाम पर सुरक्षा से समझौता न करें।
✅ प्रशासन पहले से ही कड़ी रणनीति बनाए और उसे सही तरीके से लागू करे।
अब समय आ गया है कि हम सिर्फ इस हादसे पर शोक न मनाएं, बल्कि भविष्य में इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं। तभी हम महाकुंभ को सुरक्षित, पवित्र और ऐतिहासिक बना पाएंगे।