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दुर्गम पहाड़ों के बीच बृहस्पति कुंड में 1000 फीट ऊंचाई से गिरता है दूधिया पानी

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मध्यप्रदेश के जबलपुर में हीरों के लिए पहचाने जाने वाले पन्ना जिले की धरती की एक और खूबसूरत कहानी सामने आई है। यहां दुर्गम पहाड़ों के बीच बृहस्पति कुंड में झरना बारिश में खिल उठा है। हजार फीट की ऊंचाई से दूधिया झरने पर जब निगाहें पड़ती हैं, तो मन खिल उठता है। इसे देखने के लिए यहां रोजाना कई पर्यटक पहुंच रहे हैं। यहां जगह-जगह पहाड़ियों पर झरने बहते दिख रहे हैं। खास बात है कि सूर्य, अमृत, शिव कुंड के अलावा यहां करीब 15 झरने हैं।

मध्यप्रदेश में लगातार हो रही बारिश से चारों ओर हरियाली की चादर बिछ गई है। प्रकृति की सुंदरता भी निखर उठी है। बृहस्पति कुंड के झरने में सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं। कभी यहां दुर्गम पहाड़ों के कारण डकैतों का कब्जा था। आम लोग नहीं जाते थे। अब उनके बाद हालात उलट गए हैं। लोग बड़ी संख्या में पहुंचने लगे हैं।

पन्ना मुख्यालय के पहाड़ीखेरा से 7 किलोमीटर दूर बृहस्पति कुंड स्थित है। मान्यता है, इस कुंड में देवताओं के गुरु बृहस्पति ने तपस्या की थी, इसलिए इसका नाम भगवान बृहस्पति के नाम पर बृहस्पति कुंड पड़ा। कुंड में भगवतीदास महाराज और मौनी बाबा के शिष्य महंत रामचरण दास उर्फ लक्कड़ बाबा तपस्या करते हैं। बारिश में बृहस्पति कुंड का झरना और भी खूबसूरत हो जाता है।

बृहस्पति कुंड का झरना जमीन से करीब 1000 फीट ऊपर से नीचे गिरता है। यहां इसके अलावा 6 कुंड हैं, जिनके नाम सूखा कुंड, सूर्य कुंड, गंदा कुंड, अमृत कुंड, पार्वती कुंड, शिव कुंड हैं। वैसे तो जिले में छोटे बड़े 15 झरने हैं, लेकिन बृहस्पति कुंड का झरना अलग है। यह जिले का सबसे गहरा और सबसे चौड़ा झरना है।

स्थानीय लोगों ने बताया, यहां मकर संक्रांति और गुरु पूर्णिमा के दिन मेला लगता है। इसमें शामिल होने के लिए लाखों श्रद्धालु आते हैं। लोगों का कहना है, मकर संक्रांति के दिन यहां अमृत की वर्षा होती है।

ऐसी मान्यता है, भगवान राम जब चित्रकूट का वनवास काटकर लंका की ओर बढ़े थे, तो 86 हजार ऋषियों ने उनसे निशानी के तौर पर कुछ मांगा था। तब भगवान राम ने लोगों को यहां हीरा और पानी की कभी कमी न होने का वरदान दिया था। यही कारण है, झरने की नदी के दोनों किनारों पर लोग हीरा खोदते हैं और अपनी किस्मत आजमाते हैं।

सुरक्षा के नहीं हैं इंतजाम

बृहस्पति कुंड के झरने में सुरक्षा के इंतजाम न होने के कारण पर्यटक जान जोखिम में डालकर यहां आते हैं। बरसात के मौसम में सीढ़ियों और पत्थर पर काई जम जाने से रास्ता खतरनाक हो जाता है। लोग जान जोखिम में डालकर पेड़ पकड़कर नीचे उतरते हैं। सुरक्षा के इंतजाम नहीं होने से पर्यटकों को रोकने टोकने वाला कोई नहीं है। आए दिन लोग यहां पार्टियां करते हैं। फिर कुंड और झरने की नदी में स्नान करते हैं। बीते दिनों ही दो युवकों की डूबने से मौत हो गई थी।

ऐसे जा सकते हैं कुंड तक

यहां जाने के लिए पहला रास्ता पन्ना जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर पन्ना पहाड़ीखेरा रोड पर है। जहां से 3 किलोमीटर चलते ही ग्राम गहरा के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना की सड़क है। जिसके माध्यम से पर्यटक पक्के रास्ते से बृहस्पति कुंड के मंदिर तक पहुंच सकते हैं। मंदिर पहुंचने के बाद सीढ़ियों के माध्यम से कुंड की तलहटी तक जाया जाता है। तलहटी तक पहुंचने के लिए पर्यटक सीढ़ियों और पत्थरों के सहारे नीचे तक पहुंचते हैं।

बृहस्पति कुंड जाने का दूसरा रास्ता कच्चा रास्ता है। सतना मुख्यालय से 66 किलोमीटर दूर पहाड़ीखेरा गांव से 2 किलोमीटर आगे ग्राम बरा के लिए रास्ता है। पर्यटकों को अपनी गाड़ी यहीं खड़ी करना पड़ता है। फिर पगडंडियों के सहारे फिसलन भरे बरसाती रपटों को पार कर झरने के मुहाने तक जाया जाता है। रास्ते में एक बरसाती नाला भी पड़ता है। जो बरसात में हमेशा पुल के ऊपर से बहता है, लेकिन झरना जाने वाले पर्यटक इसे नजरअंदाज करते हुए जान जोखिम में डालकर झरने के मुहाने तक पहुंचते हैं।

डकैतों का रहा है बसेरा

बृहस्पति कुंड पहले डकैतों का सुरक्षित निवास स्थान था। दुर्गम पहाड़ी रास्ता होने के कारण पुलिस को आने जाने में समस्या होती थी। इसलिए डकैत यहां निवास करते थे, लेकिन जिले में डकैतों के सफाए के बाद अब यहां पर्यटक आ रहे हैं।

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