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Mohanlal Shrimali Biography : मोहनलाल श्रीमाली : संघर्ष, संकल्प और सफलता की प्रेरणादायक कहानी

Mohanlal Shrimali Biography : हल्दीघाटी संग्रहालय के संस्थापक मोहन श्रीमाली का गुरुवार सुबह निधन हो गया। वे कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे, जिनका मुंबई, गुजरात के हॉस्पीटलों इलाज चल रहा था। श्रीमाली के निधन पर न सिर्फ परिजन, बल्कि पूरे मेवाड़ के लोगों ने दु:खद व्यक्त किया। वे मूलत: राजसमंद जिले में खमनोर के पास बलीचा गांव के रहने वाले हैं, मगर अभी वे उदयपुर में निवासरत थे। उनका पुत्र भूपेंद्र श्रीमाली सहित पूरा परिवार गमगीन है। साथ ही उदयपुर के अशोकनगर में उनका अंतिम संस्कार हुआ। श्रीमाली ने पूरा जीवन महाराणा प्रताप के संग्रहालय में लगा दिया, जहां आज देश व दुनिया से प्रतिवर्ष छह लाख से ज्यादा पर्यटक आ रहे हैं। श्रीमाली का जीवन आमजन के लिए एक प्रेरणा है।

मोहनलाल श्रीमाली का जीवन एक ऐसी प्रेरक कहानी है, जो अभाव, संघर्ष, दृढ़ संकल्प और अंततः सफलता से भरी हुई है। हल्दीघाटी के नज़दीक एक छोटे से गांव बलीचा में जन्मे, एक गरीब किसान के बेटे ने उदयपुर विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और एक शिक्षक बने। लाइट फीटिंग व फोटोग्राफी का कार्य भी खूब किया। उनके अविरल संघर्ष और दृढ़ इच्छाशक्ति ने उन्हें केवल शिक्षण तक सीमित नहीं रहने दिया। वे हमेशा चाहते थे कि वे महाराणा प्रताप को एक ऐसा उपयुक्त सम्मान अर्पित करें, जो उनकी वीरता, साहस और बलिदान की दुर्लभ विशेषताओं को सामने लाए। मोहनलाल श्रीमाली का जीवन पूरी तरह से संघर्षों से भरा था। उन्होंने एक शिक्षक के रूप में जल्दी सेवानिवृत्त होकर एक ऐसा संग्रहालय बनाने का संकल्प लिया, जो महाराणा प्रताप को सच्चे सम्मान के साथ याद करता। अपने पेंशन लाभ और घर बेचने से मिली धनराशि को मिलाकर उन्होंने एक भव्य महाराणा प्रताप संग्रहालय की नींव रखी, जो 3 एकड़ में फैला हुआ है। इस संग्रहालय में महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़ी घटनाओं की झलकियां और एक अद्भुत लाइट और साउंड शो भी है। मोहन श्रीमाली के इस अद्वितीय प्रयास को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सीपी जोशी और तत्कालीन राज्यपाल अंशुमान सिंह की मदद और मार्गदर्शन मिला। श्रीमाली के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप आज उनका संग्रहालय भारत और विदेशों से आने वाले पर्यटकों का आकर्षण बन चुका है। प्रतिवर्ष लगभग 6 लाख पर्यटक इस संग्रहालय में आते हैं।

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Mohan Shrimali passes away : माेहनलाल श्रीमाली का सफर

Mohan Shrimali passes away : डॉ. मोहन ने हल्दीघाटी को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने में केंद्रीय भूमिका निभाई है। महाराणा प्रताप और उनकी वीरता की कहानियों के बारे में लोगों को सूचित करने की उनकी अदम्य भावना के कारण, हल्दीघाटी में आज हर साल लाखों पर्यटक आ रहे हैं। वे मूलत: उसी बलीचा गांव के रहने वाले हैं, मगर अभी उदयपुर शहर में उनका मकान है। हल्दीघाटी के बलीचा नाम के एक छोटे से गांव में जन्मे मोहन रोजाना 6 किमी पैदल चलकर पास के गांव खमनोर स्कूल में पढ़ने जाते थे। उन्होंने अपनी प्राथमिक स्कूली शिक्षा वहीं पूरी की। फिर वे अपनी आगे की शिक्षा पूरी करने के लिए उदयपुर शहर आ गए। उदयपुर में उनकी मुलाकात एक स्वतंत्रता सेनानी बलवंत सिंह मेहता से हुई, जिन्होंने उनकी पढ़ाई और खर्चों को प्रायोजित किया। बलवंत सिंह इस बात से मोहित हो जाते थे कि मोहन हल्दीघाटी के रहने वाले थे, वह मोहन को महाराणा प्रताप और उनकी वीरता की दास्तां सुनाते थे और उन्हें फतेहसागर झील के पास प्रताप स्मारक में नौकरी भी दी। मोहन ने बीएन कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। अपनी स्नातक की डिग्री पूरी करने के बाद, बलवंतसिंह ने मोहन को अपने गांव वापस जाने और वहां पढ़ाने का प्रस्ताव दिया। मोहन ने अपना बीएड पूरा किया। विद्या भवन शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज से और फिर हल्दीघाटी में शिक्षक के रूप में उनकी पहली पोस्टिंग हुई।

Maharana Pratap Museum : इस तरह बना महाराणा प्रताप संग्रहालय

Maharana Pratap Museum : मोहन श्रीमाली बताया करते थे कि हल्दीघाटी स्थल पर ऐसा कुछ भी नहीं था जो लोगों को स्थल के महत्व के बारे में बता सके और जो पर्यटक हल्दीघाटी आते थे, वे अक्सर एक संग्रहालय की आवश्यकता महसूस करते थे, जो महाराणा प्रताप की स्मृतियों को प्रदर्शित करता हो और उनकी वीरता, बलिदान और हल्दीघाटी की लड़ाई की कहानियां बताता हो। फिर सरकार और महाराणा प्रताप के वंशजों की मदद से साइट का विकास शुरू किया, लेकिन बाद में मदद कम हो गई, उन्होंने अपने संसाधनों और धन के साथ पूरे महाराणा प्रताप संग्रहालय का निर्माण किया। संग्रहालय के निर्माण में अपने संघर्षों और चुनौतियां बहुत आई, तो शिक्षण कार्य से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और अपनी सारी एनर्जी संग्रहालय निर्माण पर ही लगा दी। फिर आर्थिक दिक्कतें आई, तो एक बार संग्रहालय का निर्माण रोक दिया। जब उन्होंने ऋण के लिए आवेदन किया, तो बैंकों ने उनके ऋण आवेदनों को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि हल्दीघाटी में पर्यटकों की अधिक संख्या नहीं है। उन्होंने संग्रहालय के निर्माण को फिर से शुरू करने के लिए अपनी मेहनत की कमाई से खरीदी गई जमीनों को बेच दिया। मोहन ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी काम कर रहे हैं। फिर खुद की पुश्तैनी जमीन बेचकर कुछ कार्य किया। बाद में काफी प्रयासों के बाद बैंक से लोन हो पाया, मगर मोहन श्रीमाली ने अपनी आय के आधार पर संग्रहालय के विस्तार का कार्य धीरे धीरे जारी रहा, जो आज वृहद रूप में विकसित हो पाया है। आज इसी संग्रहालय में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर से एक हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल रहा है।

Who is Mohan Shrimali? : एक अद्वितीय व्यक्तित्व

Who is Mohan Shrimali? : श्रीमाली का संग्रहालय सिर्फ महाराणा प्रताप की महानता का चित्रण नहीं करता, बल्कि यह मेवाड़ क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास और परंपराओं का भी जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसके अलावा, श्रीमाली ने गुलाब की खेती और गुलाब उत्पादों के उद्योग को बढ़ावा दिया है, जिससे कई लोगों के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए हैं। उनका यह कार्य क्षेत्रीय विकास और स्थानीय समुदाय की बेहतरी में योगदान देने के लिए अत्यधिक सराहनीय है। मोहन श्रीमाली का जीवन केवल उनके स्वयं के उत्थान के लिए नहीं, बल्कि समाज और क्षेत्र के विकास के लिए समर्पित है। उन्होंने कभी भी संग्रहालय से मिलने वाली आय का उपयोग अपनी व्यक्तिगत संपत्ति के लिए नहीं किया। उनका यह योगदान उनके महान व्यक्तित्व का परिचायक है, जिसने न केवल महाराणा प्रताप की विरासत को जीवित रखा, बल्कि मेवाड़ की जनता को एक नया जीवन दिया। मोहन श्रीमाली का जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें अपने कर्तव्यों, संघर्ष और समाज के प्रति जिम्मेदारी के बारे में सिखाता है। उनका कार्य वास्तव में महाराणा प्रताप के आदर्शों को जीवित रखने और भारतीय युवाओं में देशभक्ति और राष्ट्रीयता की भावना को प्रोत्साहित करने के लिए एक अमूल्य योगदान है।

Haldighati Museum : महाराणा प्रताप संग्रहालय एक नजर में

Haldighati Museum : खमनोर के पास बलीचा गांव के बीच चेतक मगरी के पश्चिम में एक ऊंची पहाड़ी पर महाराणा प्रताप संग्रहालय है। लगभग 15000 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला है और उदयपुर से लगभग 40 किमी दूर है। प्रताप के वफादार घोड़े चेतक की याद में बने चेतक स्मारक के पास स्थित यह इलाका कभी सुनसान हुआ करता था। एक छिटपुट टिप्पणी से प्रेरित होकर कि हल्दीघाटी के पास यह स्थान जहां महाराणा प्रताप और राजा मान सिंह के बीच प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया था, एक संग्रहालय के योग्य है। मोहन श्रीमाली ने महाराणा प्रताप के जीवन और उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए एक संग्रहालय बनाने का शानदार काम किया। इस परियोजना में श्रीमाली को महान स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य बलवंत सिंह मेहता का समर्थन और मार्गदर्शन मिला जॉब ने अपने पैतृक खेत और पक्का मकान बेच दिया और 12 साल में अपने सपनों के दो करोड़ के प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए लोन लिया। संग्रहालय का उद्घाटन 19 जनवरी 2003 को राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल अंशुमान सिंह ने अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में किया था। संग्रहालय में आकर्षक मॉडलों के रूप में मेवाड़ के राजचिह्न, पन्ना धाय का बलिदान, महाराणा प्रताप द्वारा अपने मंत्रियों और सरदारों के साथ रणनीति पर चर्चा, प्रताप का अपने घोड़े चेतक के साथ मिलन, जंगल में प्रताप के जीवन के दृश्य, घास की रोटी खाना, गाड़िया लोहारों द्वारा घर में न रहने की शपथ, चित्तौड़गढ़ के दृश्य और प्रताप के जीवन से जुड़ी अन्य घटनाओं की झांकी प्रदर्शित की गई है। इनमें से कुछ मॉडल फाइबर से बने हैं और बिजली से चलते हैं तथा संगीत, ध्वनि और प्रकाश के प्रभाव से जीवंत हो जाते हैं। हल्दीघाटी के युद्ध से जुड़े लोगों को भी इसमें दर्शाया गया है। मानसिंह झाला, हकीम खान सोरी, रामशाह तंवर, शालिवाहन तंसरोर, प्रताप सिंह तंवर, भीलू राणा पुंजा, वीर प्रधान भामाशाह, वीर पुरोहित जगन्नाथ, कल्याण पोदियार, मानसिंह सज्जावत (डेलवरोरा), ताराचंद कावेड़िया, राणा संघा चुंडावत, भीमसिंह डोडिया, रामदास राठौड़, मानसिंह सोनागोरा (पाली), महासहनी जगन्नाथ, पुरोहित गोपीनाथ रावल, कृष्णदास चुंडावत, मेहता जयमल्ल, बरकत जैसा सौदा, बरकत केसव सोंडा, भवानी सिंह तंवर, मेहता रतनचंद चारण, रोमा संधू आदि।

Mohan shrimali death : म्यूजियम में यह है खास

Mohan shrimali death : मीरा बाई और मेवाड़ राजवंश के महाराणाओं महाराणा कुंभा सिंह, महाराणा संग्राम सिंह, महाराणा अमर सिंह और महाराणा उदय सिंह के चित्र भी प्रदर्शित किए गए हैं। हमारी प्राचीन संस्कृति से जुड़ी वस्तुएं जैसे रहट जिसका उपयोग कुओं से पानी खींचने के लिए किया जाता था, कोल्हू तेल निकालने के लिए, चड़स, तेलकी, घानी, रथ, बैलगाड़ी, कृषि उपकरण, संगीत वाद्ययंत्र, पोशाक, बर्तन, ताले आदि भी संग्रहालय में हैं। इसके अलावा विभिन्न जातियों की पारंपरिक जीवन शैली और कई प्रकार के हथियार भी प्रदर्शित किए गए हैं। यहां एक विशाल पुस्तकालय भी है जिसमें हाल ही में 6000 पुस्तकें जोड़ी गई हैं जो ज्ञान का खजाना है, खासकर शोधकर्ताओं के लिए। 50 सीलबंद थिएटर में फिल्में दिखाई जाती हैं जहां क्षमता को दोगुना करने का प्रस्ताव है। लाइट एंड साउंड शो एक और आकर्षण है। ग्रामीण उद्योग और हस्तशिल्प उत्पाद जैसे आकर्षक मोलेला टेराकोटा आइटम भी प्रदर्शित किए गए हैं। एक छोटी कृत्रिम झील भी आगंतुकों को आकर्षित करती है।

Maharana Muesum Haldighati : कई विशिष्ट व्यक्ति भी कर चुके हैं विजिट

Maharana Muesum Haldighati : इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इस संग्रहालय को राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव, जयपाल रेड्डी, सीपी जोशी, हंसराज भारद्वाज जैसे केंद्रीय मंत्रियों और कई राज्यपालों और भारत के मुख्य न्यायाधीशों जैसी बड़ी हस्तियों ने न केवल देखा है, बल्कि इसकी खूब प्रशंसा भी की है। अब यहां आने वाले दर्शकों की संख्या लाखों में पहुंच गई है।

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