गुजरात और मूलत: राजसमंद जिले के एक ऐसे कारोबारी से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जिन्होंने एक समय होटल में झूठे कप- प्लेट धोकर घर परिवार के गुजारे में परिवार का हाथ बंटाया था, मगर आज राजसमंद ही नहीं, बल्कि पूरे मेवाड़ क्षेत्र में युवाओं के लिए आदर्श है। कड़ी मेहनत के बलबूते एक सफल व्यवसायी बनने की नानजी भाई गुर्जर ने एक मिसाल पेश कर दी है, जो आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बनकर सामने आ रहे हैं।
गुजरात हाल राजसमंद जिले में कालिंजर पंचायत के लक्खाजी की भागल निवासी नानजीभाई गुर्जर और उनका परिवार आज खुशहाल और सम्पन्न है, उतना ही बचपन का जीवन बड़ा ही संघर्षपूर्ण रहा है। नानजी भाई गुर्जर का जन्म 28 मई 1972 को हुआ। बचपन में आर्थिक तंगी के चलते परिवार बड़ी मुश्किल में था। 6 साल की उम्र में नाथद्वारा में स्थित एक होटल में कप प्लैट धोकर परिवार को आर्थिक मदद की। बड़े भाई की शादी होने के बाद जयपुर चले गए, जहां से कुछ समय बाद वापस गांव लौट आए। फिर गुजरात के वलसाड़ में सेठ भीमराजजी के यहां साफ सफाई का काम किया था। तभी नानजी भाई की मुलाकात युसुफ भाई से हुई, युसुफ भाई ने उनके अंदर छिपी प्रतिभा को देखकर लेथ मशीन का कार्य सीखा दिया। फिर यहां से भी वे वापस लौट आए और कुछ समय ट्रेन में भी चाय बेची।
2004 में खुद का कारोबार किया शुरू
फिर 1994 में वापस राजसमंद लौट आए और राजसमंद में फिर पुराने सेठ के यहां काम किया। साथ ही 3 साल तक मार्बल फैक्ट्रियों में मशीन फीटिंग का कार्य करने के बाद 1997 में वापस गुजरात लौट गए। वर्ष तक 2003 तक अंतिम नौकरी शिशोदा के रमेश कुमार हमेरलाल जैन के यहां नौकरी की। तब तक कुछ पूंजी जमा कर ली और नौकरी छोड़कर वर्ष 2004 में मां आशापुरा हाइड्रोलिक लिफ्ट नाम की फर्म बनाकर खुद का कारोबार शुरू कर दिया। 2005 में इस फर्म का टर्न ओवर 5 लाख रुपए था और आज नानजी भाई की इसी फर्म का टर्न ओवर 7-8 करोड़ है। आज इनकी कंपनी देश की नामी लिफ्ट कंपनियों को टक्कर दे रही है। देशभर में बड़े बिल्डर और कंपनियों में भी इनकी लिफ्ट लग रही है।
मातृभूमि के लिए सदैव तत्पर नानजीभाई
नानजी भाई की तरक्की वाकई युवाओं के लिए प्रेरक है, जिनका इतना बड़ा कारोबार होते हुए भी वे अपनी मातृभूमि और अपने गांव की समस्याओं को नहीं भूले। वे आज अपने गांव और मेवाड़ क्षेत्र के लोगों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाना चाहते हैं और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक दशक से कार्यरत है। क्षेत्र में आहत, बीमार व गरीबों की मदद के लिए वे हमेशा खड़े रहते हैं और शिक्षा, चिकित्सा, पर्यावरण के क्षेत्र में सामाजिक सरोकार के कामकाज से भामाशाह के रूप में पहचाने जाने लगे हैं।
पर्यावरण संरक्षण के लिए ट्रस्ट का किया गठन
गांव और मेवाड़ की समस्याओं के समाधान के लिए वर्ष 2015 में 6 अप्रैल को आशापुरा मानव कल्याण ट्रस्ट का गठन किया, जिसके जरिए न सिर्फ खुद का पैसा गांव के विकास में लगाया, बल्कि शासन, प्रशासन में उच्चाधिकारियों और सरकार के मंत्रियों तक जाकर क्षेत्रीय लोगों की आवाज उठाने में पीछे नहीं रहे। गुजरात से राजस्थान तक पर्यावरण जागरूकता रैली निकाली और पूरे रास्ते में लोगों को हजारों पौधे वितरित किए। इसी का नतीजा है कि उनके पैतृक गांव लक्खाजी की भागल पक्की से सड़क से जुड़ चुका है, तो शिक्षा व चिकित्सा और पर्यावरण के लिहाज से भी बेहतर कार्य हो रहे हैं और आने वाले समय में उनके गांव को मेवाड़ ही नहीं बल्कि देशभर के लिए आदर्श गांव बनाने के लिए प्रयासरत है।
गांव को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयासरत
गांव में ग्रामीणों को एकजुट कर कुआं खुदवाया। सनातन धर्म और संस्कृति के लिहाज से भी वर्ष 2015 और वर्ष 2022 में अपने गांव में ही कथा महोत्सव का आयोजन भी करवाया। फर्म के माध्यम से कई लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। एक दशक में हजारों पेड़ पौधे लगाकर मेवाड़ में हरियाली कायम करने की पहल शुरू की और अब उनके पैतृक गांव कालिंजर पंचायत के लक्खाजी की भागल में मां पन्नाधाय नर्सरी विकसित करने और देश का पहला मां पन्नाधाय का मंदिर बनाने का बीड़ा उठा लिया है। प्रतिवर्ष अपने कारोबार से ही पैसा निकाल अपनी मातृभूमि पर खर्च कर रहे हैं। बाघेरी नाका बांध की तर्ज पर उनके गांव में गंगासागर तालाब को विकसित करने के लिए भी शासन, प्रशासन के माध्यम से कार्य करवाने में प्रयासरत है। पेड़- पौधे व वनस्पति के जरिए गांव के लोगो को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रयासरत है। इसी को लेकर गंगासागर तालाब को विकसित करने को लेकर प्रयासरत है।