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Janmashtami पर नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर में दी जाती है 21 तोपों की सलामी

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जन्माष्टमी पर नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर में कृष्ण जन्म के दौरान रिसाला चौक में 21 तोपों की सलामी दी जाएगी। श्रीनाथजी मंदिर में जन्माष्टमी के दिन कृष्ण जन्म होने पर 2 तोप से 21 बार सलामी दी जाती है। इसके लिए रिसाला चौक में तोपों की सफाई कर कर्मियों को प्रशिक्षित किया जाता है। नाथद्वारा में जन्माष्टमी पर रात 12 बजे कृष्ण जन्म होते ही 21 तोपों की सलामी देने की परंपरा है। करीब 400 वर्ष पुरानी दो तोप का इस्तेमाल किया जाता हैं। ये तोपें नर व मादा कहलाती है। पर्व के दिन आधी रात को तोपाें से 21 बार सलामी देने के लिए श्रीनाथ गार्ड व होमगार्ड के जवानों को प्रशिक्षण दिया जाता है।

नाथद्वारा के श्रीजी मंदिर में 348 साल से लगातार परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है। जन्माष्टमी के तीन दिन बाकी है, लेकिन अभी से शहर ब्रजमय हो रहा हाे गया है। पर्व को लेकर लगभग घर-घर, हर गांव मेे तैयारियां हो रही है। घरों में लालन प्रभु के पर्व के दिन रात 12 बजे जन्मोत्सव पर पूजा होगी। प्रभु श्रीजी के साथ आए ब्रजवासी यहां स्थायी बस गए। नाथद्वारा नगर ब्रजभाषा और संस्कृति-प्रतीक रूप में राजस्थान का ब्रज होकर स्थापित हुआ। ब्रज मंडल मूल के नाथद्वारावासी, उनकी आज तक कई पीढ़ियां बीतने के बाद अपने आपको ब्रजवासी कहते हैं। उनकी भाषा, वेशभूषा, संस्कृति और रीति-रिवाज आज भी सुरक्षित है।

ब्रजवासियों से इतर स्थानीय मेवाड़ी लोग भी पर्याप्त संख्या में निवास करते हैं। इसलिए यह बहुत स्वाभविक है कि दोनों ही भाषाएं एक-दूसरे से प्रभावित है। नाथद्वारा में ब्रज संस्कृति का प्रभाव किस सीमा तक है, इसका अनुमान यहां के मोहल्लों के नामकरण से हो सकता हैं। नगर का एक बड़ा मोहल्ला ब्रजपुरा के नाम से है तो कुछ अन्य मोहल्लों के नाम- द्वारकाधीश की खिड़की, मोदियों की खिड़की, बडी बाखर, नीम वारी बाखर के नाम से है। नाथद्वारा मंदिर मंडल की रचना से पूर्व तिलकायत की हर आज्ञा, यहां तक की पट्टे-परवाने भी ब्रजभाषा में ही लिखे जाते थे।

मूर्ति की खासियत

मथुरा गिरिराज पर्वत पर विक्रमाब्द 1466 को प्रातः काल सूर्योदय की प्रथम रश्मि के साथ उर्ध्व भूजा के दर्शन होते हैं। वहीं पर उर्ध्व भुजाजी ने 69 वर्ष तक अनेक सेवाएं स्वीकार की। इसके बाद विक्रमाब्द 1535 वैशाख कृष्ण एकादशी गुरुवार को मध्यान्ह काल में प्रभु के मुखारबिंद का प्राकट्य हुआ। अन्योर ग्राम के निवासी सद्द् पांडे की गाय स्वतः ही प्रतिदिन मुखरबिंद पर दूध की धार छोड़ आती थी। फाल्गुन शुक्ल एकादशी शुक्रवार वि. 1549 को महाप्रभु श्री वल्लभ के आन्योर व गोवर्धन पर्वत पधारने पर गिरिराज से श्रीकृष्ण स्वरूप श्रीनाथजी का प्राकट्य हुआ।

कहा जाता है कि 1535 में श्रीनाथजी की प्रतिमा मथुरा में गिरिराज पर्वत के नजदीक प्रकट हुई। औरंगजेब के शासनकाल में इस प्रतिमा को बचाने के लिए तिलकायत परिवार 1672 में नाथद्वारा ले आया। तभी इस मंदिर और श्रीनाथजी की सेवा इस परिवार के ही जिम्मे है। मौजूदा तिलकायत राकेश महाराज के बेटे विशाल बावा कहते हैं देशभर में जन्माष्टमी का उत्साह रहता है, लेकिन यहां श्रद्धालुओं का उत्साह दूसरे दिन नंद उत्सव तक दिखाई देता है।

दिनभर में कृष्ण जन्मोत्सव की झांकियां और नाटक होंगे। छंद गाए जाएंगे। फिर गोपी-ग्वाल बने श्रद्धालुओं में शुरू होगी हल्दी मिश्रित दूध-दही की होली। मंगलवार सुबह 10-11 बजे तक यह सिलसिला चलेगा। लाखों श्रद्धालुओं के लिए यहां जिस तरह प्रशाद तैयार किया जाता है, वह भी चौंकाने वाला है। कुछ वर्षों पहले तक तो शुद्ध घी को मंदिर के भीतर बने कुओं में स्टोर किया जाता था। अब टिन रखे हुए हैं। तीन सौ टीन हर समय रखे रहते हैं। शुद्ध घी से ही भोग प्रसाद, सकडी, अनसकडी बनाई जाती है।

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