तृतीय पीठ प्रन्यास के श्री द्वारकाधीश मंदिर कांकरोली, राजसमंद के पीठाधीश गोस्वामी ब्रजेश कुमार महाराज ने बड़ौदा के अस्पताल में रविवार शाम को निधन हो गया। वे करीब 84 वर्ष की उम्र के थे, जो लंबे समय से अस्वस्थ थे। ज्यादा तबीयत बिगड़ने पर कुछ दिन से बड़ौदा के अस्पताल में ही उनका उपचार चल रहा था। अब सोमवार सुबह बड़ौदा में ही उनका अंतिम संस्कार होगा। पीठाधीश गोस्वामी ब्रजेश कुमार के निधन से समूचे राजसमंद व नाथद्वारा शहर के साथ जिलेभर के लोगों में शोक की लहर छा गई। बताया गया कि 27 फरवरी सुबह बड़ौदा में ही उनका अंतिम संस्कार होगा। इसको लेकर गोस्वामी परिवार के सदस्य आवश्यक तैयारी में जुटे हुए हैं।

जानकारी के अनुसार डॉ. ब्रजेश कुमार महाराज का 1939 में कांकरोली में ही उनका जन्म हुआ। फिर 1980 से तृतीय पीठ प्रन्यास के श्री द्वारकाधीश मंदिर कांकरोली के पीठाधीश है। आज श्री द्वारकाधीश के राजसमंद के साथ मथुरा, वृंदावन, बड़ौदा के साथ अमेरिका में भी भव्य मंदिर है, जो सभी मंदिर पीठाधीश ब्रजेश कुमार के अधीन ही है। सभी मंदिरों में तृतीय पीठ की परम्परा के अनुसार ही सेवा की जाती है। अस्पताल में उनके पुत्र डॉ. वागिश कुमार और गोद चले गए पुत्र डॉ. द्वारकेशलाल के साथ पूरा परिवार अभी अस्पताल में ही है और उनकी पार्थिव देह भी अस्पताल में ही है। अब सोमवार सुबह उनकी पार्थिव देह को बड़ौदा स्थित पीठ पर लाया जाएगा, जहां गोस्वामी परिवार की परम्परानुसार पीठाधीश ब्रजेश कुमार की पार्थिव देह का अंतिम संस्कार किया जाएगा। पीठाधीश ब्रजेश कुमार के दो पौत्र वेदांत राजा व सिद्धांत राजा है। उल्लेखनीय है कि ब्रजभूषणजी का निधन होने पर संवत 2037 में ब्रजेश कुमारजी तिलकाय चौदहवें तिलकायत बने थे।

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे गोस्वामी ब्रजेश कुमार

दिवंगत गोस्वामी ब्रजेश कुमार बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। प्रशासनिक कुशलता, विद्या व्यसन व मानवीय संवेदना भी भरपूर थी। उनके कार्यशाला में गौशाला का विस्तार हुआ, जिससे 25 गायों से आज 500 से ज्यादा गायें हो गई। विट्‌ठलविलास बाग में गार्डन विकसित किया और मंदिर के बाहर पुरानी धर्मशाला को तोड़कर नए कॉम्पलेक्स बनाए गए। साथ ही गायों के लिए 160 बीघा जमीन भी खरीदी। हालांकि निर्झरना में गायों की जमीन खदानों के लिए दे दी, जहां की पूरी जमीन आज नष्ट हो चुकी है।

ब्रजेश कुमार तृतीय पीठ के थे 14वें पीठाधीश

  1. गोस्वामी बालकृष्णलालजी
  2. गोस्वामी श्री द्वारकेशजी
  3. गोस्वामी श्री गिरधरजी प्रथम
  4. गोस्वामी श्री ब्रजभूषणजी प्रथम
  5. गोस्वामी श्री गिरधरजी दूसरे
  6. ब्रजभूषणलालजी सेकंड
  7. गोस्वामी श्री विट्‌ठलनाथजी
  8. गोस्वामी श्री ब्रजभूषणलालजी तृतीय
  9. गोस्वामी श्री पुरुषोत्तमजी
  10. गोस्वामी श्री गोस्वामी गिरधरजी तृतीय
  11. गोस्वामी श्री बालकृष्णलालजी
  12. गोस्वामी श्री द्वारकेशजी
  13. 13 गोस्वामी श्री ब्रजभूष्णलालजी चतुर्थ
  14. गोस्वामी श्री ब्रजेश्
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परिवार में ब्रजेश कुमार के दो छोटे भाई

दिवगंत गोस्वामी ब्रजेश कुमार के दो भाई वागिश कुमार और वागिश कुमार है। इसके अलावा गोस्वामी ब्रजेश कुमार की पत्नी भी है, जो भी बड़ौदा में ही है। छोटे दोनों भाईयों के तीन बेटे नेमिष राजा, कपिल राजा व रौनक राजा है। हालांकि गोस्वामी ब्रजेश कुमार का पूरा परिवार अलग रहता है और दोनों छोटे भाईयों का परिवार अलग जगह है। उल्लेखनीय है कि ब्रजेश कुमार जी को श्री द्वारकाधीश मंदिर कांकरोली, गोस्वामी श्री पराग कुमार को सूरत में श्री लाडिलेशजी मंदिर और शिशिर कुमार के बुरहानपुर के श्री लाडिलेशजी मंदिर हिस्से में रहा।

देशभर में सात पीठ

तृतीय पीठ प्रन्यास का द्वारकाधीश मंदिर कांकरोली है। सबसे पहली पीठ कोटा के जतीपुरा में श्री मथुरेशजी का मंदिर है, जबकि दूसरी पीठ नाथद्वारा में श्री विट्‌ठलनाथजी मंदिर है। तृतीय पीठ में कांकरोली के श्री द्वारकाधीश मंदिर, चौथी पीठ में गोकुल में श्री गोकुलनाथजी मंदिर, पांचवीं पीठ में भरतपुर के कामां में गोकुल चन्द्रमाजी का मंदिर, छठीं पीठ में बड़ौदा स्थित श्री कल्याणरायजी मंदिर और सातवीं पीठ कामा में श्री मदनमोहनजी का मंदिर है।

तृतीय पीठ परम्परा की एक झलक

श्री प्रभुचरण के तृतीय पुत्र श्री बालकृष्णजी थे, इनका समय सं. 1606 से 1650 तक माना जाता है। फिर उनके पुुत्र श्री द्वारकेशजी हुए, जिनका समय संवत 1670 तक है। फिर कद्वारकेशजी के पुत्र गिरिधरजी हुए, जिनका समय 1662 से 1720 है। इसी बीच गिरिधरजी के बाद श्री ब्रजभूषणलालजी तिलकायत हुए, जिनका संवत 1700 से 1758 है। यह गिरिधरजी के दत्तक पुत्र के रूप में आए थे। तब ब्रजभूषणजी वयस्क नहीं थे और औरंगजेब का शासन था। ब्रजभूषणजी अहमदाबाद चले गए, जहां रायपुर के एक भूगर्भीय मकान में द्वारकाधीश को बिराजित कर सेवा की। उसी वक्त राजसमंद के संस्थापक महाराणा राजसिंह ने श्री द्वारकाधीश को मेवाड़ ले आने का अनुरोध किया। फिर 1727 में गुजरात के अहमदाबाद से तृतीय पीठ मेवाड़ के राजसमंद में आसोटिया पहुंची। फिर 1728 में श्रीनाथजी का विग्रह भी मेवाड़ आ गया। इस तरह ब्रजभूषण के पुत्र गिरिधरजी इस पीठ के अधिपति रहे, जिनका समय 1745 से 1803 तक है। इसी बीच 1776 में राजसमंद झील किनारे मंदिर बनने पर द्वारकाधीश प्रभु को मंदिर में बिराजित किया। तब से इस मंदिर का नाम गिरधरगढ़ है। इस तरह 1727 से 1776 तक 49 साल तक प्रभु आसोटिया में बिराजे। कुछ समय अत्यधिक पानी आने पर देवलमगरी पर भी प्रभु द्वारकाधीश बिराजे थे। फिर गिरिधरजी के बाद उनके पुत्र ब्रजभूषणजी द्वतीय आसीन हुए, जिनका समय 1765 से 1833 तक है। ब्रजभूषणजी द्वतीय के व्रजनाथजी पुत्र हुए। इस तरह ब्रजभूषण जी के बाद उनके पौत्र विट्‌ठलनाथजी तिलकायत बने, जिनका समय संवत 1811 से 1849 तक रहा। विट्‌ठलनाथजी के बाद उनके पुत्र ब्रजभूषणजी तृतीय तिलकायत बने, जिनका समय 1835 से 1876 तक है। फिर पुरुषोत्मजी तिलकायत बने, जिनका समय 1847 से 1903 तक है। फिर पुरुषोत्मजी का निधन होने पर पद्मावती बहूजी अवयस्क थी, मगर विदुषी होने से ठिकाना संभाला, जिनका समय 1892 से 1939 तक रहा। तब महाराणा सज्जनसिंह ने अन्य ठिकानों की तरह कांकरोली के बहूजी पद्मावती को शासकीय अधिकार दिए, जो अधिकार संवत 1939 में मिले। उसके बाद बालकृष्णलालजी तिलकायत बने, जो 1924 से संवत 1973 तक है। फिर 1973 में द्वारकेशलालजी करीब 1978 तक तिलकायत रहे। फिर संवत 2005 में भारत स्वतंत्र हुआ और कांकरोली मंदिर के शासनाधिकार समाप्त हो गए। ब्रजभूषणजी का निधन होने पर संवत 2037 में ब्रजेश कुमारजी तिलकाय चौदहवें तिलकाय बने थे।

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मंदिर सम्पत्ति को लेकर परिवार में मतभेद

श्री द्वारकाधीश मंदिर कांकरोली की सम्पत्ति को लेकर लंबे समय से गोस्वामी परिवार के सबसे बड़े भाई जो पीठाधीश ब्रजेश कुमार है और दो छोटे भाई गोस्वामी वागिश कुमार व शिशिर कुमार। सम्पत्ति के बंटवारे को लेकर सबसे बड़े भाई से दोनों भाई के मतभेद है। सम्पत्ति विभाजन को लेकर मामला कोर्ट में भी विचाराधीन है, तो देवस्थान विभाग में भी सुनवाई में चल रहा है। इसी विवाद के चलते देवस्थान विभाग में मंदिर के दो दो ट्रस्ट पंजीयन को लेकर विचाराधीन है।