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पेट्रोल डीजल की बेकाबू कीमत से आम लोगों के लिए वाहनों का संचालन हो रहा मुश्किल

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कैलाश सामोता, स्वतंत्र विचारक, शिक्षक, कुंभलगढ़ किला

राजसमंद। आज संपूर्ण देश अदृश्य, प्राणघातक, बहुरूपिया व संक्रामक वायरस कोरोना के कहर से दो-दो हाथ कर रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक महामारी कोरोना से रोजाना चार हजार मौते हो रही है।विगत डेढ़ वर्ष में अब तक 3.15 लाख के लगभग कोरोना से मौते हो चुकी है। कोरोना संक्रमण व इससे होने वाली मौतों के बढ़ते आंकड़ों को नियंत्रित करने के लिए, देश प्रदेश की सरकारें विभिन्न दिशा निर्देशों, टीकाकरण अभियान व लॉकडाउन जैसी युक्तियां अपना रही है, जिसके परिणाम स्वरूप देश में बेबसी, लाचारी, भुखमरी, बेरोजगारी व बेकारी का आलम भी सुनाई देने लगा है।

कोरोना काल में देश की अर्थव्यवस्था चौपट होती दिख रही है। इसी बीच तेल कंपनियों की मनमर्जी व खुली लूट की छूट के चलते, देश-प्रदेशों में पेट्रोल-डीजल के भाव बेलगाम होकर, अपनी शतकीय पारी खेल रहे हैं। वर्ष 2020-21 में पेट्रोल डीजल के भाव में रिकॉर्ड बढ़ोतरी के लिए हमेशा हमेशा याद रखा जाएगा, जिसमें 39 बार पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी हुई है। तेल के इस खेल में सारा का सारा भार जनता पर ही पडऩे वाला है और उनकी मुश्किलें और अधिक बढऩे वाली है। जानकारों का मानना है कि पेट्रोल-डीजल के भाव में हो रही बेतहाशा बढ़ोतरी से महंगाई की भयंकर मार झेलनी पड़ेगी और महंगाई की मार से आम आदमी की कमर टूट रही है।

तेल के भाव में ताव के लिए सरकारों की खींचतान जिम्मेदार
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव में गिरावट के बावजूद, देश-प्रदेशों में तेल के भाव में कमी नहीं हो रही है। पेट्रोल-डीजल पर लगभग 32 रुपए की एक्साइज ड्यूटी केंद्र सरकार वसूल रही है। वही 26 रुपए केंद्र व देश में सबसे अधिक राजस्थान प्रदेश में 36 रुपए राज्य की सरकार राजस्व वसूल रही है। सरकारों में राजस्व वसूली की इस होड़ के चलते, आज प्रदेश के 9 जिलों सहित अधिकांश प्रदेशों में पेट्रोल के भाव 100 रुपए प्रति लीटर को पार कर चुके हैं तथा डीजल 93.05 पैसे प्रति लीटर हो गया है। केंद्र व राज्य सरकारों की इस खींचतान में चक्की के दो पाटों के बीच आम जनता, किसान, व्यापारी, ट्रांसपोर्ट व्यवसाई, सब पिस रहे हैं और सरकारें टैक्स व सेस लगाकर, अपना खजाना भरने में लगी हैं। पांच राज्यों में हुए चुनाव के आए परिणामों के बाद, अकेले मई माह में ही पेट्रोल-डीजल के भाव 13 बार बढ़ाएं जा चुके हैं। उधर सरकार कोरोना की आड़ में सख्त नियम लागूकर, बेबस और मजबूर जनता को महंगाई की डोज बार-बार व लगातार लगा रही हैं और महंगाई से जनता त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही है। बावजूद इसके देश की किसी भी राजनीतिक पार्टी के सिर पर जूं तक नहीं रेंग रही। केवल, चुनावी दौर में ही निजी तेल कंपनियां, तेल के भाव को स्थिर कर देती हैं अथवा गिरावट करती हैं। इससे साफ जाहिर है कि पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के लिए, तेल कंपनियों व केंद्र सरकार की जुगलबंदी व मिलीभगत तथा राज्य सरकारों द्वारा डाला गया टैक्स का भार ही जिम्मेदार है।

वाहन नियोजन व जीएसटी से ही पेट्रोल-डीजल की आग पर काबू पाना संभव
सरकारों की सह से ही खेले जा रहे ‘तेल के खेल’ ने व्यापार को हाशिए पर ला दिया है तथा आम आदमी के घर का बजट लडख़ड़ा दिया है। पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने के कारण ही सरकारें मनमर्जी का टैक्स वसूल कर रही है और इसका सारा भार जनता पर डालकर, उनका तेल निकाला जा रहा है। तेल के भाव में लगी आग पर, पक्ष-विपक्ष की सहमति, जुगलबंदी व मिलीभगत भी सामने आ रही है। इसलिए वैश्विक महामारी कोरोना के इस आपदा काल में आम जनता को राहत देने के लिए, केंद्र व राज्यों की सरकारों को चाहिए कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाएं अथवा लाने का पुरजोर दबाव बनाएं। देश में सड़कों पर कीड़े-मकोड़ों की तरह सरपट दौड़ रहे वाहनों की संख्या को घटाने के लिए वाहन-नियोजन कानून लाया जाना चाहिए। वाहनों की संख्या में कमी करने की इस पहल से ना केवल प्रदूषण के स्तर में कमी आएगी, बल्कि प्रतिवर्ष सड़क हादसों में लाखों की संख्या में होने वाली अकाल मौतों के आंकड़ों में भी कमी आएगी। यदि सरकारें मिलकर पेट्रोल-डीजल की बेलगाम कीमतों को नियंत्रित करने में असफल साबित होती हैं, तो तेल के भाव में आए इस ताव व उछाल के कारण महंगाईरूपी महामारी, अपना विकराल रूप दिखाएगी और करोड़ों लोगों की जीवन लीला समाप्त करने का कारण बनेगीए,जिसकी संपूर्ण जवाबदेही सरकारों की ही होगी।

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