दीपावली के दिन सुबह गांव से फूलों की गाड़ी लेकर शहर जाने वाला माली शाम को जब गांव लौटा तो उसका मुंह लटका हुआ था। कारण पूछा तो बोला- तीन माह से बड़ी मेहनत और लगन से खेत में और आशा के फूल मन में उगाए थे कि दीपावली पर सारे फूल बेचकर अच्छे पैसे कमाऊंगा, मगर आज जब फूलों की गाड़ी भरकर शहर गया, तो बड़ी निराशा हाथ लगी। क्योंकि वहां तो दुकानों में सजे कागज व प्लास्टिक के नकली रंग बिरंगे फूलों के ढेर पर ग्राहक टूट रहे थे। लोगों के दिखावटी नकली फूलों के आकर्षण को देखकर असली फूल खुद शर्म से मुरझाने लग गए। इसलिए महीनों की मेहनत पर पानी फिर गया।
उसकी बात सुनकर मैंने कहा आजकल लोगों को सच के आवरण में लिपटा झूठ ही पसंद आ रहा है। इसलिए वास्तविक सच से सभी ने दूरी बना ली है।
आजकल सभी त्योहारों का उत्सव मोबाइल द्वारा ही मनाया जाता है। जन्मदिन, राखी या दिवाली सभी त्योहार की सफलता फेसबुक, इंस्ट्राग्राम के लाइक, कमेन्ट ही तय करते हैं। कभी हमारी जिन्दगी में यह मोबाइल फोन घुसा था, मगर अब तो हमारी जिन्दगी ही इस मोबाइल में घुसती जा रही है। इस आभासी दुनिया ने वास्तविक रिश्तो को किनारे कर दिया है। मोबाइल पर कोरोना वायरस की तरह संक्रमित होते अनगिनत दीपावली की बधाई के संदेश ने अपने मित्र या रिश्तेदार के आत्मीय लगाव को फिका कर दिया है। कभी पच्चीस पैसे के पोस्टकार्ड पर अपने हाथों से लिखे शब्दों में लोग अपने ह्रदय की धडक़ने समेट कर अपने प्रिय को भेजते थे और पत्र को प्राप्त करने वाला भी उस पत्र को बार- बार पढक़र उस अहसास को जीवन्त करता था। प्रिय के मधुर भावों से परिपूर्ण उन पत्रों को पढक़र अक्सर आंखें नम हो जाया करती थी। मगर कॉपी- पेस्ट के जमाने में अब वो भावनाएं लुप्त हो गई है। दीपावली पर बड़ों के चरण स्पर्श करने की परम्परा भी अब गिने चुने घरों में बची हुई है। वरना अब बड़े छोटे सभी को हैप्पी दीवाली कहकर औपचारिक निर्वहन किया जाता है।आजकल चाइना ब्रांड लाइटों की रोशनी ने घी के दीपक को शर्मिंदा कर दिया है। मिट्टी के दीपक को बेचने वाले कुम्हार भी आजकल कोई दूसरा धन्धा ढूंढ रहे हैं।
कभी त्योहार पर घरों में असली घी से हलवा, लापसी या बेसन चक्की में मां पिताजी के हाथों की महक मिठाई के स्वाद को दुगुना कर देती थी, मगर आजकल बाजार में चमकीले डिब्बे में सजी चांदी रंग के बरक तले दबी नकली मावे की मिठाई से लोग खुशियां बांटते नजर आते हैं। इस मिठाई पर शुद्धता की गारंटी का टेग लगा रहता हैं। ठीक इसी तरह रिश्तेदारों को भी हर मौके पर मैसेज भेज भेजकर अपनेपन का प्रमाण देना पडता हैं और ये प्रमाण ही अक्सर मिठास में संदेह पैदा करते हैं। आजकल असल जिन्दगी में भी फिल्मी अभिनय बढ़ गया है। माता- पिता या भगवान के सामने प्रणाम करते हुए फोटो भी लोग सोशल मीडिया पर डालते हैं, मगर अन्य वो लोग भी अपने माता- पिता या भगवान के प्रति उतने ही विनम्र होते हैं, जो इस तरह के फोटो डालने में विश्वास नहीं करते। नकली फूलों की तरह दिखावटी बधाई व शुभकामनाओं से हमारे असल रिश्तों के फूल मुरझाते दिख रहे हैं। हम नए दौर की नवीनता अपनाते हुए भी अपने रिश्तों को सिर्फ दिखावटी एक दिन ही नहीं, बल्कि वर्षभर अहमियत दे, तभी जीवन की सार्थकता है।